अर्णब को पत्र लिखने के मामले में महाराष्ट्र विधान सभा सचिव को SC का कारण बताओ नोटिस

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न्यायालय ने विधान सभा सचिव द्वारा 13 अक्टूबर को अर्णब गोस्वामी को पत्र लिखने को काफी गंभीरता से लिया और कहा कि पहली नजर में उन्होंने इस न्यायालय की अवमानना की है।

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने अर्णब गोस्वामी को सदन के नोटिस की जानकारी शीर्ष अदालत को देने के प्रति आगाह करते हुये कथित पत्र लिखने के मामले में शुक्रवार को विधानसभा सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी किया और दो सप्ताह के भीतर यह जवाब मांगा है कि पत्रकार को यह पत्र लिखने के कारण क्यों नहीं उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाये। न्यायालय ने विधान सभा सचिव द्वारा 13 अक्टूबर को अर्णब गोस्वामी को पत्र लिखने को काफी गंभीरता से लिया और कहा कि पहली नजर में उन्होंने इस न्यायालय की अवमानना की है। इस बीच, शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र विधानसभा विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव मामले में अर्णब गोस्वामी को गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान कर दिया। अर्णब गोस्वामी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने जब प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ को विधान सभा सचिव द्वारा लिखे गये इस पत्र के मजमून से अवगत कराया तो पीठ ने इस पर अपनी नाराजगीव्यक्त की। पीठ ने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि इस अधिकारी ने इस तरह का पत्र लिखा है कि विधान सभा की कार्यवाही गोपनीय है और इसका खुलासा नहीं किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा, ‘‘यह गंभीर मामला है और अवमानना जैसा है। ये बयान अभूतपूर्व हैं और इसकी शैली न्याय प्रशासन का अनादर करने वाली है और वैसे भी यह न्याय प्रशासन में सीधे हस्तक्षेप करने के समान है। ’’ पीठ ने कहा, ‘‘इस पत्र के लेखक की मंशा याचिककर्ता को उकसाने वाली लगती है क्योंकि वह इस न्यायालय में आया है और इसके लिये उसे दंडित करने की धमकी देने की है।’’ पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए, हम प्रतिवादी संख्या दो (विधान सभा सचिव) को कारण बताओ नोटिस कर रहे हैं कि संविधान के अनुच्छेद 129 में प्रदत्त शक्ति का इस्तेमाल करते हुये क्यों नहीं उसे न्यायालय की अवमानना के लिये दंडित किया जाना चाहिए।’’ इस पत्र का जिक्र करते हुये शीर्ष अदालत ने कहा कि काश विधान सभा सचिव को समझाया गया होता कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का अधिकार अपने आप में मौलिक अधिकार है। पीठ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगर किसी नागरिक को शीर्ष अदालत आने के लिये अनुच्छेद 32 में प्रदत्त अधिकार का इस्तेमाल करने पर डराया जाता है तो यह निश्चित की देश में न्याय के प्रशासन में गंभीर हस्तक्षेप होगा’’

न्यायालय इस बात का भी गंभीरता से संज्ञान लिया कि विधान सभा सचिव, जिन पर अर्णब गोस्वामी की याचिका की तामील की गयी थी, ने शीर्ष अदालत में पेश होने की बजाये सदन की नोटिस की जानकारी शीर्ष अदालत को देने के प्रति आगाह करते हुये पत्रकार को पत्र लिखा है। पीठ ने कहा, ‘‘हमने पाया कि यद्यपि प्रतिवादी को इसकी तामील हो चुकी थी लेकिन उसने पेश होने की बजाये याचिकाकर्ता को यह पत्र लिखा है।’’ शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में इस तथ्य का भी उल्लेख किया कि महाराष्ट्र की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने गोस्वामी को लिखे विधान सभा सचिव के पत्र के विवरण पर ‘‘स्पष्टीकरण देने या इसे न्यायोचित ठहराने में असमर्थता व्यक्त की। न्यायालय ने इसके साथ हीइस मामले में मदद करने के लिये वरिष्ठ अधिवकता अरविन्द दातार को न्याय मित्र नियुक्त कर दिया। शीर्ष अदालत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में कार्यक्रमों को लेकर महाराष्ट्र विधानसभा द्वारा अर्णब गोस्वामी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन की कार्यवाही शुरू करने के लिये जारी कारण बताओ नोटिस के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। न्यायालय ने 30 सितंबर को अर्णब गोस्वामी की याचिका पर महाराष्ट्र विधान सभा सचिव से जवाब मांगा था। गोस्वामी के वकील ने इससे पहले न्यायालय से कहा था कि उनके मुवक्किल ने विधान सभा की किसी समिति या विधान सभा की किसी भी कार्यवाही में हस्तक्षेप नहीं किया है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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