स्कॉर्पियन पनडुब्बी से संबंधित संवेदनशील जानकारी लीक
भारत की स्कॉर्पियन पनडुब्बियों की तकनीकी एवं रडार से बचने की क्षमताओं से जुड़ी विस्तृत जानकारी लीक हो गई है। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने इस मामले में नौसेना प्रमुख से रिपोर्ट मांगी है।
भारत की स्कॉर्पियन पनडुब्बियों की तकनीकी एवं रडार से बचने की क्षमताओं से जुड़ी विस्तृत जानकारी वाले संवेदनशील दस्तावेज लीक हो गए हैं। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने इस मामले में नौसेना प्रमुख से रिपोर्ट मांगी है। इन स्कॉर्पियन पनडुब्बियों का डिजाइन फ्रांसीसी पोत निर्माता डीसीएनएस ने तैयार किया है। ऑस्ट्रेलिया के ‘द ऑस्ट्रेलियन’ अखबार के अनुसार, डीसीएनएस का कुल 22,400 पन्नों का जो डाटा लीक हुआ है, उसमें भारत की छह नई पनडुब्बियों की रडार से बच निकलने की गोपनीय क्षमता की जानकारी है। इसमें उन आवृत्तियों का भी जिक्र है, जिन पर ये खुफिया जानकारी जुटाती हैं। इसके अलावा इस डाटा में यह भी दर्ज है कि ये पनडुब्बियां गति के विभिन्न स्तरों पर कितना शोर करती हैं और किस गहराई तक गोता लगा सकती हैं और इनकी रेंज और मजबूती कितनी है। ये सभी संवेदनशील और बेहद गोपनीय जानकारी हैं।
इसमें कहा गया कि ये आंकड़े पनडुब्बी के चालक दल को यह बताते हैं कि नौका पर वे किस स्थान पर जाकर दुश्मन की नजर से बचते हुए सुरक्षित तरीके से बात कर सकते हैं? आंकड़े चुंबकीय, विद्युत चुंबकीय और इन्फ्रारेड डाटा का भी खुलासा करते हैं। इसके साथ ही ये पनडुब्बी के तारपीडो प्रक्षेपण तंत्र और युद्धक तंत्र की विशिष्ट जानकारी भी देते हैं।
इस डाटा में पेरिस्कोप का इस्तेमाल करने के लिए जरूरी गति और स्थितियों का भी विवरण है। इसके अलावा पनडुब्बी के पानी की सतह पर आने के बाद प्रोपेलर से होने वाले शोर और तरंगों के स्तर का जिक्र भी इसमें है। अखबार द्वारा हासिल किए गए आंकड़ों में, पनडुब्बी के पानी के अंदर वाले संसूचकों के बारे में जानकारी देने वाले 4457 पन्ने, पानी के ऊपर लगे संसूचकों पर 4209 पन्ने, तारपीडो दागने के तंत्र से जुड़े 493 पन्ने, पनडुब्बी की संचार व्यवस्था पर 6841 पन्ने और इसके दिशासूचक तंत्रों से जुड़े 2138 पन्ने हैं। पर्रिकर ने यहां संवाददाताओं को बताया, ‘‘मैंने नौसेना प्रमुख से कहा है कि वह पूरे मामले का अध्ययन करें और पता लगाएं कि क्या लीक हुआ है? उसमें हमारे बारे में क्या जानकारी है और कितनी जानकारी है? मुझे पता चला है कि यह रात लगभग 12 बजे हुआ। मुझे लगता है कि यह हैकिंग है। हम इस सबका पता लगा लेंगे।’’ रक्षा मंत्री ने कहा कि वह इस लीक को 100 फीसदी नहीं मानते क्योंकि अंतिम एकीकरण का एक बड़ा हिस्सा भारत के पास है। उन्होंने कहा कि आने वाले कुछ दिनों में तस्वीर साफ हो जाएगी।
