Mahadev Govind Ranade Death Anniversary: न्यायप्रिय और क्रांतिकारी समाज सुधारक थे महादेव गोविंद रानाडे

Mahadev Govind Ranade
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महादेव गोविंद रानाडे, जिनको जस्टिस रानाडे के नाम से जाना जाता था। आज ही के दिन यानी की 16 जनवरी को महादेव गोविंद रनाडे का निधन हुआ था। वह शांत और धैर्यशील आशावादी के रूप में प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे।

भारत की स्वतंत्रता के लिए बहुत से लोगों ने योगदान देने के साथ समाज सुधार जैसे काम किए हैं। इन्हीं में से एक नाम महादेव गोविंद रानाडे था, जिनको जस्टिस रानाडे के नाम से जाना जाता था। उन्होंने समाज और धर्म सुधार से लेकर देश में शिक्षा और उसके इतिहास के प्रति जागरूकता फैलाने का काम किया था। आज ही के दिन यानी की 16 जनवरी को महादेव गोविंद रनाडे का निधन हुआ था। वह शांत और धैर्यशील आशावादी के रूप में प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर महादेव गोविंद रनाडे के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और परिवार

महाराष्ट्र में नासिक के निफाड़ कस्बे के कट्टर चितपावन ब्राह्मण परिवार में 18 जनवरी 1842 को जस्टिस रानाडे का जन्म हुआ था। इनके पिता मंत्री थे। पहली पत्नी की मृत्यु के बाद उनके समाज सुधारवादी मित्र चाहते थे कि वह विधवा से विवाह करें। लेकिन रानाडे ने अपने परिवार की इच्छाओं का ख्याल करते हुए बालिका रामाबाई रानाडे से विवाह किया और उनको शिक्षित करने का काम किया था। वहीं पति की मृत्यु के बाद रामाबाई ने उनके कार्यों को आगे बढ़ाने का कार्य किया था।

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उच्च शिक्षा 

बता दें कि रानाडे की शुरूआती शिक्षा कोल्हापुर के मराठी स्कूल से पूरी हुई थी। बाद में उन्होंने अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ाई की। वह 14 साल की उम्र में वह बम्बई के एल्फिस्टोन कॉलेज में पढ़ने चले गए। वह बॉम्बे यूनिवर्सिरी के पहले बैच के छात्र थे। साल 1962 में उन्होंने बीए और फिर 4 साल बाद LLB की डिग्री प्राप्त की।

जज बने

जस्टिस रानाडे ने अपनी योग्यताओं का देश, समाज और धर्म के उत्थान के लिए भरपूर उपयोग किया। रानाडे ने बॉम्बे यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम में भारतीय भाषाओं को शामिल करवाया। वह अपनी योग्यताओं की वजह से बॉम्बे कॉसेस कोर्ट में प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट नियुक्त किए गए। साल 1893 तक वह बॉम्बे हाईकोर्ट के जज बन चुके थे।

समाज सुधारक के रूप में

रानाडे के समाज सुधार के प्रयास हमेशा शिक्षा से प्रभावित दिखाई देते थे। वह धार्मिक सुधार से लोकशिक्षा तक हर भारतीय परिवार के हर पहलू में एक प्रगतिवादी सुधार देखना चाहते थे। बेकार रूढ़िवादी परंपराओं और मान्यताओं के वह पूरी तरह से विरोधी थे। उन्होंने विवाह आडंबरों पर अनावश्यक खर्चों, विधवा मुंडन, बाल विवाह और सागर पार यात्रा पर जातिगतप्रतिबंध जैसी कई कुरीतियों का विरोध किया।

हिंदू धर्म के लिए

बता दें कि हिंदू धर्म के आध्यात्म पक्ष की तरफ रानाडे का झुकाव अधिक था। उनका मानना था कि वह उनके समय हिंदू धर्म कर्माकांडों में ज्यादा उलझा हुआ है। जस्टिस रानाडे ने प्रार्थना समाज की स्थापना में योगदान दिया था, जो ब्रह्म समाज से प्रेरित आंदोलन था। इसके अलावा उन्होंने विधवा पुनर्विवाह और स्त्री शिक्षा पर विशेष कार्य करते हुए उन्होंने महाराष्ट्र कन्या शिक्षा समाज की भी स्थापना की थी।

रानाडे ने पूना सार्वजनिक सभा की स्थापना की थी। साथ ही वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। अर्थशास्त्र पर उनके विचार बहुत मूल्यवान माने जाते हैं। उन्होंने सबसे पहले भारत की आर्थिक समस्याओं को गहराई से समझा था। फिर उन्होंने सभी आर्थिक क्षेत्रों, उद्योगों और कृषि आदि की समस्याओं का गहनन अध्ययन किया था। इसलिए कई बार उनको भारतीय अर्थशास्त्र का जनक भी कहा जाता था।

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