India's Chicken Neck Part VII: चिकेन नेक का विकल्प कालादान प्रोजेक्ट

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Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Feb 25 2023 7:49PM

दक्षिण पूर्व एशिया के देशों तक पहुंच बनाने के लिए और इंफ्रांस्ट्रक्चर तैयार करने के लिए 2008 में कालादान मल्टी मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट की रूप रेखा तैयार की गई।

भारत ने 90 के दशक में लुक ईस्ट पॉलिसी अपनाई। यानी पूर्वी एशिया के देशों के साथ संबंध मजबूत बनाने शुरू किए। जिसे 2014 में मोदी सरकार ने एक्ट ईस्ट पॉलिसी का नाम दिया और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ संबंधों पर ज्यादा जोड़ देना शुरू किया। दक्षिण पूर्व एशिया के देशों तक पहुंच बनाने के लिए और इंफ्रांस्ट्रक्चर तैयार करने के लिए 2008 में कालादान मल्टी मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट की रूप रेखा तैयार की गई। इसके तहत भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों के साथ-साथ दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों तक पहुंचने के लिए सबसे छोटा रास्ता बनाना था। इस प्रोजक्ट के चार चरण थे। 

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पहला- इसमें कोलकाता को 539 किलोमीटर दूर म्यांमार के सेटवे बंदरगाह को समुद्र के रास्ते जोड़ा जाना था। 

दूसरा- सेटवे बंदरगाह से कालादान नदी के रास्ते 158 किलोमीटर दूर म्यांमार के पलेटवा तक पहुंचना था।

तीसरा- पलेटवा से 109 किलोमीटर दूर सड़क के रास्ते भारत के मिजोरम के जोरिनपुई तक पहुंचना था। 

चौथा- जोरिनपुई से ये सड़क 100 किलोमीटर दूर मिजोरम के लांगचलाई तक पहुंचेगी। जहां से आईजोल होते हुए असम चली जाएगी। 

2008 में इस प्रोजेक्ट को मंजूरी मिली थी और उस वक्त इसकी लागत 535.91 करोड़ रुपये आने का अनुमान था। 2015 में लागत बढ़कर 2904 करोड़ रुपये हो गई। इसका पूरा खर्चा भारत उठा रहा है।

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चिकेन नेक का विकल्प कालादान प्रोजेक्ट

ये वो मार्ग है जो म्यानमांर को कोलकाता को जोड़ेगा और फिर ये रास्ता मिजोरम होते हुए असम तक पहुंचेगा। भारत के दूसरे राज्यों को पूर्वोत्तर से जोड़ने का एकमात्रा रास्ता चिकेन नेक से होकर जाता है। लेकिन जैसा कि हमने आपको बताया कि चिकेन किसी कारण से कट जाता है तो भारत का पूरे पूर्वोत्तर से संबंध कट जाएगा। इसके ऊपर अंगूठे के आकार का इलाका चुंबी वैली का है। जब डोकालाम का विवाद चल रहा था तब इसी चुंबी वैली से चीन के हमले का खतरा बढ़ रहा था। इस बात का डर था कि चीन कहीं चुंबी वैली से हमला करके चिकेन नेक का रास्ता न काट दे। लेकिन अब पूर्वोत्तर तक पहुंचने का दूसरा रास्ता भारत द्वारा तैयार किया जा रहा है। भारत को इस प्रोजेक्ट के दो फायदे हैं-

1.) चीन की चुनौती का सामना करना

2.) अपने व्यापार को साउथ ईस्ट एशिया तक फैलाना

इस पूरे प्रोजेक्ट में कुल 33 पुल हैं जिनमें 8 भारत में बन रहे हैं

चीन के साथ जब 2017 में डोकलाम में गतिरोध हुआ था उस वक्त भी यह चिंता बढ़ गई थी कि चीन नॉर्थ ईस्ट से भारत का संपर्क काट सकता है। लेकिन कालादान प्रोजेक्ट पूरा हो जाने पर नॉर्थ ईस्ट पहुंचने का वैकल्पिक रास्ता मिल जाएगा। इस पूरे प्रोजेक्ट में कुल 33 पुल हैं जिनमें 8 भारत में बन रहे हैं। सभी पुल इस तरह बन रहे हैं जिसमें सेना के टैंक, बख्तरबंद गाड़ियां जैसे भारी सैन्य साजो सामान भी आसानी से पहुंचाए जा सकते हैं। चीन लगातार म्यामांर पर काफी रकम खर्च कर रहा है। वह म्यांमार में इकॉनमिक कॉरिडोर बना रहा है और म्यांमार में 13 बिलियन डॉलर से ज्यादा निवेश किया है। भारत भी अब म्यांमार में निवेश बढ़ा रहा है। Next Episode- 

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