अवध की जमीं से बुंदेलों की धरती तक की संघर्ष गाथा

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अजय कुमार । Apr 30 2019 10:49AM

पांचवें चरण में जिन निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव होना है उसमें धौरहरा, सीतापुर, मोहनलालगंज (अनुसूचित जाति), लखनऊ, रायबरेली, अमेठी, बांदा, फतेहपुर, कौशाम्बी, बाराबंकी (सुरक्षित), अयोध्या (पहले फैजाबाद था), बहराइच (सुरक्षित), कैसरगंज और गोण्डा हैं। 14 लोकसभा सीटों के लिए नामांकन वापसी के बाद अब 181 प्रत्याशी चुनाव मैदान में बचे हैं।

उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव का पांचवां चरण राज्य की राजनीति का एक महत्वपूर्ण पड़ाव हैं। इस चरण में सियासत का रंग लखनऊ और उसके आसपास के जिलों में सुर्ख होते दिखेगा। पाचवां चरण आते−आते राज्य को लू के थपेड़ों ने अपने आगोश में समेट लिया है। दिन में सड़के विरान होने लगी हैं। सूरज के ढलने के बाद यह विरानगी टूटती है। 06 मई को पांचवें चरण का मतदान होना है और इसी दिन से पवित्र रमजान के महीने की भी शुरूआत हो जाएगी। हो सकता है गरमी और रमजान के चलते मतदान का प्रतिशत थोड़ा कम रहे, इसी को ध्यान में रखते हुए मतदान कार्य से जुड़े और मतदान को बढ़ावा देने वाली संस्थाएं और जागरूक नागरिकों ने भी अपनी मुहिम तेज कर दी है ताकि अधिक से अधिक लोग मतदान करने के लिए पोलिंग बूथ पर पहुंचे। इस चरण की 14 सीटें अवध एवं तराई के जिलों से लेकर बुंदेलखंड तक से आती हैं। पांचवें चरण में तीन सीटें सुरक्षित हैं। इस चरण में सोनिया गांधी, राहुल गांधी, राजनाथ सिंह, जितिन प्रसाद, पूनम सिन्हा, स्मृति ईरानी जैसे राष्ट्रीय चेहरों का भाग्य ईवीएम में बंद हो जाएगा है। पांचवें चरण में धौरहरा संसदीय सीट से शिवपाल यादव की पार्टी ने पूर्व दस्यु सम्राट मलखान सिंह को टिकट देकर रोमांच पैदा कर दिया है। भगवान राम की नगरी अयोध्या का प्रतिनिधित्व कर रही फैजाबाद अपना खेवनहार किसे बनाएगी, यह भी इसी चरण में तय होगा। जिन 14 सीटों पर मतदान होना है उसमें कांग्रेस परिवार की दो सीटों को छोड़कर सभी 12 सीटों पर भाजपा काबिज है।

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पांचवें चरण में जिन निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव होना है उसमें धौरहरा, सीतापुर, मोहनलालगंज (अनुसूचित जाति), लखनऊ, रायबरेली, अमेठी, बांदा, फतेहपुर, कौशाम्बी, बाराबंकी (सुरक्षित), अयोध्या (पहले फैजाबाद था), बहराइच (सुरक्षित), कैसरगंज और गोण्डा हैं। 14 लोकसभा सीटों के लिए नामांकन वापसी के बाद अब 181 प्रत्याशी चुनाव मैदान में बचे हैं। 

पेश है पांचवें चरण की सीटों का लेखा−जोखा।

1 धौरहरा लोकसभा सीट− (कुल वोटरः 16.34 लाख) तराई की यह सीट यूपीए  सरकार में मंत्री रहे कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद की उम्मीदवारी के चलते हाई प्रोफाइल हो गई है। 2009 में अस्तित्व में आई इस सीट से 2009 में जितिन प्रसाद 1.85 लाख वोटों के अंतर से जीते थे। 2014 में मोदी लहर में वह न केवल चौथे नंबर पर रहे। भाजपा ने मौजूदा सांसद रेखा वर्मा को उम्मीदवार बनाया है। वहीं बसपा से अरशद सिद्दीकी गठबंधन के प्रत्याशी हैं। प्रसपा ने कभी चंबल में खौफ का पर्याय रहे मलखान सिंह को उतारकर मुकाबला दिलचस्प बना दिया है। मुस्लिम, ब्राह्मण बहुल सीट पर जितिन प्रसाद की उम्मीदें इन वोटरों को उनके साथ जुड़ने पर टिकी हैं। वहीं, भाजपा अपने कोर वोटरों के जुड़ाव और विपक्ष के वोटरों खासकर मुस्लिमों में बिखराव पर टिकी है। पिछली बार सपा−बसपा को यहां बराबर−बराबर वोट मिले थे जो भाजपा उम्मीदवार के वोट से 1.18 लाख अधिक थे। ऐसे में दोनों दलों ने आपस में वोट ट्रांसफर करा लिए तो नतीजा उनके पक्ष में आ सकता है।

