संत की तरह जीवन जीते थे देश के पहले राष्ट्रपति, जानिए डॉ राजेंद्र प्रसाद से जुड़े कुछ रोचक अंश

Dr Rajendra Prasad
Prabhasakshi

स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति को सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान के लिए भारत रत्न से नवाजा गया था। उनके सादगी भरे जीवन और सिद्धातों के कारण गांधीजी ने उन्हें अपने सहयोगी के रूप में चुना था। 28 फरवरी को उनका बीमारी के कारण निधन हुआ था।

स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। डॉ राजेन्द्र प्रसाद भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे। उन्होंने आरत की आजादी में अपना अहम योगदान दिया था। बता दें कि वह बिहार के मुख्य नेता थे। वहीं नमक छोड़ो आंदोलन के दौरान डॉ, राजेंद्र प्रसाद को काफी यातनाएं भी झेलनी पड़ी थी। वहीं भारतीय संविधान के निर्माण में उनका अहम योगदान था। आज ही के दिन भारत के प्रथम राष्ट्रपति और भारत के महान स्वतंत्रा सेनानी का निधन हुआ था। 

जन्म और शिक्षा

डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को जीरादेई (बिहार) में हुआ था। सादगी पसंद, दयालु एवं निर्मल स्वभाव के व्यक्ति थे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद के पिता का नाम महादेव सहाय था। उनके पिता फारसी और संस्कृत भाषा के विद्वान थे। उनकी माता का नाम कमलेश्वरी देवी था। महज 12 साल की उम्र में उनका राजवंशी देवी से विवाह हो गया था। बचपन में अपने जन्मस्थान से शुरूआती शिक्षा के दौरान उन्होंने फारसी, उर्दू, हिंदी का ज्ञान प्राप्त किया। इसके बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए छपरा और फिर पटना गए। जहां पर उन्होंने कानून में मास्टर की डिग्री के साथ डॉक्टरेट भी किया। कानून की पढ़ाई के दौरान वह राष्ट्रीय कांग्रेस में भी शामिल हुए थे। 

स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रियता

डॉ. राजेंद्र प्रसाद महात्मा गांधी से बेहद प्रभावित थे। कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वहीं महात्मा गांधी ने उनको अपने सहयोगी के तौर पर चुना था। इसी के साथ गांधी जी ने उन पर साबरमती आश्रम की तर्ज पर सदाकत आश्रम की एक नई प्रयोगशाला का दायित्व सौंपा था। ब्रिटिश प्रशासन ने राजेंद्र प्रसाद को नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल में डालकर कई तरह की यातनाएं दी थीं।

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व्यक्तित्व

आपको बता दें कि डॉ राजेंद्र प्रसाद साहित्य-संस्कृति, शिक्षा, इतिहास, धर्म, वेदांत, राजनीति, भाषा आदि विषयों पर वह अपने विचार व्यक्त करने से पीछे नहीं हटते थे। स्वाभाविक सरलता के कारण उन्होंने कभी भी अपने प्रभाव को प्रतिष्ठित करने का प्रयास नहीं किया। डॉ. राजेंद्र प्रसाद सादा जीवन-उच्च विचार के सिद्धांत को अपना कर चलने वाले व्यक्ति थे। वह सभी से काफी नम्रता से बात करते थे। उनकी यही प्रतिभा उन्हें दूसरों से अलग बनाती थी।

प्रथम राष्ट्रपति

देश की आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को भारत को गणतंत्र राष्ट्र का दर्जा मिला। इसके साथ ही डॉ राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्रा भारत के पहले राष्ट्रपति बने। वर्ष 1957 में वह दोबारा राष्ट्रपति के पद के लिए चुने गए। बता दें कि डॉ राजेंद्र प्रसाद एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति थे, जो लगातार दूसरी बार राष्ट्रपति बनें। डॉ. राजेंद्र प्रसाद को राजनैतिक और सामाजिक योगदान के लिए साल 1962 में भारत के सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान के तौर पर भारत रत्न से नवाजा गया। इसके बाद उन्होंने अपने राजनैतिक सफर पर विराम लगाते हुए सन्यास ले लिया। बता दें कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपना आखिरी समय पटना के एक आश्रम में बिताया था। बीमारी के चलते 28 फरवरी 1963 को उनका निधन हो गया।

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