आजाद हिंद सेना के संस्थापक थे रास बिहारी बोस

दिल्ली में तत्कालीन वायसराय लार्ड चार्ल्स हार्डिंग पर बम फेंकने की योजना बनाने, गदर की साजिश रचने और बाद में जापान जाकर इंडियन इंडिपेंडेस लीग और आजाद हिंद फौज की स्थापना करने में रास बिहारी बोस की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में रासबिहारी बोस का नाम आदर पूर्वक लिया जाता है। रासबिहारी बोस भारत के एक महान क्रान्तिकारी नेता थे जिन्होंने ब्रिटिश राज के विरुद्ध गदर षड्यंत्र एवं आजाद हिन्द फौज के संगठन का कार्य किया। इन्होंने न केवल भारत में कई क्रान्तिकारी गतिविधियों का संचालन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, अपितु विदेश में रहकर भी वह भारत को स्वतन्त्रता दिलाने के प्रयास में आजीवन लगे रहे। दिल्ली में तत्कालीन वायसराय लार्ड चार्ल्स हार्डिंग पर बम फेंकने की योजना बनाने, गदर की साजिश रचने और बाद में जापान जाकर इंडियन इंडिपेंडेस लीग और आजाद हिंद फौज की स्थापना करने में रासबिहारी बोस की महत्वपूर्ण भूमिका रही। यद्यपि देश को स्वतन्त्र कराने के लिये किये गये उनके ये प्रयास सफल नहीं हो पाये, तथापि स्वतन्त्रता संग्राम में उनकी भूमिका का महत्व बहुत ऊँचा है। 25 मई को रासबिहारी बोस की जयंती मनायी जाती है।

रासबिहारी बोस का जन्म 25 मई 1886 को बंगाल में बर्धमान जिले के सुबालदह गाँव में हुआ था। प्रथम महायुद्ध में सशस्त्र क्रांति की जो योजना बनाई गई थी, वह रासबिहारी बोस के ही नेतृत्व में निर्मित हुई थी। सन् 1912 ई. में वाइसराय लार्ड हार्डिंग पर रासबिहारी बोस ने ही बम फेंका था। प्रख्यात वकील और शिक्षाविद रास बिहारी बोस क्रांतिकारी तो थे ही, सर्वप्रथम आजाद हिन्द फौज के निर्माता भी थे। रास बिहारी बोस आजाद हिंद फौज के आधार स्तंभ थे। उन्होंने आजाद हिंद फौज की स्थापना कर उसकी कमान नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सौंपी थी। बीसवीं सदी के शुरूआती दशकों में जितने बड़े क्रांतिकारी षड्यंत्र हुए थे, उन सबके सूत्रधारों में शामिल थे रास बिहारी बोस। गदर रिवोल्यूशन से लेकर अलीपुर बम कांड केस तक, गर्वनर जनरल हॉर्डिंग की हत्या की प्लानिंग से लेकर मशहूर क्रांतिकारी संगठन युगांतर पार्टी के उत्तर भारत में विस्तार तक। महान क्रांतिकारी रासबिहारी बोस का नाम हमेशा आदर के साथ लिया जाता रहेगा। उन्होंने न केवल देश में कई क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई बल्कि विदेश में रहकर भी वह देश को आजादी दिलाने के प्रयास में आजीवन लगे रहे।

सर्वप्रथम आजाद हिन्द फौज के निर्माता रासबिहारी बोस उन लोगों में से थे जो देश से बाहर जाकर विदेशी राष्ट्रों की सहायता से अंग्रेजों के विरुद्ध वातावरण तैयार कर भारत की मुक्ति का रास्ता निकालने की सोचते रहे, सभी भारतीयों को आह्वान कर भारत को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया। रास बिहारी बोस ने 12 मई 1915 को कोलकाता छोड़ा। वे राजा पी.एन.टी. टैगोर, रवींद्रनाथ टैगोर के दूर के रिश्तेदार बनकर जापान गए। कुछ इतिहासकारों के अनुसार रवींद्रनाथ टैगोर इस छद्म रूप को जानते थे। रास बिहारी 22 मई, 1915 को सिंगापुर तथा 1915 से 1918 के बीच जून में टोकियो पहुंचे। वे एक भगौड़े के समान रहे तथा अपना निवास 17 बार बदला। इसी कालावधि में वे गदर पार्टी के हरबंस लाल गुप्ता एवं भगवान सिंह से मिले। पहले महायुद्ध में जापान ब्रिटेन का मित्र राष्ट्र था तथा उसने रास बिहारी एवं हरबंस लाल को अपराधी घोषित करने का प्रयास किया। हरबंस लाल अमेरिका भाग गए तथा रासबिहारी ने जापान का नागरिक बनकर अपनी आंखमिचौली समाप्त की। उसने सोमा परिवार की बेटी टोसिको से विवाह किया। यह परिवार रासबिहारी के प्रयासों को सहानुभूति से देखता था। इस दंपति के दो बच्चे थे, लड़का मासाहिद एवं लड़की, तेताकू।

मार्च 1928 में 28 वर्ष की आयु में टोसिका की मृत्यु हो गई। रासबिहारी बोस ने जापानी भाषा सीख ली तथा वार्ताकार एवं लेखक बन गए। उन्होंने कई सांस्कृतिक गतिविधियों में हिस्सा लिया तथा भारत का दृष्टिकोण स्पष्ट करने हेतु जापानी में कई पुस्तकें लिखीं। रासबिहारी के प्रयासों के कारण टोकियो में 28 से 30 मार्च 1942 के बीच एक सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें राजनैतिक विषय पर चर्चा हुई। टोकियो में 28 मार्च 1942 को आयोजित सम्मेलन के पश्चात भारतीय स्वतंत्रता संगठन की स्थापना करने का निश्चय किया गया। कुछ दिन पश्चात सुभाष चंद्र बोस को उसका अध्यक्ष बनाना निश्चित हुआ। जापानियों द्वारा मलाया एवं बर्मा में पकड़े गए भारतीय कैदियों को भारतीय स्वतंत्रता संगठन में तथा भारतीय राष्ट्रीय सेना में भरती होने हेतु प्रोत्साहित किया गया। रासबिहारी तथा कप्तान मोहन सिंह एवं सरदार प्रीतम सिंह के प्रयासों के कारण 1 सितंबर 1942 को भारतीय राष्ट्रीय सेना की स्थापना हुई। वह आजाद हिंद फौज के नाम से भी जानी जाती थी। दूसरा महायुद्ध समाप्त होने से पूर्व, 21 जनवरी 1945 को टोकियो में रासबिहारी बोस की मृत्यु हो गयी। जापानी सरकार ने एक विदेशी को दी जाने वाली सर्वोच्च उपाधि से उनका सम्मान किया।

- बाल मुकुन्द ओझा

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