किंगमेकर कामराज ने कांग्रेस को दी थी नई दिशा, पार्टी चाहे तो अब भी सीख ले सकती है

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[email protected] । Jul 15 2019 3:18PM

कामराज ने साठ के दशक की शुरुआत में महसूस किया कि कांग्रेस की पकड़ कमजोर होती जा रही है। इस पर उन्होंने नेहरू को एक योजना सुझाई और खुद दो अक्तूबर 1963 को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

तमिलनाडु की राजनीति में बिल्कुल निचले स्तर से अपना राजनीतिक जीवन शुरू कर देश के दो प्रधानमंत्री चुनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण किंगमेकर कहे जाने वाले के कामराज साठ के दशक में कांग्रेस संगठन में सुधार के लिए बनाए गए कामराज प्लान के कारण काफी विख्यात हुए। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के करीबी और तमिलनाडु के तीन बार मुख्यमंत्री रहे कामराज को कांग्रेस में किंगमेकर के नाम से जाना जाता था। राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में नेहरू ही कामराज को लेकर आए थे।

कामराज ने साठ के दशक की शुरुआत में महसूस किया कि कांग्रेस की पकड़ कमजोर होती जा रही है। इस पर उन्होंने नेहरू को एक योजना सुझाई और खुद दो अक्तूबर 1963 को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने सुझाया कि पार्टी के बड़े नेता सरकार में अपने पदों से इस्तीफा दे दें और अपनी ऊर्जा कांग्रेस में नई जान फूंकने के लिए लगायें। उनकी इस योजना के तहत उन्होंने खुद भी इस्तीफा दिया और लाल बहादुर शास्त्री, जगजीवन राम, मोरारजी देसाई तथा एसके पाटिल जैसे नेताओं ने भी सरकारी पद त्याग दिये। यही योजना कामराज प्लान के नाम से विख्यात हुई। कहा जाता है कि उनके कामराज प्लान की बदौलत वह केंद्र की राजनीति में इतने मजबूत हो गए कि नेहरू के निधन के बाद शास्त्री और इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनवाने में उनकी भूमिका किंगमेकर की रही। वह तीन बार कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे।

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दक्षिण भारत की राजनीति में कामराज एक ऐसे नेता भी रहे जिन्हें शिक्षा जैसे क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है। आजादी मिलने के बाद 13 अप्रैल 1954 को कामराज ने अनिच्छा में तमिलनाडु का मुख्यमंत्री पद स्वीकार किया लेकिन प्रदेश को एक ऐसा नेता मिल गया जो उनके लिए कई क्रांतिकारी कदम उठाने वाला था। कामराज ने उनके नेतृत्व को चुनौती देते रहे सी. सुब्रमण्यम और एम. भक्तवात्सल्यम को कैबिनेट में शामिल कर सबको चौंका दिया। कामराज लगातार तीन बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने प्रदेश की साक्षरता दर, जो कभी सात फीसदी हुआ करती थी, को बढ़ाकर 37 फीसदी तक पहुंचा दिया। 

कामराज एक कद्दावर नेता थे। तमिलनाडु में उनकी नेतृत्व क्षमता और उनके कामों की बराबरी किसी और से नहीं कर सकते। उन्होंने आजादी के बाद तमिलनाडु में जन्मी पीढ़ी के लिए बुनियादी संरचना पुख्ता की थी। कामराज ने शिक्षा क्षेत्र के लिए कई अहम फैसले किये। मसलन उन्होंने यह व्यवस्था की कि कोई भी गांव बिना प्राथमिक स्कूल के न रहे। उन्होंने निरक्षरता हटाने का प्रण किया और कक्षा 11वीं तक निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा लागू कर दी। वह स्कूलों में गरीब बच्चों को मध्याह्न भोजन देने की योजना लेकर आये।

शिक्षा क्षेत्र में बुनियादी काम के अलावा तमिलनाडु को उन्होंने एक और सौगात यह दी थी कि वह स्कूली तथा उच्च शिक्षा में तमिल एक माध्यम के तौर पर लेकर आये। उन्हीं के कार्यकाल के बाद से तमिलनाडु में बच्चे तमिल में शिक्षा हासिल कर सके। कामराज का जन्म 15 जुलाई 1903 को तमिलनाडु के विरूधुनगर में हुआ था। उनका मूल नाम कामाक्षी कुमारस्वामी नादेर था लेकिन बाद में वह के. कामराज के नाम से ही जाने गये। कामराज के पिता व्यापारी थे लेकिन उनकी असमय मौत ने उनके परिवार को परेशानी में डाल दिया। कामराज अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए लेकिन जार्ज जोसेफ के नेतृत्व वाले 'वैकम' सत्याग्रह ने उन्हें आकर्षित किया। महज 16 वर्ष की उम्र में वे कांग्रेस में शामिल हो गये।

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आजादी से पूर्व के अपने राजनीतिक जीवन में कामराज कई बार गिरतार हुए। जेल में रहते हुए ही उन्हें म्युनिसिपल काउंसिल का अध्यक्ष चुना गया। लेकिन रिहाई के 9 महीने बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया और कहा− किसी को तब तक कोई पद स्वीकार नहीं करना चाहिए जब तक वह उसके साथ पूरा न्याय न कर सके। कामराज के राजनीतिक गुरु सत्यमूर्ति थे। उन्होंने कामराज में एक निष्ठावान और कुशल संगठक देखा। कामराज में गजब का राजनीतिक कौशल था। उनकी छवि अच्छी थी और उन्होंने हमेशा पड़ोसी राज्यों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखे। मौजूदा जल विवाद को देखते हुए उनके जैसे नेता की जरूरत महसूस की जाती है। दो अक्तूबर 1975 को कामराज का निधन हुआ। उन्हें 1976 में मरणोपरांत 'भारत रत्न' से नवाजा गया।

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