Vinayak Damodar Savarkar Birth Anniversary: वीर सावरकर ने महज 12 साल की उम्र में लहराया था वीरता का परचम, जानिए क्या है 'माफीनामे' का सच

Veer Savarkar
Prabhasakshi

वीर सावरकर को को देश एक भारतीय राष्ट्रवादी के रूप में जाता है। बता दें कि 28 मई को वीर सावरकर का जन्म हुआ था। इन्होंने अपना पूरा जीवन देश के नाम कर दिया था। वह बचपन से ही अपने देश के लिए कुछ कर गुजरने का साहस रखते थे।

भारत में ऐसे तमाम वीर सेनानी हुए, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। उन्होंने अपना सबकुछ देश के लिए समर्पित कर दिया। ऐसे ही एक महापुरुष वीर सावरकर थे। आज भी भारत में वीर सावरकर को देश एक भारतीय राष्ट्रवादी के रूप में जानता है। बता दें कि 28 मई को वीर सावरकर का जन्म हुआ था। राजनीतिक दल और राष्ट्रवादी संगठन हिंदू महासभा के प्रमुख सदस्य रहकर वीर सावरकर ने अपना पूरा जीवन देश के नाम कर दिया था। आइए जानते है उनकी बर्थ एनिवर्सिरी पर वीर सावरकर के जीवन से जुड़ी कुछ बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

नासिक जिले के भागलपुर में 28 मई 1883 को विनायक दामोदर सावरकर का जन्म हुआ था। विनायक दामोदर सावरकर एक साधारण से हिंदू ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे। सवरकर के मन में बचपन से ही देश भक्ति का भाव देखने को मिला था। उन्होंने अपनी वीरता का परचम महज 12 साल की उम्र में लहरा दिया था। बता दें कि विनायक दामोदर सावरकर मुसलमानों की भीड़ में 1 छात्रों के समूह को भगा दिया। जिसने पूरे शहर में अफरा-तफरी मचा रखी थी। उनके इस कार्य के लिए सावरकर की बहुत प्रशंसा हुई। इसके बाद ही उनको वीर नाम दिया गया। तभी से उन्हें वीर सावरकर कहकर पुकारा जाने लगा। 

वीर सावरकर की जिंदगी पर उनके बड़े भाई गणेश सावरकर का बहुत प्रभाव था। बचपन से ही सावरकर में कुछ कर गुजरने की चाह ने उनको क्रांतिकारी बना दिया। इसमें सावरकर के भाई गणेश ने अहम भूमिका निभाई थी। सावरकर अपने छात्र जीवन में एक खिलाड़ी के तौर पर उभरे थे। वह क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए सदैव तैयार रहते थे। इसके लिए सावरकर ने अपना एक संगठन बना लिया था। क्योंकि वह बहुत बड़े-बड़े क्रांतिकारी नेता जैसे लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, और विपिन चंद्र पाल आदि से बहुत प्रेरित थे। 

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क्रांतिकारी गतिविधियों के साथ ही उन्होंने fergusson कॉलेज से अपनी डिग्री प्राप्त की। अच्छे अंको से पास होकर सावरकर ने छात्रवृत्ति प्राप्त की। इसके बाद कानून की पढ़ाई के लिए वह इंग्लैंड चले गए। इस दौरान उन्होंने इंग्लैंड में भारतीयों छात्रों को प्रेरणा देते हुए फ्री इंडिया सोसाइटी नामक एक संगठन बनाया। वहीं भारत वापस आने के बाद सावरकर ने अपने बड़े भाई गणेश के साथ मिलकर 'इंडियन कॉउन्सिल एक्ट 1909' के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

काला पानी की सजा

ब्रिटिश सरकार के खिलाफ इस विरोध के लिए सावरकर को अपराधी घोषित कर दिया गया। ब्रिटिश सरकार ने सावरकर पर अपराध की साजिश रचने का आरोप लगाते हुए गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया। वहीं गिरफ्तारी से बचने के लिए वह पेरिस चले गए। लेकिन बाद में साल 1910 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इस दौरान उनके खिलाफ कोर्ट में केस दर्ज कराया गया। इस केस की सुनवाई के लिए सावरकर को मुंबई भेज दिया गया। जहां पर उनको 50 साल की सजा सुनाई गई। जिसके बाद साल 1911 को काला पानी की सजा के तौर पर उन्हें अंडमान-निकोबार द्वीप समूह की सेल्यूलर जेल में बंद कर दिया। इस दौरान उनको काफी ज्यादा प्रताड़ित किया गया। लेकिन सावरकर ने हार नहीं मानी।

