RTE आरक्षण: अदालत ने निजी स्कूलों को छूट संबंधी महाराष्ट्र सरकार की अधिसूचना खारिज की

Bombay High Court
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Prabhasakshi News Desk । Jul 19 2024 6:38PM

महाराष्ट्र सरकार की ओर से नौ फरवरी को जारी उस अधिसूचना को बंबई उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया जिसमें सरकारी या सहायता प्राप्त स्कूलों के एक किलोमीटर के दायरे में आने वाले निजी स्कूलों को शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम के तहत आरक्षित दाखिले से छूट दी गई थी।

मुंबई । बंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार की ओर से नौ फरवरी को जारी उस अधिसूचना को शुक्रवार को रद्द कर दिया जिसमें सरकारी या सहायता प्राप्त स्कूलों के एक किलोमीटर के दायरे में आने वाले निजी स्कूलों को शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम के तहत आरक्षित दाखिले से छूट दी गई थी। मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की खंडपीठ ने कहा कि यह अधिसूचना संविधान के अनुच्छेद 21 और बच्चों को निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) 2009 के प्रावधानों के विरुद्ध है। 

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘अधिसूचना निरस्त मानी जाए।’’ अदालत ने अपने फैसले में कहा कि कानून के तहत ना केवल सरकार, बल्कि निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों का भी कर्तव्य है कि वे समाज के वंचित वर्ग के छह से 14 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा प्रदान करें। अनुच्छेद 21-ए के तहत मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का आदेश लगभग निरपेक्ष है। अदालत ने कहा कि आरटीई अधिनियम के प्रावधान यह कहते हैं कि निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूल भी इस तरह के अनिवार्य कर्तव्य का हिस्सा होंगे। पीठ ने कहा कि यदि आरटीई अधिनियम का उद्देश्य पूरी तरह से हासिल नहीं किया गया, तो इसका परिणाम लोगों को संविधान के अनुच्छेद 21-ए के तहत उल्लिखित मौलिक अधिकार से वंचित करना होगा। 

हालांकि, पीठ ने कहा कि मई में अधिसूचना के क्रियान्वयन पर रोक लगाने से पहले कुछ निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों ने छात्रों को प्रवेश दिया था। पीठ ने कहा कि इन दाखिलों में कोई बाधा नहीं डाली जाएगी, लेकिन स्कूलों को यह सुनिश्चित करना होगा कि आरटीई के तहत 25 प्रतिशत सीट भरी जाएं। मई में उच्च न्यायालय ने अधिसूचना के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी। कई याचिकाओं में अधिसूचना को चुनौती देते हुए दावा किया गया था कि यह आरटीई अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करती है। अधिसूचना से पहले, सभी गैर-सहायता प्राप्त और निजी स्कूलों के लिए आर्थिक रूप से कमजोर एवं वंचित वर्ग के बच्चों के लिए 25 प्रतिशत सीट आरक्षित करना अनिवार्य था। याचिकाओं में कहा गया है कि अधिसूचना असंवैधानिक है और आरटीई अधिनियम के विपरीत है।

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