Vinoba Bhave Death Anniversary: भूदान आंदोलन के नायक थे विनोबा भावे, राजनीति से रखा खुद को दूर

Vinoba Bhave
Prabhasakshi

भारत के राष्ट्रीय शिक्षक के रूप में सम्मानित विनोबा भावे का 15 नवंबर को निधन हो गया था। विनोबा भावे भी महात्मा गांधी की तरह सत्य, अहिंसा और समानता के सिद्धांतों को मानने वाले थे। उनका मानना था कि बाहरी दुनिया में बदलाव महत्वपूर्ण नहीं होता है, बल्कि आपके अपने अंदर भी परिवर्तन होना चाहिए।

समाज सेवा, अहिंसा और आत्म-ज्ञान की मिसाल रहे विनोबा भावे का 15 नवंबर को निधन हो गया था। विनोबा भावे के भारत के राष्ट्रीय शिक्षक के रूप में सम्मानित किया गया था। उनका असली नाम विनायक नरहरी भावे था। लेकिन वह विनोबा भावे के नाम से ज्यादा प्रसिद्ध हुए। विनोबा भावे भी महात्मा गांधी की तरह सत्य, अहिंसा और समानता के सिद्धांतों को मानने वाले थे। उनका मानना था कि सिर्फ बाहरी दुनिया में बदलाव महत्वपूर्ण नहीं होता है, बल्कि आपके अपने अंदर भी परिवर्तन होना चाहिए। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर विनोबा भावे के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और परिवार

महाराष्ट्र के कोंकण के गागोदा गांव में 11 सितंबर 1895 को विनायक नरहरि भावे का चितपाव ब्राह्मण परिवार में जन्म हुआ था। इनकी मां रुकमणी बाई धार्मिक महिला थीं, ऐसे में विनोबा को अपनी मां से धार्मिक शिक्षा मिली। मां से विनोबा भावे को संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम, गुरू रामदास, नामदेव, और शंकराचार्य की कथाएं सुनने के अलावा रामायण, महाभारत और उपनिषदों के तत्वज्ञान मिले। उन्होंने हाईस्कूल में फ्रेंच सीखा और साहित्य के साथ संस्कृत और वेद उपनिषद भी पढ़े।

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शुरू किया भूदान आंदोलन

बता दें कि विनोबा भावे का सबसे बड़ा योगदान भूदान आंदोलन के रूप में था, जोकि उन्होंने साल 1951 में शुरू किया था। इस आंदोलन को शुरू करने का मुख्य उद्देश्य गरीबों को जमीन देने और उनके जीवन को बेहतर बनाना था। इस दौरान विनोबा भावे ने देशभर के कई गांवों में जाकर बड़े जमींदारों से जमीन प्राप्त की और उस जमीन को गरीबों में बांटा। विनोबा भावे का मानना था कि संपत्ति का बंटवारा ही समाज में न्याय और समानता ला सकता है।

अंहिसा को मानते थे विनोबा भावे

विनोबा भावे के इस आंदोलन ने भारतीय समाज में जमीन के मालिकाना हक को लेकर जागरुकता फैलाई। वहीं उनका यह कदम समाज में गरीबी कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुई। विनोबा भावे की सोच ने समाज में एक गहरी छाप छोड़ी। उन्होंने अपने जीवन में हमेशा अहिंसा के सिद्धांत को बनाए रखा और यह भी कहा कि हिंसा सिर्फ बाहरी रूप में नहीं बल्कि मन में भी हो सकती है। क्योंकि विनोबा भावे का मानना था कि हिंसक मन को शांत करना बेहद जरूरी है, क्योंकि सिर्फ बाहरी तौर पर अहिंसक बनने से कुछ नहीं होता है।

निडरता

विनोबा भावे का एक और अहम सिद्धांत था, 'निडरता से प्रगति और विनम्रता से सुरक्षा।' विनोबा भावे का विश्वास था कि किसी भी काम करने के लिए आपका निडर होना बेहद जरूरी है, लेकिन उसके साथ ही विनम्रता हमें आंतरिक शांति और सुरक्षा देती है।

मृत्यु

आजादी के बाद विनोबा भावे ने अपना बाकी का जीवन वर्धा में पवनार के ब्रह्म विद्या मंदिर आश्रम में गुजारा। अंतिम दिनों में विनोबा भावे ने अन्न-जल का त्याग कर दिया था और समाधी मरण को अपनाया था। जिसको जैन धर्म में संथारा भी कहा जाता है। वहीं 15 नवंबर 1982 को विनोबा भावे ने अंतिम सांस ली। मरणोपरांत विनोबा भावे को साल 1983 में 'भारत रत्न' से नवाजा गया था।

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