Jan Gan Man: Uniform Civil Code लाये जाने की अटकलों के बीच Indian Civil Code की माँग क्यों होने लगी?

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ANI
संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 44 के माध्यम से 'समान नागरिक संहिता' की कल्पना की थी ताकि सबको समान अधिकार और समान अवसर मिलें और देश की एकता अखंडता मजबूत हो लेकिन आज तक 'समान नागरिक संहिता या भारतीय नागरिक संहिता' का ड्राफ्ट भी नहीं बनाया गया।

नमस्कार, प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम जन गण मन में आप सभी का स्वागत है। देश में समान नागरिक संहिता लाने की बढ़ती मांग के बीच इस पर तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं भी सामने आ रही हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत कई मुस्लिम संगठन जहां इसके विरोध में आवाज उठा रहे हैं वहीं बुद्धिजीवी मुस्लिम इसके पक्ष में आवाज बुलंद कर रहे हैं। केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा है कि समान नागरिक संहिता सभी समुदायों को समान न्याय देने का संवैधानिक उद्देश्य है। आरिफ मोहम्मद खान ने कहा है कि समान नागरिक संहिता को लेकर एक गलत विमर्श गढ़ा जा रहा है।

एनआईडी फाउंडेशन द्वारा आयोजित ‘इंडिया माइनॉरिटी कॉन्क्लेव, 2023 को संबोधित करते हुए आरिफ मोहम्मद खान ने यह भी कहा कि समान नागरिक संहिता को अपनाने से हमारी धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप नहीं होगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘समान नागरिक संहिता के प्रावधान विभिन्न समुदायों से संबंधित महिलाओं को समान न्याय प्रदान करने के लिए हैं, चाहे वह वैवाहिक विवाद हो या संपत्ति विवाद।’’ आरिफ मोहम्मद खान ने कहा है कि ‘‘हमारे देश में विभिन्न समुदायों द्वारा अपनाई गई व्यक्तिगत कानूनों की अलग-अलग परिभाषाओं के कारण महिलाओं के साथ अन्याय हुआ है और इसलिए एक ऐसा समान कानून लाने की आवश्यकता है जिसमें सभी समुदायों के लिए समान प्रावधान हों।’’

दूसरी ओर, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड हो या जमीयत उलेमा-ए-हिंद...यह लोग मजहब के नाम पर बातें तो बड़ी-बड़ी करते हैं लेकिन आम गरीब मुस्लिमों के हितों के लिए इन्होंने आज तक कुछ नहीं किया। इन्हें समझना होगा कि विवाह की न्यूनतम उम्र, विवाह विच्छेद (तलाक) का आधार, गुजारा भत्ता, गोद लेने का नियम, विरासत और वसीयत का नियम तथा संपत्ति का अधिकार सहित उपरोक्त सभी विषय "सिविल राइट, ह्यूमन राइट, जेंडर जस्टिस, जेंडर इक्वालिटी और राइट टू लाइफ" से सम्बन्धित हैं जिनका न तो मजहब से किसी तरह का संबंध है और न तो इन्हें धार्मिक या मजहबी व्यवहार कहा जा सकता है, लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी धर्म या मजहब के नाम पर महिला-पुरुष में भेदभाव जारी है। हमारे संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 44 के माध्यम से 'समान नागरिक संहिता' की कल्पना की थी ताकि सबको समान अधिकार और समान अवसर मिलें और देश की एकता, अखंडता मजबूत हो लेकिन वोट बैंक राजनीति के कारण आज तक 'समान नागरिक संहिता या भारतीय नागरिक संहिता' का एक ड्राफ्ट भी नहीं बनाया गया। देखा जाये तो जिस दिन 'भारतीय नागरिक संहिता' का एक ड्राफ्ट बनाकर सार्वजनिक कर दिया जाएगा और आम जनता विशेषकर बहन-बेटियों को इसके लाभ के बारे में पता चल जाएगा, उस दिन कोई भी इसका विरोध नहीं करेगा। सच तो यह है कि जो लोग समान नागरिक संहिता के बारे में कुछ नहीं जानते हैं वे ही इसका विरोध कर रहे हैं।

जहां तक इस मुद्दे पर मोदी सरकार के रुख की बात है तो आपको बता दें कि केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजीजू ने हाल ही में संसद को बताया था कि सरकार ने 21वें विधि आयोग से समान नागरिक संहिता से संबंधित विभिन्न मुद्दों का परीक्षण करने और सिफारिशें करने का अनुरोध किया था। 21वें विधि आयोग का कार्यकाल 2018 में समाप्त हो गया था। 22वें विधि आयोग ने इस मुद्दे पर विचार किया या नहीं, पर अब उसका भी कार्यकाल समाप्त हो चुका है। 23वां विधि आयोग कब गठित होगा और क्या यह अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले अपनी सिफारिशें दे देगा और क्या सरकार उन सिफारिशों को मानकर अगले लोकसभा चुनावों से पहले समान नागरिक संहिता ले आयेगी ये कुछ बड़े सवाल लोगों के मन में हैं।

बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के पीआईएल मैन के रूप में जाने जाने वाले अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि हमें यूनिफॉर्म सिविल कोड या कॉमन सिविल कोड नहीं चाहिए। उनका कहना है कि हमें भारतीय समान नागरिक संहिता चाहिए। उनका कहना है कि हमें भारत की आवश्यकताओं को देखकर समान कानून बनाये जाने की जरूरत है जोकि शादी, तलाक, गुजारा भत्ता, गोद लेने और उत्तराधिकार  आदि पर सभी चीजें स्पष्ट करता हो।

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