आप सरकार की अपील पर सुनवाई करेगा उच्चतम न्यायालय

[email protected] । Aug 5 2016 4:10PM

उच्चतम न्यायालय राजधानी को राज्य घोषित करने की मांग से जुड़े दिल्ली सरकार के दीवानी मुकदमे और उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ आप सरकार की अपील की एक साथ सुनवाई करेगा।

उच्चतम न्यायालय राष्ट्रीय राजधानी को राज्य घोषित करने की मांग से जुड़े दिल्ली सरकार के दीवानी मुकदमे और दिल्ली को एक केंद्र शासित प्रदेश एवं उपराज्यपाल को उसका प्रशासनिक प्रमुख बताने वाले उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ आप सरकार की अपील की अब एक साथ सुनवाई करेगा। अरविंद केजरीवाल सरकार ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि वह उच्च न्यायालय के गुरुवार के निर्णय के खिलाफ जल्द ही एक याचिका दायर करेगी जिसके बाद न्यायमूर्ति एके सिकरी एवं न्यायमूर्ति एनवी रमण की पीठ ने यह बात कही।

आप सरकार का पहले का एक मुकदमा जब सुनवाई के लिए आया तो न्यायालय ने कहा कि आप सरकार को अपने पहले के दीवानी मुकदमे को आगे बढ़ाने के बजाए दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली एक याचिका दायर करनी चाहिए।

न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति एनवी रमन की पीठ ने कहा, ‘‘आपको दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देनी होगी। उच्च न्यायालय ने मुद्दे पर सही फैसला दिया है या गलत, उस पर उच्चतम न्यायालय एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) के तहत फैसला करेगा। इस मुकदमे का अब क्या मतलब रह जाता है? कार्यवाही को दोहराने का क्या मतलब है?’’ न्यायालय की ओर से यह टिप्पणी तब की गई, जब अरविंद केजरीवाल की ओर से पेश हुई वकील इंदिरा जयसिंह ने पीठ को बताया कि उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ जल्दी ही एक ताजा अपील शीर्ष अदालत में दायर की जाएगी। उन्होंने दिल्ली सरकार की ओर से पहले दायर मूल दीवानी मामले की कार्यवाही को स्थगित करने की मांग की। इस मूल मामले के तहत दिल्ली सरकार ने कई राहतों की मांग की थी, जिनमें राष्ट्रीय राजधानी को केंद्र शासित प्रदेश के स्थान पर राज्य घोषित करने की मांग शामिल थी। उन्होंने कहा कि मुकदमे और जल्दी ही दायर की जाने वाली विशेष अवकाश याचिका पर एकसाथ सुनवाई की जाए। केंद्र का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी और सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने दिल्ली सरकार की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि वे एक ही चीज के लिए दो समानांतर रास्ते नहीं अपना सकते।

पीठ ने दिल्ली सरकार की याचिकाओं में से एक याचिका को अनावश्यक करार दिया जिसमें उसने उपराज्यपाल के साथ शक्तियों के संघर्षों संबंधी अपनी याचिका पर उच्च न्यायालय को फैसला सुनाने से रोकने के निर्देश दिए जाने की मांग की थी। पीठ ने संक्षिप्त सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार से कहा कि वह उसे उन मामलों के बारे में बताए जिनका पहले ही उच्च न्यायालय ने गुरुवार को सुनाए फैसले में उल्लेख किया था। पीठ ने दिल्ली सरकार का निवेदनों पर गौर किया और मामले की सुनवाई 29 अगस्त के लिए स्थगित कर दी। उसने स्पष्ट किया कि मुकदमा और एसएलपी पर एक साथ सुनवाई होगी। प्रधान न्यायाधीश इस बात पर फैसला करेंगे कि इस मामले पर कौन सी पीठ सुनवाई करेगी। अदालत ने गुरुवार को फैसला सुनाया था कि दिल्ली संविधान के तहत केन्द्र शासित प्रदेश ही है और उपराज्यपाल इसके प्रशासनिक प्रमुख हैं। मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि दिल्ली से संबंधित विशेष संवैधानिक प्रावधान 239 एए केन्द्र शासित प्रदेश से संबंधित अनुच्छेद 239 के प्रभाव को ‘‘कम’’ नहीं करता और इसलिए प्रशासनिक मुद्दों में उपराज्यपाल की सहमति ‘‘अनिवार्य’’ है। पीठ ने आप सरकार की यह दलील स्वीकार नहीं की कि उपराज्यपाल अनुच्छेद 239 एए के तहत विधान सभा द्वारा बनाए गए कानूनों के संबंध में केवल मुख्यमंत्री और उसके मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करने को बाध्य हैं। पीठ ने इसे ‘आधारहीन’ बताया।

पीठ ने 194 पृष्ठीय अपने फैसले में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 239 और अनुच्छेद 239 एए को दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र कानून 1991 तथा दिल्ली एनसीटी सरकार कामकाज नियम 1993 के साथ पढ़ने पर यह साफ नजर आता है कि दिल्ली उसके संबंध में विशेष प्रावधान संबंधी अनुच्छेद 239 एए को जोड़ने वाले संविधान (69वां संशोधन) कानून 1991 के बाद भी केन्द्र शासित प्रदेश बना हुआ है। दिल्ली सरकार की लगभग हर बात खारिज करते हुए अदालत ने हालांकि उसकी इस बात पर सहमति जताई कि उपराज्यपाल को विशेष लोक अभियोजकों की नियुक्ति में उसकी सलाह पर काम करना होगा।

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