भगवान दादा के सिग्नेचर डांस के बाद आगे बढ़ती थी गणपति बप्पा की झांकी

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भगवान दादा की नृत्य शैली अनूठी थी। अमिताभ बच्चन का आइकॉनिक डांस हो या मिथुन चक्रवर्ती, गोविंदा और ऋषि कपूर का डांस भगवान दादा की ही नृत्य शैली से प्रभावित रहे हैं। ऋषि कपूर को तो खुद भगवान दादा ने ही डांस के स्टेप सिखाए थे।

पुरानी बॉलीवुड फिल्मों में भगवान दादा एक ऐसा जाना माना नाम है जिनकी एक्टिंग, कॉमेडी और डांसिंग स्टाइल के चर्चे आज भी होते हैं। भगवान दादा का जन्म 1 अगस्त 1913 को दादर मुंबई में हुआ था। उनका असली नाम भगवान आभाजी पालव था। इनके पिता एक टेक्सटाइल मिल में श्रमिक थे। आर्थिक तंगी के कारण भगवान दादा ने प्राइमरी के बाद पढ़ाई छोड़ दी, उनका रूझान बचपन से ही फिल्मों की तरफ था।

फिल्मों में भगवान दादा ने 1931 से काम करना शुरू किया जब मूक फिल्मों का दौर था। फिल्मों में पहला ब्रेक उन्हें एक मूक फिल्म में ही मिला। 1931 से 1996 तक अपनी उम्र के लगभग 65 साल तक भगवान दादा फिल्मों में सक्रिय रहे। उन्होंने 300 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया। बॉलीवुड में उन्होंने बतौर अभिनेता, निर्माता, निर्देशक, लेखक इत्यादि भूमिकाओं के लिए काम किया। 

भगवान दादा की नृत्य शैली अनूठी थी। अमिताभ बच्चन का आइकॉनिक डांस हो या मिथुन चक्रवर्ती, गोविंदा और ऋषि कपूर का डांस भगवान दादा की ही नृत्य शैली से प्रभावित रहे हैं। ऋषि कपूर को तो खुद भगवान दादा ने ही डांस के स्टेप सिखाए थे।

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भगवान दादा हॉलीवुड फिल्म कलाकार डगलस फेयरबैंक्स के प्रशंसक थे। डगलस से प्रेरित होकर भगवान दादा अपनी फिल्मों में स्टंट सीन भी खुद ही करते थे। अपने फिल्मों के सीन में रियलिटी के लिए वे कुछ करने को तैयार थे। एक रियलिटी एक्टर के तौर पर उनकी काबिलियत का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि पहली फिल्म में उन्होंने जब कुबड़े का रोल किया था उसके बाद उन्हें छः महीने तक काम इसलिए नहीं मिला क्योंकि लोग उन्हें सही में कुबड़ा समझने लगे थे।

भगवान दादा की फिल्मों की लिस्ट लंबी है जिनमें अलबेला, झनक झनक पायल बाजे, श्री कृष्ण लीला, राम राम गंगाराम, भागमभाग, भूला भटका, फरार, शंकर शंभू, खेल खिलाड़ी का, चाचा भतीजा, झूठा सच, रामकली, लवर बॉय, काली बस्ती, फर्ज की जंग, गैर कानूनी, पापी फरिश्ते, चोरी चोरी, स्त्री इत्यादि कई कामयाब फिल्में शामिल हैं।

‘अलबेला’ भगवान दादा की जबरदस्त कामयाबी वाली सबसे हिट फिल्म थी, जिसने उन्हें काफी पैसा और रूतबा दिलाया, इस फिल्म का निर्माण साल 1951 में भगवान दादा ने ही किया था। इस फिल्म का गाना शोला जो भड़के आज भी लागों की जुबां से नहीं उतरा है। इस फिल्म में भगवान दादा के अपोजिट मशहूर अदाकारा गीता बाली ने काम किया था। आपको बता दें साल 2016 में इस फिल्म के नाम पर भगवान दादा की बायोपिक एक मराठी फिल्म ‘एक अलबेला’ भी बनी जिसमें भगवान दादा का किरदार मंगेश देसाई ने निभाया और गीता बाली की भूमिका की मशहूर अदाकारा विद्या बालन ने। 

कामयाबी के दौर में भगवान दादा के पास भरपूर पैसा था। आपको जानकर आश्चर्य होगा उस दौर में उनके पास 7 कारें थीं, कहा जाता है कि वो हफ्ते के हर एक दिन अलग-अलग कार से सेट पर पहुंचते थे लेकिन दुर्भाग्यवश एक समय ऐसा भी आया जब उनकी बनाई फिल्में फ्लॉप होने लगीं और वो शराब में डूबते गए। इन फिल्मों में उन्हें बहुत घाटा हुआ, जिसके लिए उन्हें जुहू स्थित अपना बंगला और कारें बेचकर मुंबई के चॉल में गुजारा करना पड़ा 

मुंबई के दादर इलाके में लालूभाई मेंशन नाम की चॉल थी। गणपति विसर्जन के दौरान इधर से निकलने वाले जुलूस भगवान दादा की इस चॉल के सामने रुका करते थे और भगवान दादा के सुपर हिट डांस वाला फिल्म ‘अलबेला’ का उनका गाना ‘भोली सूरत दिल के खोटे’ गाना बजाते थे’ जिस पर भगवान दादा अपनी चॉल से निकलकर गणपति के सामने अपने वह खास डांस स्टेप करते और उसके बाद ही जुलूस आगे बढ़ता था। 

भगवान दादा के आखिरी वक्त में कुछ ही लोग उनके करीब रह गए थे जिनमें संगीतकार सी रामचंद्र, एक्टर ओम प्रकाश और गीतकार राजेंद्र कृष्ण थे जो उनसे मिलने चॉल में भी जाते थे। 

4 फरवरी 2002 को हार्ट अटैक से भगवान दादा का निधन हो गया। भगवान दादा के बारे में कहा जाता है कि वो बड़े दिलवाले थे। 1947 में विभाजन के दौरान जब हिन्दू-मुस्लिम के दंगे हो रहे थे, तो भगवान दादा ने मुस्लिम कलाकारों और कई टेक्नीशियन को अपने घर में पनाह दी थी। उनका मानना था कि कलाकारों का कोई मजहब नहीं होता। उनके लिए सारी दुनिया उनका घर है।

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भगवान दादा की फिल्मों के साथ दो बुरे अध्याय भी जुड़े हैं... 

साल 1942 में फिल्म ‘जंग-ए-आजादी’ के सेट की शूटिंग के दौरान एक सीन में भगवान दादा को ललिता पवार को एक थप्पड़ मारना था, दादा के थप्पड़ से ललिता पवार वही गिर पड़ीं। इसके बाद वो डेढ़ दिन तक कोमा में रहीं। हालांकि कुछ समय में वो ठीक तो हो गईं किन्तु इस हादसे में उनकी दाहिनी आंख पूरी तरह सिकुड़ गई, इसके बाद उन्हें हीरोइन की जगह नेगेटिव रोल करने पड़े। इस हादसे का भगवान दादा को उम्रभर अफसोस रहा।

भगवान दादा की फिल्मों के साथ दूसरा बुरा अध्याय यह रहा कि उनकी फिल्मों के नेगेटिव जो मुंबई के गोरेगांव में स्थित उनके गोदाम में रहते थे, उसमें आग लग गई और 1940 के दशक तक की उनकी सारी फिल्में इसमें स्वाहा हो गईं।

अमृता गोस्वामी

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