माफीनामा

बताया जाता है कि जब सावरकर को सजा सुनाई गई तो उन्होंने ब्रिटिश सरकार के सामने एक याचिका दी थी। जिसके अनुसार, यदि उन्हें छोड़ दिया जाता है तो वह देश की स्वतंत्रता आंदोलनों में हिस्सा नहीं लेगें और अंग्रेज सरकार के वफादार बनकर रहेंगे। जेल की सजा पूरी होने के बाद सावरकर ने अपना वादा नहीं तोड़ा और वह किसी गतिविधि में शामिल नहीं हुए। हालांकि इस माफीनामे का क्या सच है। इसका कोई रिकॉर्ड नहीं मिला है। लेकिन अक्सर इस बात को लेकर विवाद होता रहता है। जहां एक ओर भारत सरकार वार सावरकर को भारत रत्न से सम्मानित करना चाहती है, तो वहीं कांग्रेस का कहना है कि वीर सावरकर भारत रत्न के काबिल नहीं है।

वीर सावरकर पुस्तकालय

जेल में सजा काटने के दौरान सावरकर ने को पढ़ाना-लिखाना शुरूकर दिया। कुछ समय बाद उन्होंने ब्रिटिश सरकार से जेल के अंदर एक बुनियादी पुस्तकालय शुरु करने की मांग की। इस अर्जी को मानते हुए जेल में पुस्तकालय शुरू कर दिया गया। जेल में रहते हुए भी सावरकर ने पूरे देश में हिंदुत्व को फैला दिया था। वह जेल के अंदर से ही 'हिंदुत्व:एक हिंदू कौन है' नामक वैचारिक पर्चा लिखा करते थे। फिर उसे चुपचाप जेल के बाहर बंटवा दिया करते थे। धीरे-धीरे उनके लिखे पर्चे प्रकाशित होने के साथ पूरे देश में फैलते चले गए। 

हिंदुत्व

बता दें कि वीर सावरकर खुद को हिंदू कहलवाने में बहुत गर्वित महसूस किया करते थे। हिंदू, बोद्ध, जैन धर्म के एकीकरण पर जोर देते थे। लेकिन मुसलमान और ईसाई लोग सावरकर के खिलाफ थे। क्योंकि सावरकर ने ईसाइयों और मुसलमानों के अस्तित्व का कभी समर्थन नहीं किया था। बता दें कि उनको भारत में मिसफिट के नाम से भी जाना जाता था। सावरकर हिंदू राष्ट्र का सपना देखते थे। वह कभी नहीं चाहते थे कि अखंड भारत को दो टुकड़ों में विभाजित किया जाए। इसलिए उन्होंने गांधी जी का कभी समर्थन नहीं किया। वीर सावरकर अपने लेखों में महात्मा गांधी को पाखंडी कहते थे। वह गांधी जी को अपरिपक्व मुखिया कहते थे। जिसने अपनी छोटी सोच के कारण भारत के दो टुकड़े कर दिए।

मृत्यु

वीर सावरकर ने अपनी इच्छा मृत्यु का प्रण लिया था। इसलिए उन्होंने पहले ही सबको बता दिया था कि वह अपनी मृत्यु तक उपवास पर रहेंगे। इस दौरान उन्होंने अन्न का एक दाना नहीं खाया। बता दें कि 1 फरवरी 1966 को सावरकर ने घोषणा कर दी कि वह आज से उपवास रखेंगे। इस प्रण के बाद उन्होंने अन्न त्याग दिया। जिसके बाद उपवास का पालन करते हुए 26 फरवरी 1966 को वीर सावरकर ने सदा के लिए अपनी आंखें बंद कर लीं।

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