वीपी सिंह के इस फैसले से राजनीति में आये थे बुनियादी फर्क

Story on Former Prime minister VP Singh
[email protected] । Jun 25 2018 2:59PM

मांडा के 41वें राजा बहादुर और देश के आठवें प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय को बहस का मुद्दा बनाने के निमित्त बने, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में कई बुनियादी फर्क आए।

मांडा के 41वें राजा बहादुर और देश के आठवें प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय को बहस का मुद्दा बनाने के निमित्त बने, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में कई बुनियादी फर्क आए। प्रधानमंत्री पद पर रहते गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की पुत्री को अपहरणकर्ताओं से छुड़ाने के लिए आतंकवादियों की रिहाई, रथयात्रा के दौरान लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी और मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का फैसला उन्हें कई बार सुर्खियों में ले आया। विश्वनाथ प्रताप सिंह को देश की राजनीति को एक नया कलेवर देने का श्रेय दिया जाता है।

सेंटर फार स्टडीज आफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के राजनीतिक विश्लेषक आदित्य निगम के अनुसार पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रयासों के कारण विभिन्न क्षेत्रों में कई बुनियादी फर्क आए। इससे एक ओर जहां संसद का चेहरा बदल गया वहीं राजनीति आम लोगों की ओर अग्रसर हुई। संसद में पहले आक्सफोर्ड और अन्य प्रसिद्ध विदेशी संस्थाओं में पढ़ाई कर राजनीति में आने वाले अंग्रेजीदां लोगों की प्रमुखता थी, उसमें बदलाव आया और भारतीय भाषाओं में बातचीत करने वाले लोगों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। निगम के अनुसार जिन क्षेत्रों में पिछडे़ और समाज के अन्य वर्ग का प्रवेश आसान नहीं था, विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रयासों के कारण वहां भी उनकी पहुंच सुगम हो गई। मंडल मुद्दे के कारण पहली बार सामाजिक न्याय बहस का मुद्दा बना और सवर्ण वर्चस्व में कमी आई। निगम का मानना है कि सामाजिक न्याय के लिए सुगबुगाहट पहले से ही चल रही थी और विश्वनाथ प्रताप निमित्त मात्र थे। जनता पार्टी की स्थापना, मंडल आयोग का गठन, राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनना आदि बताते हैं कि उदय पहले से हो रहा था लेकिन सिंह ने उसे एक मोड़ प्रदान किया।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में राजनीति विज्ञान में प्राध्यापक आरपी पाठक के अनुसार विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रयासों का असर भारतीय राजनीति में दलित और अत्यंत पिछड़े वर्ग की स्थित पिर स्पष्ट दिखता है। पाठक के अनुसार भारत में समतामूलक समाज की बात 1930 से ही की जा रही थी और 1932 में दक्षिण भारत में एक आंदोलन भी चला था। लेकिन सामाजिक स्तर पर आर्थिक या संरचनात्मक सुधार नहीं हो पाया। पाठक का मानना है कि विश्वनाथ प्रताप सिंह ने राजनीति में अभिनव प्रयोग किया। उनके प्रयासों के कारण राजनीति आम लोगों की ओर गई और राजनीतिक चेतना बढ़ी। उसी का नतीजा है कि अत्यंत पिछड़े वर्ग 'पावर ब्लाक' बन कर उभरे और राजनीति में उनकी हिस्सेदारी बढ़ी।

उल्लेखनीय है कि 25 जून 1931 को सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश में दहिया राज परिवार में हुआ था। बाद में मांडा के नरेश ने उन्हें गोद लिया था और वह मांडा के नरेश भी बने। वह नेहरू युग में राजनीति में आए और कांग्रेस से जुड़ गए। बाद में वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने। उप्र में उनके मुख्यमंत्री काल में दस्यू उन्मूलन अभियान काफी चर्चा में रहा।

वीपी के नाम से मशहूर सिंह 1980 और 1990 के दौर में विभिन्न कारणों से बार−बार राष्ट्रीय सुर्खियों में प्रमुखता से बने रहे। राजीव गांधी सरकार में उन्होंने वित्त और रक्षा मंत्रालय के रूप में अपना रसूख बहुत बढ़ा लिया। वीपी बाद में राजीव गांधी के साथ मतभेद होने के पश्चात कांग्रेस से अलग हो गए। इसी के साथ उन्होंने बोफोर्स तोप सौदे के मामले में देश में एक जबर्दस्त राजनीतिक तूफान पैदा कर दिया। इसी अभियान के चलते मिली सफलता से उन्होंने 1989 के संसदीय चुनाव के बाद भाजपा और वामदलों के सहयोग से केंद्र में सरकार बनाई। प्रधानमंत्री के रूप में सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने का फैसला किया जो भारतीय राजनीति में 'निर्णायक मोड़' साबित हुआ। इसी दौरान आरक्षण विरोधी अभियान के बारे में उनके रुख के कारण वह समाज के एक वर्ग में अलोकप्रिय भी हुए।

प्रधानमंत्री पद से हटने के कुछ ही समय बाद भले ही उन्होंने अपने खराब स्वास्थ्य के कारण चुनावी राजनीति से संन्यास ले लिया लेकिन जब भी देश में तीसरे विकल्प का कोई प्रयास किया गया, वीपी हमेशा अग्रिम पंक्ति में दिखाई दिए। राजनीति के अलावा वीपी के व्यक्तित्व का रचनात्मक पक्ष उनकी कविताओं और चित्रकला के माध्यम से सामने आता है। अपनी कविताओं में वह एक बौद्धिक लेकिन संवेदनशील रचनाकार के रूप में गहरी छाप छोड़ते हैं। गुर्दे और कैंसर से लंबे समय तक जूझने के बाद वीपी का 27 नवंबर 2008 को निधन हुआ।

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