RSS नेता ने कहा, प्राचीन भारत में गौमांस खाने वालों को अस्पृश्य करार दिया जाता था

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[email protected] । Aug 27 2019 8:56AM

उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे यह समाज में प्रसारित होता गया और समाज के एक बड़े हिस्से को अस्पृश्य करार दिया गया। लंबे समय तक उनका उत्पीड़न और अपमान किया गया। गोपाल ने कहा कि रामायण लिखने वाले महर्षि वाल्मीकि दलित नहीं थे, बल्कि शूद्र थे, और कई महान ऋषि भी शूद्र थे और उनका बहुत सम्मान किया जाता था।

नयी दिल्ली। आरएसएस के एक वरिष्ठ नेता ने सोमवार को कहा कि गौमांस सेवन करने वाले लोगों को प्राचीन भारत में अस्पृश्य करार दिया जाता था और दलित शब्द प्राचीन भारतीय साहित्य में मौजूद नहीं था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संयुक्त महासचिव कृष्ण गोपाल ने पुस्तकों के विमोचन कार्यक्रम के दौरान कहा कि संविधान सभा ने भी दलित की जगह अनुसूचित जाति शब्द का इस्तेमाल किया।

उन्होंने कहा कि यह अंग्रेजों की साजिश थी कि दलित शब्द (समाज में) धीरे-धीरे प्रसारित होता गया। आरएसएस नेता ने भारत का राजनीतिक उत्तरायण और ‘भारत का दलित विमर्श’ पुस्तकों का विमोचन किया। कार्यक्रम में संस्कृति और पर्यटन मंत्री प्रह्लाद पटेल भी उपस्थित थे। गोपाल ने कहा, ‘‘भारत में अस्पृश्यता का पहला उदाहरण तब आया जब लोग गाय का मांस खाते थे, वे ‘अनटचेबल’ घोषित हुए। ये स्वयं (बी आर) आंबेडकर जी ने भी लिखा है।’’

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उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे यह समाज में प्रसारित होता गया और समाज के एक बड़े हिस्से को अस्पृश्य करार दिया गया। लंबे समय तक उनका उत्पीड़न और अपमान किया गया। गोपाल ने कहा कि रामायण लिखने वाले महर्षि वाल्मीकि दलित नहीं थे, बल्कि शूद्र थे, और कई महान ऋषि भी शूद्र थे और उनका बहुत सम्मान किया जाता था।

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