Srinivasa Ramanujan Death Anniversary: श्रीनिवास रामानुजन को कहा जाता था गणित का जादूगर, जानिए रोचक बातें

Srinivasa Ramanujan
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आज ही के दिन यानी की 26 अप्रैल को अनंत की खोज करने वाले महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का निधन हो गया। वह एक ऐसे महान गणितज्ञ थे, जिन्होंने भारत में अंग्रेजी शासन काल के दौरान पूरे विश्व में भारत का परचम लहराया।

आज ही के दिन यानी की 26 अप्रैल को अनंत की खोज करने वाले महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का निधन हो गया। वह एक ऐसे महान गणितज्ञ थे, जिन्होंने भारत में अंग्रेजी शासन काल के दौरान पूरे विश्व में भारत का परचम लहराया। रामानुजन ने महज 13 साल की उम्र में त्रिकोणमिति में महारत हासिल की थी। इसके अलावा रामानुजन ने बिना किसी की सहायता के कई प्रमेय यानी थ्योरम्स को भी विकसित किया। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर श्रीनिवास रामानुजन के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में।

जन्म और शिक्षा

तमिलनाडु के इरोड गांव में 22 दिसंबर 1887 को श्रीनिवास रामानुजन का जन्म हुआ था। उनको गणित का जादूगर भी कहा जाता था। हांलाकि उनका बचपन अन्य बच्चों की तरह नहीं था। शुरूआती 3 साल तक वह बोल नहीं पाए, लेकिन रामानुजन अपनी प्रतिभा के धनी थे। उनकी शिक्षा तमिल भाषा से हुई थी। उनका पढ़ाई में अधिक मन नहीं लगता था। लेकिन आगे जाकर उन्होंने प्राइमरी परीक्षा में पूरे जिले में पहला स्थान हासिल किया।

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इसके बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए उच्च माध्यमिक स्कूल गए। जहां पर उन्होंने गणित पढ़ना शुरू किया और इस विषय में महारत हासिल करते चले गए। सातवीं कक्षा में पढ़ने वाले रामानुजन ने बीए के छात्र को गणित पढ़ाया। वहीं 13 साल की उम्र में उन्होंने त्रिकोणमिति को हल कर दिया था। इसको हल करने में बड़े से बड़े विद्वान भी असफल हो जाते थे।

5000 से अधिक थ्योरम्स किए सिद्ध

आपको जानकर हैरानी होगी कि रामानुजन को गणित के अलावा अन्य किसी सब्जेक्ट में इंट्रेस्ट नहीं था। उन्होंने महज 16 साल की उम्र में 5000 से अधिक थ्योरम्स को प्रमाणित और सिद्ध करके दिखाया था। बता दें कि वह 11वीं कक्षा में गणित के अलावा अन्य सभी विषयों में फेल हो गए थे। वहीं अगले साल वह प्राइवेट परीक्षा देकर भी 12वीं नहीं पास कर पाए।

आर्थिक तंगी

रामानुजन ने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे। बताया जाता है कि 12वीं के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उनको आर्थिक तंगी से जूझना पड़ा। तभी नौकरी की तलाश में रामानुजन की मुलाकात डिप्टी कलेक्टर श्री वी रामास्वामी अय्यर से हुई। रामास्वामी अय्यर भी गणित के बहुत बड़े विद्वान थे, जिस कारण उन्होंने रामानुजन की प्रतिभा को पहचाना और उनके लिए 25 रुपए की मासिक छात्रवृत्ति की व्यवस्था की।

पहला रिसर्च पेपर

साल 1911 में जर्नल ऑफ इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी में रामानुजन का प्रथम शोधपत्र 'बरनौली संख्याओं के कुछ गुण' रिसर्च पेपर प्रकाशित हुआ। इसी दौरान उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जीएच हार्डी को भी कुछ फॉर्मूले भेजे।

रामानुजन से प्रभावित हुए हार्डी

बता दें कि कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जीएच हार्डी रामानुजन से इतना अधिक प्रभावित हुए कि उनको फौरन लंदन बुलाने के लिए आमंत्रित कर डाला। हार्डी ने 0 से 100 अंक तक का एक पैमाना बनाया। जिसके माध्यम से गणितज्ञों की योग्यता जांची जा सके। इस परीक्षा में प्रोफेसर ने खुद को सिर्फ 25 अंक, महान गणितज्ञ डेविड गिलबर्ट को 80 और रामानुजन को 100 अंक दिए थे। प्रोफेसर ने श्रीनिवास रामानुजन को दुनिया का महान गणितज्ञ बताया था। इसके बाद वह हार्डी के मेंटॉर बने और दोनों ने मिलकर कई रिसर्च पेपर पब्लिश किए। हार्डी-रामानुजन नंबर के रूप में 1729 नंबर काफी फेमस हुआ। इन दोनों के रिसर्च को अंग्रेजों ने भी सम्मान दिया।

जौहरी को हुई हीरे की पहचान

हार्डी रामानुजन से इतने प्रभावित हो गए कि उन्होंने तुरंत रामानुजन को लंदन बुलाने के लिए आमंत्रित किया। हार्डी ने गणितज्ञों की योग्यता जांचने के लिए 0 से 100 अंक तक का एक पैमाना बनाया। इस परीक्षा में हार्डी ने खुद को 25 अंक दिए। महान गणितज्ञ डेविड गिलबर्ट को 80 और रामानुजन को 100 अंक दिए, इसलिए हार्डी ने रामानुजन को दुनिया का महान गणितज्ञ कहा था। रामानुजन हार्डी के मेंटोर बने। दोनों ने मिलकर गणित की कई रिसर्च पेपर पब्लिश किए। 1729 नंबर काफी प्रसिद्ध है। उनके रिसर्च को अंग्रेजों ने भी सम्मान दिया।

मृत्यु

रामानुजन को टीबी की बीमारी हो गई थी। जिसके कारण साल 1919 में उनको भारत वापस लौटना पड़ा। वहीं दिन पर दिन उनकी सेहत में गिरावट हो रही थी। लेकिन इस दौरान भी उन्होंने  मॉक थीटा फंक्शन पर एक उच्च स्तरीय शोध पत्र भी लिखा। इसका इस्तेमाल गणित के साथ-साथ चिकित्सा विज्ञान में कैंसर को समझने के लिए किया जाता है। वहीं बीमारी के चलते 26 अप्रैल 1920 में 33 साल की उम्र में कुंभकोणम में श्रीनिवास रामानुजन ने अंतिम सांस ली।

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