नौसेना ने एक बयान में कहा, ‘‘स्कॉर्पीन पनडुब्बियों से जुड़े दस्तावेजों की संदिग्ध लीक की जानकारी विदेशी मीडिया हाउस द्वारा दी गई है।’’ नौसेना ने कहा, ‘‘उपलब्ध जानकारी की जांच रक्षा मंत्रालय के मुख्यालय पर की जा रही है और संबंधित विशेषज्ञों द्वारा विश्लेषण किया जा रहा है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि लीक का स्रोत विदेश में है न कि भारत में।’’ ऑस्ट्रेलियाई मीडिया की खबर के अनुसार, इस लीक के बाद ऑस्ट्रेलिया में उसकी अपनी नौसेना के भावी बेड़े से जुड़ी बेहद गोपनीय जानकारी की सुरक्षा को लेकर डर पैदा हो गया है। क्योंकि फ्रांसीसी कंपनी ने ऑस्ट्रेलिया की पनडुब्बियों के बेड़े को डिजाइन करने की 50 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर की निविदा में जीत हासिल की है।
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैलकॉम टर्नबुल ने कहा कि यह बात ध्यान देने योग्य है कि डीसीएनएस जो पनडुब्बी भारत के लिए बना रही थी, वह उस मॉडल से पूरी तरह अलग है, जो वह ऑस्ट्रेलिया के लिए बनाएगी। जो जानकारी लीक की गई, वह कई साल पुरानी है। उनके हवाले से कहा गया, ‘‘फिर भी, कोई भी गोपनीय जानकारी लीक होना चिंता का विषय है।’’ द ऑस्ट्रेलियन की खबर के अनुसार, डीसीएनएस ने मंगलवार को ऑस्ट्रेलिया को एक बार फिर यह आश्वासन देने की कोशिश की कि भारतीय स्कॉर्पियन पनडुब्बी के बारे में जो जानकारी लीक हुई है, ऐसा ऑस्ट्रेलिया के लिए प्रस्तावित पनडुब्बी के साथ नहीं होगा। कंपनी ने यह भी कहा कि यह लीक संभवत: फ्रांस नहीं बल्कि भारत की ओर से हुई होगी।
कंपनी ने कहा, ‘‘ऑस्ट्रेलियाई व्यवस्था में तकनीकी जानकारी का अनियंत्रित होना संभव नहीं है।’’ उसने कहा, ‘‘जानकारी तक अनाधिकृत पहुंच को रोकने के लिए डीसीएनएस के बीच कई और स्वतंत्र नियंत्रण व्यवस्थाएं हैं। हर डेटा का लेन-देन कूट भाषा में है और यह रिकॉर्ड रहता है। भारत के मामले में, डीसीएनएस डिजाइन का निर्माण एक स्थानीय कंपनी ने किया है। डीसीएनएस प्रदाता है लेकिन तकनीकी जानकारी का नियंत्रक नहीं है।’’ द ऑस्ट्रेलियन को बताया गया कि भारत के लिए स्कॉर्पियन का डेटा वर्ष 2011 में फ्रांस में लिखा गया था। ऐसा संदेह है कि फ्रांस में उसी साल इसे फ्रांसीसी नौसेना के एक पूर्व अधिकारी ने निकाल लिया था। यह अधिकारी उस समय डीसीएनएस का सबकॉन्ट्रैक्टर था।
उसने कहा, ‘‘ऐसा माना जा रहा है कि उसके बाद डेटा को दक्षिणपूर्वी एशिया की कंपनी में ले जाया गया। शायद एक क्षेत्रीय नौसेना की व्यावसायिक शाखा की मदद के लिए ऐसा किया गया। इसके बाद इसे एक तीसरे पक्ष द्वारा क्षेत्र की किसी दूसरी कंपनी को दे दिया गया। इसे बाद में ऑस्ट्रेलिया की एक कंपनी को मेल के जरिए डाटा डिस्क पर भेज दिया गया।’’ कंपनी ने कहा, ‘‘यह बात स्पष्ट नहीं है कि एशिया में यह डेटा किस हद तक साझा किया गया है और क्या इसे विदेशी खुफिया एजेंसियों ने हासिल किया है?’’ हालांकि कुछ दस्तावेजों पर 2013 की तारीख है। द ऑस्ट्रेलियन द्वारा जुटाए गए डेटा में डीसीएनएस की कुछ अलग गोपनीय फाइलें भी हैं, जो चिली को फ्रांसीसी पोत बेचने की योजना और रूस को मिस्ट्रल श्रेणी के पोत बेचने के बारे में हैं। डीसीएनएस की इन परियोजनाओं का भारत से कोई संबंध नहीं है।
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