आखिरकार, किस दबाव में अखिलेश बार-बार बदल रहे हैं उम्मीदवार

Akhilesh Yadav
ANI
अजय कुमार । Mar 29 2024 5:14PM

2022 के विधान सभा चुनाव में भी अखिलेश ने कई उम्मीदवारों के टिकट नामांकन के बाद बदल दिये थे और दो वर्षो के बाद लोकसभा चुनाव में भी अभी तक अखिलेश आधा दर्जन उम्मीदवारों के टिकट बदल चुके हैं।

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव एक बार फिर 2022 वाली गलती दोहरा रहे हैं, जिसकी भारी कीमत उनको चुकानी पड़ सकती है। दरअसल मामला बार-बार सपा प्रत्याशियों के टिकट बदलने का है। 2022 के विधान सभा चुनाव में भी अखिलेश ने कई उम्मीदवारों के टिकट नामांकन के बाद बदल दिये थे और दो वर्षो के बाद लोकसभा चुनाव में भी अभी तक अखिलेश आधा दर्जन उम्मीदवारों के टिकट बदल चुके हैं। यह सब तब हो रहा है जबकि यूपी में पूरी 80 सीटें जीतने का दावा कर रही समाजवादी पार्टी के नेतृत्व टिकटों को लेकर लम्बी तैयारी कर चुका है। फिर भी टिकटों की अदला-बदली से आलाकमान जूझ रहा है। पार्टी ने इस बार महीनों पहले उम्मीदवारी को लेकर जमीनी मंथन के दावे किए थे, लोकसभा क्षेत्रवार बैठकें हो रही थीं, फिर भी रोज नाम बदले जा रहे हैं। इसके चलते क्षेत्र में जनता के बीच पहुंचने की जगह उम्मीदवार और दावेदार दोनों ही टिकट पाने व बचाने में ही अपनी पूरी ताकत झोंके हुए हैं। हालात यह है कि बड़े-बड़े नेताओं को भी टिकट की अदला-बदली का शिकार होना पड़ रहा है। इसी क्रम में 30 जनवरी को बदायूं से धर्मेंद्र यादव उम्मीदवार बने, 20 फरवरी को उनकी जगह शिवपाल को टिकट दे दिया गया। फिर 19 फरवरी को मिश्रिख से रामपाल राजवंशी को टिकट मिला, 16 मार्च को उनके बेटे मनोज राजवंशी उम्मीदवार बने। अब मनोज की पत्नी संगीता उम्मीदवार हैं। 15 मार्च को बिजनौर से यशवीर सिंह को टिकट मिला और दस दिन बाद 24 मार्च को उनका टिकट बदलकर दीपक सैनी को दे दिया गया। 16 मार्च को महेंद्र नागर नोएडा से प्रत्याशी बने, 20 मार्च को राहुल अवाना ने जगह ले ली। 28 को फिर नागर प्रत्याशी हो गए। 24 मार्च को मुरादाबाद से एसटी हसन को टिकट मिला। 26 को उन्होंने पर्चा भरा। 27 को रूचि वीरा को सिंबल देकर नामांकन करवा दिया गया।

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बताते चलें समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने पिछले साल नवंबर से ही जिले व लोकसभा क्षेत्रवार संगठन के पदाधिकारियों के साथ बैठक का सिलसिला शुरू कर दिया था। जमीनी मुद्दों के अलावा संभावित चेहरों पर भी चर्चा की गई थी। जिला स्तर से प्रत्याशियों के नाम भी मांगे गए थे। 30 जनवरी को जब सपा ने 16 प्रत्याशियों की पहली सूची घोषित की तो लगा कि पार्टी का इस बार जमीनी तैयारी व उम्मीदवारी दोनों को लेकर होमवर्क बेहतर है। लेकिन, चुनाव करीब आते-आते टिकट काटने की पुरानी बीमारी उभर आई है। समाजवादी पार्टी की घोषित होने वाली कमोबेश हर सूची में किसी न किसी सीट से उम्मीदवार बदल जा रहा है। पार्टी अब तक 6 सीटों पर चेहरे बदल चुकी है। मिश्रिख और नोएडा में तो तीन-तीन बार टिकट बदले जा चुके हैं। मुरादाबाद में तीन दिन में दो उम्मीदवार घोषित हुए, जिसे लेकर अंतर्विरोध संभालना पार्टी के लिए मुश्किल हो रहा है।

ऐसा ही अंतरविरोध 2022 के विधानसभा चुनाव में भी टिकटों को लेकर सपा में देखने को मिला था। अवध, पूर्वांचल से लेकर पश्चिम तक उम्मीदवार घोषित होते रहे, टिकट कटते रहे और फिर नए नाम जुड़ते रहे। इलाहाबाद, आगरा, लखनऊ, अमरोहा, मथुरा, गोंडा, अमेठी, उरई, कालपी, संत कबीरनगर, देवरिया, भदोही आदि जिलों की सीटों पर नामों की उठापटक खूब चली। इसमें, अधिकतर सीटों पर सपा को हार का सामना करना पड़ा। स्थिति यह रही कि बाद में सपा ने प्रत्याशियों की आधिकारिक सूची जारी करना ही बंद कर दी। सीधे उम्मीदवार को फार्म ए व बी जारी किए जाने लगे। लोकसभा चुनाव के लिये सपा अब तक बदायूं, मिश्रिख, नोएडा, मुरादाबाद, बिजनौर और संभल के टिकट बदल चुकी हैं। मेरठ के कई नेता लखनऊ में डेरा डाले हुए हैं। यहां से भानु प्रताप सिंह का टिकट कटना तय माना जा रहा है। सूत्रों के अनुसार पूर्वांचल और बुंदलेखंड की भी एक-एक सीट पर प्रत्याशी बदले जाने की चर्चा है। यहां उम्मीदवार घोषित होने के बाद टिकट की आस लगाए हुए दूसरे दावेदार नेतृत्व के सामने कई बार अपनी अर्जी लगा चुके हैं, जिस पर विचार करने का आश्वासन भी दिया गया है।

कुल मिलाकर अखिलेश परिवार से लेकर आजम खान जैसे नेताओं से परेशान हैं तो कुछ मुस्लिम धर्मगुरू भी अखिलेश पर टिकट के लिये दबाव डाल रहे हैं, जिस कारण अखिलेश का मन लगातार बदलता रहता है। जिसका खामियाजा समाजवादी पार्टी को उठाना पड़ सकता है।

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