मतभेदों के बीच सीताराम येचुरी फिर चुने गये माकपा महासचिव

Sitaram Yechury among the differences, again elected CPI (M) general secretary
[email protected] । Apr 22 2018 4:37PM

65 वर्षीय येचुरी ने वर्ष 2015 में विशाखापत्तनम में संपन्न 21 वीं पार्टी कांग्रेस में प्रकाश करात का स्थान लिया था और पार्टी महासचिव बने थे।

हैदराबाद। कई हफ्ते की अनिश्चितता के बाद माकपा ने आज यहां अपनी 22 वीं पार्टी कांग्रेस में सीताराम येचुरी को एकमत से महासचिव चुन लिया। माकपा की नवनिर्वाचित 95 सदस्यीय केंद्रीय कमेटी ने महासचिव पद पर दूसरी बार 65 साल के येचुरी के निर्वाचन को मंजूरी दी। येचुरी ने 2015 में विशाखापत्तनम में हुई 21 वीं पार्टी कांग्रेस में महासचिव पद पर प्रकाश करात की जगह ली थी। पार्टी कांग्रेस के समापन सत्र को संबोधित करते हुए येचुरी ने कहा, ‘‘हमारी कांग्रेस असरकारी रही, विस्तृत चर्चा हुई और हमने इस कांग्रेस में अहम फैसले लिए। हमारे नेताओं - कार्यकर्ताओं एवं हमारे वर्ग शत्रु में यदि कोई संदेश जाना चाहिए तो वह यह है कि माकपा एक एकजुट पार्टी के तौर पर उभरी है।’’

बीते 18 अप्रैल से शुरू हुई पार्टी कांग्रेस में येचुरी के उत्तराधिकारी के लिए कई नामों पर चर्चा हुई। पार्टी सूत्रों ने बताया कि त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री माणिक सरकार, पोलित ब्यूरो की सदस्य बृंदा करात और सचिव बी वी राघवुलु संभावित दावेदारों में शामिल थे। प्रकाश करात, बृंदा करात, केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन, केरल में माकपा के नेता एस रामचंद्रन पिल्लई और पश्चिम बंगाल के नेता बिमान बसु केंद्रीय कमेटी के सदस्यों में शामिल हैं।येचुरी की इस राजनीतिक लाइन को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा है कि भाजपा से मुकाबले के लिए माकपा को कांग्रेस के साथ गठबंधन या तालमेल करना चाहिए कि नहीं। 

कल पार्टी नेतृत्व ने इस बाबत बीच का रास्ता चुना। पार्टी ने तय किया कि वह कांग्रेस के साथ ‘‘कोई तालमेल नहीं’’ वाले हिस्से को हटाकर इस मुद्दे पर अपने आधिकारिक मसौदे में संशोधन करेगी। पार्टी के इस फैसले को येचुरी खेमे की जीत की तरह देखा जा रहा है। प्रकाश करात द्वारा समर्थित आधिकारिक मसौदे में कहा गया था कि माकपा को ‘‘कांग्रेस पार्टी के साथ किसी तालमेल या चुनावी गठबंधन के बगैर’’ सभी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक ताकतों को एकजुट करना चाहिए। लेकिन संशोधित मसौदे में अब लिखा गया है कि ‘‘कांग्रेस पार्टी के साथ राजनीतिक गठबंधन के बगैर’’ पार्टी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक ताकतों को एकजुट कर सकती है। इससे माकपा और कांग्रेस के बीच चुनावी तालमेल का रास्ता खुला रहेगा। 

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