कुछ लोग राजनीतिक स्वार्थ के लिए संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा पर चोट का प्रयास कर रहें: मोदी
प्रसिद्द भारतीय विद्वानों की प्रमुख व्याख्याओं को भगवत् गीता की व्यापक और तुलनात्मक समझ प्राप्त करने के लिए एक साथ लाया गया है। धर्मार्थ ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित पांडुलिपि असाधारण विविधता और भारतीय सुलेख की सूक्ष्मता के साथ तैयार की गयी है, जिसमें शंकर भाष्य से लेकर भाषानुवाद तक को शामिल किया गया है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत का लोकतन्त्र विचारों की और काम की आज़ादी देता है और साथ ही जीवन के हर क्षेत्र में समान अधिकार देता है। उन्होंने कहा कि यह आज़ादी उन लोकतान्त्रिक संस्थाओं से मिलती है, जो संविधान की संरक्षक हैं। उन्होंने कहा कि इसलिए जब भी अपने अधिकारों की बात होती है तो लोगों को अपने लोकतान्त्रिक कर्तव्यों को भी याद रखना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘आज कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इसी कोशिश में रहते हैं कि कैसे संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा, उनकी विश्वसनीयता पर चोट पहुंचाई जाए। हमारी संसद हो, न्यायपालिका हो, यहां तक कि सेना भी… उस पर भी अपने राजनीतिक स्वार्थ में हमले करने की कोशिश होती है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह प्रवृत्ति देश को बहुत नुकसान करती है।’’ प्रधानमंत्री ने हालांकि संतोष जताया कि ऐसे लोग देश की मुख्यधारा का प्रतिनिधित्व नहीं करतें। उन्होंने कहा कि आज एक बार फिर भारत अपने सामर्थ्य को संवार रहा है ताकि वो पूरे विश्व की प्रगति को गति दे सके और मानवता की और ज्यादा सेवा कर सके।श्रीमद्भगवद्गीता हमें मार्ग दिखाती है, हम पर कोई आदेश नहीं थोपती।
— Narendra Modi (@narendramodi) March 9, 2021
श्रीमद्भगवद्गीता के कर्मयोग को अपना मंत्र बनाकर देश आज गांव-गरीब, किसान-मजदूर, दलित-पिछड़े, समाज के हर वंचित व्यक्ति की सेवा कर उनका जीवन बदलने के लिए प्रयास कर रहा है। pic.twitter.com/r6an3nZZlK
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कोरोना काल में भारत की ओर से विश्व के देशों के लिए किए गए कार्यों को मानवता की सेवा बताते हुए मोदी ने कहा, ‘‘हाल के महीनों में दुनिया ने भारत के जिस योगदान को देखा है, आत्मनिर्भर भारत में वही योगदान और अधिक व्यापक रूप में दुनिया के काम आयेगा।’’ इन पांडुलिपियों का प्रकाशन धर्मार्थ न्यास द्वारा किया गया है। डॉ करण सिंह इसके अध्यक्ष हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय के मुताबिक सामान्य तौर पर भगवत् गीता को एकल व्याख्या के साथ प्रस्तुत करने का प्रचलन है। पहली बार, प्रसिद्द भारतीय विद्वानों की प्रमुख व्याख्याओं को भगवत् गीता की व्यापक और तुलनात्मक समझ प्राप्त करने के लिए एक साथ लाया गया है। धर्मार्थ ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित पांडुलिपि असाधारण विविधता और भारतीय सुलेख की सूक्ष्मता के साथ तैयार की गयी है, जिसमें शंकर भाष्य से लेकर भाषानुवाद तक को शामिल किया गया है।
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