Paramahansa Yogananda Jayanti: परमहंस योगानन्द जी ने किया था पूरे विश्व में क्रिया योग का प्रचार-प्रसार

Paramahansa Yogananda
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परमहंस योगानंद जी का जन्म 5 जनवरी 1893 को गोरखपुर उत्तर प्रदेश में अहीर जाति में हुआ। उनका वास्तविक नाम मुकुंद लाल घोष था। इनके पिता का नाम भगवती चरण घोष था। योगानन्द के पिता भगवती चरण घोष बंगाल नागपुर रेलवे में उपाध्यक्ष के समकक्ष पद पर कार्यरत थे।

परमहंस योगानन्द बीसवीं सदी के एक आध्यात्मिक गुरू, योगी और संत थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को क्रिया योग उपदेश दिया तथा पूरे विश्व में उसका प्रचार तथा प्रसार किया। परमहंस योगानंद जी कहते थे क्रिया योग ईश्वर से साक्षात्कार की एक प्रभावी विधि है, जिसके पालन से अपने जीवन को संवारा और ईश्वर की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है। योगानन्द प्रथम भारतीय गुरु थे जिन्होने अपने जीवन के कार्य को पश्चिम में किया। योगानन्द ने 1920 में अमेरिका के लिए प्रस्थान किया। संपूर्ण अमेरिका में उन्होंने अनेक यात्रायें की। उन्होंने अपना जीवन व्याख्यान देने, लेखन तथा निरन्तर विश्व व्यापी कार्य को दिशा देने में लगाया।

परमहंस योगानंद जी का जन्म 5 जनवरी 1893 को गोरखपुर उत्तर प्रदेश में अहीर जाति में हुआ। उनका वास्तविक नाम मुकुंद लाल घोष था। इनके पिता का नाम भगवती चरण घोष था। योगानन्द के पिता भगवती चरण घोष बंगाल नागपुर रेलवे में उपाध्यक्ष के समकक्ष पद पर कार्यरत थे। योगानंद के माता-पिता के 8 बच्चे थे, चार भाई चार बहन। योगानंद भाइयों में दूसरे तथा सभी में चौथे संतान थे। दोनों ही संत प्रकृति के थे। उनके माता पिता क्रियायोगी लाहिड़ी महाशय के शिष्य थे। उनका परिवार इनके बाल्य काल के दौरान अनेक शहरों में रहे। गोरखपुर में इनके जीवन के पहले 8 वर्ष व्यतीत हुए थे। ईश्वर को जानने और खोजने की लालसा योगानंद जी को बचपन से ही थी। उन्होंने अपने अनुयायियों को क्रियायोग उपदेश दिए तथा सभी जगह पूरे विश्व में उसका प्रचार प्रसार किया।

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अमेरिका में योगानंद जी ने व्यापक रूप से सफ़र किया, बड़े शहरों में भाषण दिए। उनके आध्यात्मिक आंदोलन सफल रहे- हज़ारों लोग शहर के सबसे बड़े महाकक्ष में भरते थे, भारत की आत्मबोध शिक्षा को ग्रहण करने के लिए। वे इतना सम्मान दिए जाने वाले पहले भारतीय थे जिन्हे वाइट हाउस से अमेरिका के राष्ट्रपति कैल्विन कूलिज ने बुलाया।

अपने आखरी दिन में योगानंद जी ने करीब शिष्यों की निजी प्रशिक्षण पर गौर किया जिससे वे उनका कार्य उनके जाने के बाद आगे बढ़ाएं। उनमे से एक शिष्य थे स्वामी क्रियानन्द, जिन्होंने 1969 में आनन्द की स्थापना की योगानंद जी के शिक्षण का प्रचार करने के लिए। परमहंस योगानंद जी नें मार्च 7, 1952 में महासमाधी ली, जब वे एक महाभोज में थे, जोकि अमेरिका के प्रति भारतीय दूत बिनय आर सेन के सम्मान में आयोजित था। यह उपयुक्त समायोजन था, क्योंकि वे खुद पश्चिमी देशों के प्रति भारतीय आध्यात्मिकता के बत्तीस वर्षों से दूत थे। उनकी उत्कृष्ट आध्यात्मिक कृति योगी कथामृत (An Autobiography of a Yogi) की लाखों प्रतियां बिकीं और वह सर्वाधिक बिकने वाली आध्यात्मिक आत्मकथा रही है।

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