प्रधान न्यायाधीश मध्यस्थता करें तो वार्ता संभवः बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी

[email protected] । Mar 21 2017 5:46PM

बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश की मध्यस्थता में वह संवाद को तैयार है, लेकिन पूर्व के अनुभवों को देखते हुए इस मामले का हल आपसी बातचीत से होना मुमकिन नहीं है।

लखनऊ। अयोध्या के विवादित स्थल मामले में सभी पक्षों को आपसी बातचीत से मसला सुलझाने के उच्चतम न्यायालय के सुझाव पर बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी (बीएमएसी) ने आज कहा कि प्रधान न्यायाधीश की मध्यस्थता में वह संवाद करने को तैयार हैं, लेकिन पूर्व के अनुभवों को देखते हुए इस मामले का हल आपसी बातचीत से होना मुमकिन नहीं है। बीएमएसी के संयोजक जफरयाब जीलानी ने यहां कहा, ‘‘अगर प्रधान न्यायाधीश मध्यस्थता करें, तो हम बातचीत के लिये तैयार हैं। हमें उन पर भरोसा है। अगर वह कोई टीम मनोनीत करते हैं तो भी हम इसके लिये तैयार हैं, मगर अदालत के बाहर कोई समझौता मुमकिन नहीं है। अगर उच्चतम न्यायालय इस बारे में कोई आदेश पारित करता है तो हम उसे देखेंगे।’’

उधर, आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी ने कहा, ‘‘अगर उच्चतम न्यायालय ने ऐसा कोई सुझाव रखा है तो बातचीत की जाएगी। प्रधान न्यायाधीश ने कहा है कि वह भी इस बातचीत के दौरान मौजूद रहेंगे, यह बहुत अच्छी बात है।’’ उन्होंने कहा कि यह बातचीत का कोई लम्बा दौर नहीं होगा। दो-चार बैठकों के बाद आठ-दस दिन में मामला साफ हो जाएगा। विवादित स्थल प्रकरण पर पहले भी कई बार बातचीत होने संबंधी सवाल पर मौलाना रहमानी ने कहा है कि जब प्रधान न्यायाधीश ने मध्यस्थता की बात कही है, तो बातचीत करने में कोई हर्ज नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या मंदिर विवाद को ‘संवेदनशील’ और ‘भावनात्मक मामला’’ बताते हुये आज कहा कि इस विवाद का हल तलाश करने के लिए सभी संबंधित पक्षों को नये सिरे से प्रयास करने चाहिये।

जीलानी ने कहा कि 31 साल गुजर चुके हैं और उनका मानना है कि अब यह मसला आपसी बातचीत से नहीं सुलझ सकेगा। उन्होंने कहा, ‘‘वर्ष 1986 में कांची कामकोटि के शंकराचार्य और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष अली मियां के बीच बाबरी मस्जिद मामले पर बातचीत हुई थी, मगर वह नाकाम रही थी। बाद में 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, उस वक्त के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और भाजपा नेता भैरों सिंह शेखावत के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ लेकिन वह बेनतीजा रही। उसके बाद प्रधानमंत्री बने नरसिम्हा राव ने एक समिति बनायी और कांग्रेस नेता सुबोधकांत सहाय के जरिये बातचीत की शुरुआत की कोशिश की, लेकिन 1992 में मस्जिद ढहा दी गयी।’’

प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ऐसे धार्मिक मुद्दों को बातचीत से सुलझाया जा सकता है और उन्होंने सर्वसम्मति पर पहुंचने के लिए मध्यस्थता करने की पेशकश भी की। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘सर्वसम्मति से किसी समाधान पर पहुंचने के लिए आप नये सिरे से प्रयास कर सकते हैं। अगर जरुरत पड़ी तो आपको इस विवाद को खत्म करने के लिए कोई मध्यस्थ भी चुनना चाहिये। अगर दोनों पक्ष चाहते हैं कि मैं उनके द्वारा चुने गये मध्यस्थों के साथ बैठूं तो मैं इसके लिए तैयार हूं। यहां तक कि इस उद्देश्य के लिए मेरे साथी न्यायाधीशों की सेवाएं भी ली जा सकती हैं।’’ उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी भाजपा नेता सुब्रहमण्यम स्वामी की इस मामले पर तत्काल सुनवायी की मांग पर की। स्वामी ने कहा कि इस मामले को छह साल से भी ज्यादा समय हो गया है और इस पर जल्द से जल्द सुनवायी किये जाने की जरूरत है।

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