बाबूलाल गौर का मजदूर से मुख्यमंत्री बनाने तक का सफर

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दिनेश शुक्ल । Aug 21 2019 4:32PM

भोपाल के कपड़ा मिल में 6 रूपए महीने की नौकरी से अपने जीवन की शुरूआत करने वाले बाबूलाल गौर सन 2004 में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने हालंकि उनका कार्यकाल मात्र एक साल 98 दिन का रहा। बाबूलाल गौर 23 अगस्त, 2004 से 29 नवंबर, 2005 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।

मध्यप्रदेश में 21 अगस्त की सुबह शोक भरी खबर लेकर आई। जब प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता बाबू लालगौर ने तड़के ब्रह्ममहूर्त में अंतिम सांस ली। बाबूलाल गौर 89 साल के थे और कुछ दिनों से उनका स्वास्थ्य खराब चल रहा था। जिसके चलते उन्हें एक निजी अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। पिछले 15 दिनों से वह वेटिंलेटर सपोर्ट पर थे, लेकिन 20 अगस्त को अचानक ब्लड प्रेशर कम होने के साथ उनकी पल्स रेट भी गिर गई। डॉक्टरों के अनुसार उनकी किडनी पूरी तरह काम नहीं कर रही थी। पूर्व मुख्यमंत्री और जननेता बाबूलाल गौर के देहांत की खबर के बाद पूरे प्रदेश में शोक की लहर दौड़ गई। जिसके बाद उनके सम्मान में सरकार ने आधे दिन का अवकाश और तीन दिन के राजकीय अवकाश की घोषणा की है।

मजदूर से मुख्यमंत्री के पद को सुशोभित करने वाले बाबूलाल गौर लगातार नौ बार भोपाल की गोविंदपुरा सीट से विधायक रहे। वह मुख्यमंत्री के अलावा पटवा, उमा भारती और शिवराज सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे। पटवा सरकार में नगरीय प्रशासन मंत्री रहते बाबूलाल गौर को राजधानी भोपाल को अतिक्रमण मुक्त करने को लेकर नया नाम दिया गया था बुल्डोजर मैन। अपनी आसीम इच्छा शक्ति और राजनीतिक समझ के चलते हमेशा लोकप्रिय नेताओं की श्रेणी में उनकी गिनती होती है।

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भोपाल के कपड़ा मिल में 6 रूपए महीने की नौकरी से अपने जीवन की शुरूआत करने वाले बाबूलाल गौर सन 2004 में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने हालंकि उनका कार्यकाल मात्र एक साल 98 दिन का रहा। बाबूलाल गौर 23 अगस्त, 2004 से 29 नवंबर, 2005 तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। इस दौरान उन्हें पुत्रशोक भी हुआ। बाबूलाल गौर के इकलौते पुत्र पुरूषोत्तम गौर की हार्ट अटैक से मौत हो गई इसके बाद भी एक कर्मयोगी की तरह मुख्यमंत्री के रूप में वह प्रदेश और जनता की सेवा में लगे रहे। बाबूलाल गौर का जन्म 2 जून, 1930 को नौगीर ग्राम, प्रतापगढ़ ज़िला (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। वे बचपन में ही अपने पिता के साथ भोपाल आ गए थे यहाँ उनके पिताजी मानक शाह एण्ड कम्पनी में नौकरी करते थे। वह अपनी स्कूल की पढाई के दौरान ही आरएसएस से जुड़ गए। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिनामा मध्यप्रदेश राजनेताओं के किस्से के लेखक दीपक तिवारी अपनी किताब में लिखते है कि बाबूलाल गौर को दसवीं की बोर्ड परीक्षा में सप्लीमेंट्री आई, पर तभी 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया और इसी खुशी में सभी सप्लीमेंट्री वालों को पास कर दिया गया। कुछ महीनों बाद ही उन्होंने स्वास्थ्य विभाग में पाँच रूपए महीने की आवक-जावक लिपिक नौकरी कर ली पर यह ज्यादा दिन नहीं चल सकी। इसलिए कपड़ा मिल में छह रूपए प्रतिमाह की नौकरी कर ली जो अन्य भत्ते मिलाकर सात-आठ रूपए हो जाती।

राजनीति में एक मजदूर नेता के रूप में बाबूलाल गौर ने शुरूआत की। वह जेपी आंदोलन से जुडे रहे, उनके बंगले में आज भी जयप्रकाश नारायण के साथ फोटो दीवार पर लगी नज़र आ जाएगी। दीपक तिवारी बताते है कि सन् 1972 के चुनावों में बाबूलाल गौर को भोपाल की गोविन्दपुरा सीट से जनसंघ का प्रत्याशी बनाया गया। लेकिन वह चुनाव हार गए। लोगों के सहयोग से 2000 रूपए का चंदा करके जीते हुए काँग्रेस प्रत्याशी मोहनलाल अस्थाना के खिलाफ याचिका दायर कर दी। सन् 1974 में जब विधानसभा का उपचुनाव अस्थाना के निधन के कारण हुआ, तो गौर उस समय गैर-काँग्रेसी दलो के मिले-जुले प्रत्याशी के रूप में खड़े हुए। यह जयप्रकाश नारायण के जनता पार्टी के प्रयोग का पहला कदम था। इस तरह गौर 77 में बनी जनता पार्टी के पहले प्रत्याशी थे।

सन 1977 में बनी जनता पार्टी के पहले प्रत्याशी के रूप में बाबूलाल गौर ने भोपाल की गोविंदपुरा सीट से चुनाव लड़ा और वह जीते, जिसके बाद उन्होनें कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें पार्टी ने टिकट न देकर उनकी पुत्रवधु कृष्णा गौर को गोविन्दपुरा विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया जिन्होनें बाबूलाल गौर की राजनीतिक विरासत को संभाल लिया।

बाबूलाल गौर उन कुल विरले राजनेताओं में से थे जो बिना गीता का पाढ़ करें अपने बंगले से नहीं निकलते थे उनकी दिनचर्या में अपने विधानसभा क्षेत्र में घूमने निकल जाना और लोगों को दुखदर्द सुनना तथा उनकी सहायता करना था। उनकी पिछले कुछ महीनों से उनके स्वास्थ्य में लगातार गिरावट आ रही थी जिसके चलते उन्हें दिल्ली इलाज के लिए ले जाया गया था। अपने विरोधियों में भी लोकप्रिय और सम्मान पाने वाले बाबूलाल गौर को कांग्रेस सरकार में रहे पूर्व मुख्यमंत्रियों से दोस्ती के लिए भी याद किया जाता रहेगा। उनके संबंध अर्जुन सिंह से लेकर दिग्विजय सिंह और वर्तमान मुख्यमंत्री कमलनाथ से सौहाद्रपूर्ण रहे। अस्पताल में भर्ती होने के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ उनसे मिलने अस्पताल पहुँचे थे और उनके जल्द स्वास्थ्य होने की कामना की थी। बाबूलाल के जाने के बाद प्रदेश की राजनीति में एक युग का अंत हो गया। उनके पार्थिव शरीर को उनके सरकारी बंगले और भारतीय जनता पार्टी प्रदेश कार्यालय में जनता के दर्शन के लिए रखा गया। बाबूलाल गौर का अंतिम संस्कार भोपाल के सुभाष नगर विश्राम घाट पर कर दिया गया। इस मौके पर भारी संख्या में लोग उनके अंतिम दर्शन करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुँचे।

- दिनेश शुक्ल

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