विश्व में भारत की पहली सांस्कृतिक प्रतिनिधि थीं मैडम भीकाजी कामा

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[email protected] । Sep 24 2018 11:53AM

भारत के आदि ध्वज को पहली बार वैश्विक मंच पर रखकर दुनिया को सम्भावित स्वतंत्र और स्वायत्त देश के रूप में भारत की दस्तक का अहसास कराने वाली मैडम भीकाजी कामा साहस, निर्भीकता और मजबूत इरादों की प्रतीक थीं।

भारत के आदि ध्वज को पहली बार वैश्विक मंच पर रखकर दुनिया को सम्भावित स्वतंत्र और स्वायत्त देश के रूप में भारत की दस्तक का अहसास कराने वाली मैडम भीकाजी कामा साहस, निर्भीकता और मजबूत इरादों की प्रतीक थीं। विदेश में भारत की पहली सांस्कृतिक प्रतिनिधि कही जाने वाली कामा ने स्वराज का नारा बुलंद किया। उन्होंने महिलाओं के हक के लिए भी आवाज उठाई। उनके मुखर और अहिंसक क्रांति से घबराए अंग्रेजों ने भारत में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी थी। भीकाजी कामा के जीवन से जुड़े तथ्यों के मुताबिक उन्होंने अपना जीवन भारत की आजादी के लिए न्यौछावर कर दिया। 

24 सितम्बर 1861 को बम्बई में एक पारसी परिवार में जन्मीं भीकाजी में लोगों की मदद और सेवा करने का जज्बा कूट−कूट कर भरा था। वर्ष 1896 में मुम्बई में प्लेग फैलने के बाद भीकाजी ने इसके मरीजों की सेवा की थी। बाद में वह खुद भी इस बीमारी की चपेट में आ गई थीं। इलाज के बाद वह ठीक हो गई थीं लेकिन उन्हें आराम और आगे के इलाज के लिए यूरोप जाने की सलाह दी गई थी। वर्ष 1902 में वह इसी सिलसिले में लंदन गईं और वहां भी उन्होंने भारतीय स्वाधीनता संघर्ष के लिए काम जारी रखा। भीकाजी ने वर्ष 1905 में अपने सहयोगियों विनायक दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा की मदद से भारत के ध्वज का पहला डिजायन तैयार किया था।

भीकाजी कामा ने 22 अगस्त 1907 को जर्मनी में हुई इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांफ्रेंस में भारतीय स्वतंत्रता के ध्वज को बुलंद किया था। उस सम्मेलन में उन्होंने भारत को अंग्रेजी शासन से मुक्त करने की अपील की थी। उनके तैयार किए गए झंडे से काफी मिलते−जुलते डिजायन को बाद में भारत के ध्वज के रूप में अपनाया गया। 

भीकाजी द्वारा लहराए गए झंडे में देश के विभिन्न धर्मों की भावनाओं और संस्कृति को समेटने की कोशिश की गई थी। उसमें इस्लाम, हिंदुत्व और बौद्ध मत को प्रदर्शित करने के लिए हरा, पीला और लाल रंग इस्तेमाल किया गया था। साथ ही उसमें बीच में देवनागरी लिपि में वंदे मातरम लिखा हुआ था। जर्मनी में फहराया गया वह झंडा इस वक्त पुणे की मराठा एवं केसरी लाइब्रेरी में रखा हुआ है। तथ्यों के मुताबिक भीकाजी हालांकि अहिंसा में विश्वास रखती थीं लेकिन उन्होंने अन्यायपूर्ण हिंसा के विरोध का आह्वान भी किया था। उन्होंने स्वराज के लिए आवाज उठाई और नारा दिया− आगे बढ़ो, हम भारत के लिए हैं और भारत भारतीयों के लिए है।

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