22 साल से अलग-अलग रह रहे थे पति और पत्नी, न्यायालय ने विवाह से किया मुक्त

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[email protected] । Oct 9 2019 4:41PM

पीठ ने कहा कि ऐसा लगता है कि अब इस दंपत्ति के बीच रिश्ते जुड़ने की कोई संभावना नहीं है क्योंकि वे पिछले 22 साल से अलग-अलग रह रहे हैं और अब उनके लिये एक साथ रहना संभव नहीं होगा।

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने 22 साल से एक दूसरे से अलग रह रहे दंपत्ति के वैवाहिक संबंधों को खत्म कर दिया। न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 में प्रदत्त विशेष अधिकार का इस्तेमाल करते हुये कहा कि यह ऐसा मामला है जिसमें वैवाहित रिश्ते जुड़ नहीं सकते हैं। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा कि इस वैवाहिक रिश्ते को बनाये रखने और संबंधित पक्षों में फिर से मेल मिलाप के सारे प्रयास विफल हो गये हैं। पीठ ने कहा कि ऐसा लगता है कि अब इस दंपत्ति के बीच रिश्ते जुड़ने की कोई संभावना नहीं है क्योंकि वे पिछले 22 साल से अलग-अलग रह रहे हैं और अब उनके लिये एक साथ रहना संभव नहीं होगा।

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पीठ ने अपने फैसले में कहा कि इसलिए, हमारी राय है कि प्रतिवादी पत्नी को भरण पोषण के लिये एक मुश्त राशि के भुगतान के माध्यम से उसके हितों की रक्षा करते हुये इस विवाह को विच्छेद करने के लिये संविधान के अनुच्छेद 142 में प्रदत्त अधिकार के इस्तेमाल का सर्वथा उचित मामला है। शीर्ष अदालत ने ऐसे अनेक मामलों में विवाह विच्छेद के लिये संविधान के अनुच्छेद 142 में प्रदत्त अधिकारों का इस्तेमाल किया है जिनमें न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि उनमें वैवाहिक संबंधों को बचाकर रखने की कोई संभावना नहीं है और दोनों पक्षों के बीच भावनात्मक रिश्ते खत्म हो चुके हैं। न्यायालय ने हाल में एक फैसले में पत्नी की इस दलील को अस्वीकार कर दिया कि दोनों पक्षों की सहमति के बगैर संविधान के अनुच्छेद 142 में प्रदत्त अधिकारों का इस्तेमाल करके भी विवाह इस आधार पर खत्म नहीं किया जा सकता कि अब इसे बचा कर रखने की कोई गुंजाइश नहीं हैं।

पीठ ने कहा कि यदि दोनों ही पक्ष स्थाई रूप से अलग-अलग रहने या तलाक के लिये सहमति देने पर राजी होते हैं तो ऐसे मामले में निश्चित ही दोनों पक्ष परस्पर सहमति से विवाह विच्छेद के लिये सक्षम अदालत में याचिका दायर कर सकते हैं। पीठ ने कहा कि इसके बावजूद आर्थिक रूप से पत्नी के हितों की रक्षा करनी होगी ताकिउसे दूसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़े। न्यायालय ने पति को निर्देश दिया कि वह अलग रह रही पत्नी को आठ सप्ताह के भीतर बैंक ड्राफ्ट के माध्यम से 20 लाख रुपये का भुगतान करे। इस दंपत्ति का नौ मई, 1993 को विवाह हुआ था और अगस्त 1995 में उन्हें एक संतान हुयी। हालांकि, आगे चलकर पति और पत्नी में मतभेद होने लगे और पति के अनुसार उसके साथ क्रूरता बरती जाने लगी।

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करीब दो साल बाद 1997 में पत्नी ने अपने पति का घर छोड़ दिया और वह अपने माता पिता के घर में रहने लगी। इसके बाद पति ने 1999 में हैदराबाद की कुटुम्ब अदालत में क्रूरता के आधार पर विवाह विच्छेद की याचिका दायर की थी। कुटुम्ब अदालत ने 2003 में इसे खारिज करते हुये कहा कि पति क्रूरता के आरोप साबित करने में विफल रहा है। इसके बाद, पति ने इस आदेश को उच्च न्यायालय मे चुनौती दी लेकिन वहां 2012 में उसकी अपील खारिज हो गयी। इसके बाद पति ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर करके उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी।

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