Yes Milord: सिर्फ भारतीयों को रहने का अधिकार, SC ने किन मुस्लिमों को कहा- निकल जाओ यहां से

जस्टिस सूर्य़कांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस कोटेश्वर सिंह की बेंच ने कहा कि भारत में रहने का अधिकार सिर्फ नागरिकों को है। विदेशी नागरिकों के साथ विदेशी अधिनियम के अनुसार व्यवहार किया जाएगा। चाहे उन्हें शरणार्थी का दर्जा मिला हो या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट से रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर बड़ी टिप्पणी सामने आई है। अदालत ने साफ कह दिया है कि भारत में रहने का अधिकार केवल भारतीयों को है। अवैध प्रवासियों को कानून के तहत ही देखा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने 8 मई को एक अहम फैसले में रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर दायर याचिकाओँ पर सख्त रूख अपनाया। अदालत ने दिल्ली से रोहिग्यां प्रवासियों के कथित निर्वासन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। जस्टिस सूर्य़कांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस कोटेश्वर सिंह की बेंच ने कहा कि भारत में रहने का अधिकार सिर्फ नागरिकों को है। विदेशी नागरिकों के साथ विदेशी अधिनियम के अनुसार व्यवहार किया जाएगा। चाहे उन्हें शरणार्थी का दर्जा मिला हो या नहीं।
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वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गुंजालविस और प्रशांत भूषण ने याचिका दाखिल कर दावा किया कि रोहिंग्या म्यांमार में नरसंहार का शिकार हो रहे हैं और संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें शरणार्थी का दर्जा दिया है। इसलिए उन्हें भारत में रहने का अधिकार मिलना चाहिए। वहीं भारत सरकार की ओऱ से सॉ़लिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि भारत संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन का हिस्सा नहीं है। यूएनएचआरसी द्वारा दिया गया शरणार्थी दर्जा भारत के लिए बाध्यकारी नहीं है। पीठ को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले असम और जम्मू-कश्मीर से रोहिंग्या मुसलमानों के निर्वासन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, जब केंद्र ने भारत में उनकी उपस्थिति पर सुरक्षा चिंता व्यक्त की थी। साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभावों को उजागर किया था।
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सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि महिलाओं और बच्चों सहित यूएनएचसीआर कार्ड रखने वाले कुछ शरणार्थियों को पुलिस अधिकारियों ने कल देर रात गिरफ्तार कर लिया और बृहस्पतिवार को सुनवाई होने के बावजूद निर्वासित कर दिया। न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा कि यदि वे (रोहिंग्या) सभी विदेशी हैं और यदि वे विदेशी अधिनियम के अंतर्गत आते हैं, तो उनके साथ विदेशी अधिनियम के अनुसार ही व्यवहार किया जाना चाहिए। अदालत ने मामले की अंतिम सुनवाई करने का फैसला किया और सुनवाई 31 जुलाई के लिए स्थगित कर दी।
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