Mahadevi Verma Birth Anniversary: हिंदी साहित्य के आसमान की ध्रुवतारा थीं महादेवी वर्मा, महज 9 साल की उम्र में हो गया था विवाह

Mahadevi Verma
Prabhasakshi

आज ही के दिन यानी की 26 मार्च को हिंदी साहित्य की पुरोधा और प्रख्यात कवयित्री महादेवी वर्मा का जन्म हुआ था महादेवी द्वारा लिए गए शब्द हमें करुणा औऱ त्याग जैसी भावनाओं से परिचित कराते हैं।

आज ही के दिन यानी की 26 मार्च को हिंदी साहित्य की पुरोधा और प्रख्यात कवयित्री महादेवी वर्मा का जन्म हुआ था महादेवी द्वारा लिए गए शब्द हमें करुणा औऱ त्याग जैसी भावनाओं से परिचित कराते हैं। छायावाद की दीपशिखा और समाज दिग्दर्शिका महादेवी के जीवन पर यह पंक्तियां एकदम सही सिद्ध होती हैं। उनके काव्य में आत्मा-परमात्मा के मिलन-विरह तथा प्रकृति के व्यापारों की छाया स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर कवियत्री महादेवी वर्मा के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और परिवार

उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में 26 मार्च 1907 को महादेवी वर्मा का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम बाबू गोविंद प्रसाद वर्मा और मां का नाम हेमरानी देवी था। बता दें कि बाबू गोविंद प्रसाद के घर में सात पीढ़ियों पर बेटी ने जन्म लिया था। ऐसे में महादेवी के जन्म पर परिवार के लोग फूले नहीं समा रहे थे। वहीं महादेवी के बाबा बांके बिहारी ने कहा कि यह साधारण बच्ची नहीं बल्कि देवी है। जिस कारण उस बच्ची का नाम महादेवी रख दिया गया। 

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विवाह और शिक्षा

महादेवी के माता-पिता बचपन में ही अपनी बेटी की प्रतिभा को समझ चुके थे। स्कूल के साथ ही घर पर भी वह मौलवी, पंडित, संगीत और चित्रकला के शिक्षकों ने उनके व्यक्तित्व को तराशना शुरूकर दिया। लेकिन महज 9 साल की आयु में महादेवी के विवाह ने उनकी शिक्षा को बाधित कर दिया। उनका बालमन विवाह का मतलब समझने के लिए तैयार नहीं हुआ। जिस कारण वह अपने मायके वापस आ गईं और अपनी शिक्षा शुरू की। साल 1929 में बीए पास करने के दौरान वह कवियत्री बन चुकी थीं।

समाज सुधारक

साल 1932 में महादेवी वर्मा ने प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत से एमए किया था। उस दौर में देश में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ देश में स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था। तभी महादेवी को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के लिए स्कॉलरशिप मिली थी। बताया जाता है कि इस स्कॉलरशिप को लेकर वह काफी असमंजस में थीं। जिसके बाद उन्होंने महात्मा गांधी से इस बारे में मशवरा किया। वहीं गांधीजी ने महादेवी को देश के लिए सामाजिक कार्य किए जाने और बहनों को शिक्षित करने के लिए प्रेरित किया। 

महिलाओं की मुक्ति का बिगुल

आपको बता दें कि महादेवी ने स्कूल के दौरान 'Sketches from My Past' नाम से कहानियां लिखीं। इसमें उनकी सहेलियों और उनकी तकलीफों के बारे में जिक्र किया। जिनसे महादेवी पढ़ाई के दौरान मिली थीं। निबंध संकलन 'श्रृंखला की कडिय़ां' के जरिए साल 1942 में उन्होंने रूढ़िवाद पर चोट करते हुए महिलाओं की मुक्ति और विकास का भी बिगुल फूंका। उस दौरान महिलाओं की शिक्षा के लिए महादेवी का योगदान क्रांतिकारी कदम था।

हांलाकि इस बात में किसी तरह की अतिश्योक्ति नहीं होगी कि महादेवी हिंदी साहित्य के आसमान का वो छायावादी युगीन ध्रुवतारा हैं। उनसे न जाने कितने ही लेखकों को रोशनी मिली। महादेवी को आधुनिक युग की मीरा भी कहा जाता है, क्योंकि उनके काव्यों में प्रेम की वेदना के स्वर भी परिलक्षित होते हैं।

मृत्यु

महादेवी वैवाहिक जीवन से विरक्त थीं, इसलिए वह सन्यासियों की तरह अपना जीवन व्यतीत करती थीं। महादेवी वर्मा ने पूरी जिंदगी सफेद कपड़े पहनें और जीवन में कभी भी श्रृंगार नहीं किया। पति की मृत्यु के बाद वह प्रयागराज में रहने लगीं थीं। वहीं 11 सितंबर 1987 को महादेवी वर्मा का निधन हो गया।

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