भाजपा− रेखा वर्मा। कांग्रेस− जितिन प्रसाद। गठबंधन− अरशद सिद्दीकी।

मतदाता− 58000 ओबीसी। 300000 एससी। 280000 सर्वण

2 लखनऊ लोकसभा सीट- (कुल वोटरः 19.58 लाख) से 1999 से 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रतिनिधित्व किया तो अब गृहमंत्री राजनाथ सिंह सांसद हैं। लखनऊ से दूसरी पारी के लिए वे मैदान में हैं। उनसे मुकाबले के लिए सपा मुंबई से शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा को लाई है। कांग्रेस की तलाश संभल में चुनाव लड़ चुके प्रमोद कृष्णम से पूरी हुई है। यहां जातीय गणित भाजपा के लिए उलझन पैदा करती है। इस सीट पर करीब पौने पांच लाख मुस्लिम और तीन लाख कायस्थ तथा दो लाख से अधिक दलित मतदाता हैं। सपा−बसपा साथ हैं और उनका संभावित प्रत्याशी कायस्थ है यह गठबंधन के लिए वोट में बदलें तो नतीजे भी बदल सकते हैं। लेकिन, कायस्थ आम तौर पर भाजपा का कोर वोटर माना जाता है और शिया मुस्लिमों में राजनाथ सिंह की अच्छी पैठ है। करीब साढ़े चार लाख ब्राह्मण, एक लाख ठाकुर व तीन लाख व्यापारी, सिंधी व पंजाबी भी भाजपा से जुड़ते हैं। ऐसे में विपक्ष की राह मुश्किल हो जाती है। हालांकि 2009, 2014 में यहां कांग्रेस ने टक्कर दी थी।

भाजपा− राजनाथ सिंह। सपा− पूनम सिंह। कांग्रेस− प्रमोद कृष्णम

450000 मुस्लिम। 426000 ब्राह्मण। 395000 कायस्थ। 177848 क्षत्रिय


3 मोहनलालगंज लोकसभा सीट- (कुल वोटरः 19.56 लाख) राजधानी लखनऊ का ही हिस्सा मोहनलालगंज सियासत और विकास दोनों ही पैमाने पर राजधानी से जुदा है। दशहरी आम से मोहनलालगंज को दुनिया में पहचान मिली है तो बिल्डरों व जमीन का कारोबार करने वालों का यह पसंदीदा इलाका रहा है। यह संसदीय सीट सियासत में भी अलग−अलग चेहरे चुनता रहा है। बावजूद इसके अब तक बसपा का यहां खाता नहीं खुल सका है। 1998 के बाद 2014 में कौशल किशोर ने यहां भाजपा का कमल खिलाया। इस बार भी भाजपा ने पुनरू कौशल पर भरोसा किया है। बसपा से सीएल वर्मा यहां गठबंधन प्रत्याशी हैं। पिछली बार बसपा से लड़े आरके चौधरी इस बार कांग्रेस का झंडा थामे हुए हैं। दलित बहुल इस सीट पर पासी सर्वािधक हैं लेकिन तीनों ही दलों के उम्मीदवार इसी बिरादरी के हैं। यहां पर पिछड़े, सवर्ण व मुस्लिम वोट ही तस्वीर तय करते हैं। पिछली बार भाजपा यहां से 1.42 लाख वोट से जीती थी लेकिन सपा−बसपा दोनों के वोट भाजपा से करीब 1 लाख अधिक थे।

भाजपा कौशल किशोर। कांग्रेस− आरके चौधरी। गठबंधन− सीएल वर्मा

मतदाता− 253000 यादव। 221000 जाटव। 215000 ब्राह्मण। 182000 क्षत्रिय

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4 अमेठी लोकसभा सीट- (कुल वोटरः 17.18 लाख) गांधी परिवार की इस परंपरागत सीट पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी चुनौतियों के चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं। उनका सीधा मुकाबला केंद्रीय मंत्री व भाजपा की उम्मीदवार स्मृति इरानी से है। 2009 में 71 प्रतिशत फीसदी वोट हासिल करने वाले राहुल गांधी 2014 में अमेठी में 46 प्रतिशत वोट पर सिमट गए थे और जीत का अंतर 1.08 लाख रह गया था। इन पांच सालों में हार के बाद स्मृति इरानी लगातार अमेठी में बनी रहीं। विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने यहां शानदार प्रदर्शन किया। केंद्र व प्रदेश सरकार की योजनाओं का मुंह अमेठी की ओर मोड़ा गया जिससे भाजपा के लिए इस जमीन को और उर्वरा बनाया जा सके। कांग्रेस अध्यक्ष का कद व गांधी परिवार से अमेठी का जुड़ाव अब भी राहुल के लिए अमेठी को मुफीद बनाता है, लेकिन राहुल गांधी ने बदले हालात के बाद वायनाड से भी चुनाव लड़ा है। पिछली बार बसपा को यहां 57 हजार वोट मिले थे जबकि आप के कुमार विश्वास ने भी 25 हजार वोट हासिल किए थे। इस बार दोनों ही दल मैदान में नहीं हैं। गठबंधन ने यहां कोई प्रत्याशी नहीं उतारा है।

भाजपा− स्मृति  ईरानी। कांग्रेस− राहुल गांधी

मतदाता− 2,91,822 मुस्लिम। 1,54,494 क्षत्रिय। 4,80,648 सर्वण। 68,664 वैश्य

5 रायबरेली लोकसभा सीट- (कुल वोटरः 16.50 लाख)इंदिरा गांधी को चौंकाने वाली रायबरेली की जनता अब तक उनकी बहू सोनिया गांधी के साथ मजबूती से खड़ी रही है। सोनिया ने पांचवी बार अपना नामांकन दाखिल किया है। हो सकता है यह उनका आखिरी चुनाव हो। पिछली बार उन्होंने भाजपा के अजय अग्रवाल को 3.52 लाख वोटों से हराया था। इस बार उनके खिलाफ भाजपा ने उम्मीदवार बदल दिया है। कांग्रेस के ही सिपहसालार और इस समय भी कांग्रेस से विधान परिषद सदस्य दिनेश प्रताप सिंह पर भाजपा ने दांव लगाया है। पिछले साल कांग्रेस के एमएलसी दिनेश प्रताप सिंह को रायबरेली में ही रैली कर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पार्टी की सदस्यता दिलाई थी। दिनेश का परिवार रायबरेली में राजनैतिक रूप से प्रभावी है। उनके भाई राकेश प्रताप सिंह हरचंदपुर से कांग्रेस के विधायक हैं, जबकि एक भाई जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। ऐसे में दिनेश की दावेदारी रायबरेली में लड़ाई को दिलचस्प बनाएगी। सपा−बसपा ने इस सीट पर कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है।

भाजपा−दिनेश प्रताप। कांग्रेस− सोनिया गांधी।

मतदाता−623776 एससी। 166340 मुस्लिम। 519814 सर्वण


6 बांदा लोकसभा सीट- (कुल वोटरः 16.82 लाख) पिछली बार इलाहाबाद सीट से भाजपा के सांसद श्यामाचरण गुप्ता यहां सपा से गठबंधन उम्मीदवार हैं। भाजपा ने मौजूदा सांसद भैरो प्रसाद मिश्र का टिकट काट बसपा से लड़कर पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे आरके पटेल पर दांव लगाया है। वही, पिछली बार सपा से लड़े बाल कुमार पटेल पर कांग्रेस ने अपनी उम्मीदें लगाई हैं। श्यामाचरण गुप्ता 2004 में यहां से सपा सांसद रहे हैं। वैश्य वोट के साथ दलितों, मुस्लिमों की बहुतायत उनका दावा मजबूत बना रही है। भाजपा पिछड़ा कार्ड के साथ ब्राह्मण वोटरों के भरोसे हैं। बाल कुमार पटेल का भी अपनी बिरादरी के वोटों पर पकड़ है। ऐसे में पिछड़ों की लड़ाई में अगड़े−दलित निर्णायक होंगे।

भाजपा− आरके चौधरी। सपा− श्यामाचरण। कांग्रेस− बाल  कुमार

9,00,000 पिछड़े। 4,20,000 एससी।


7. बहराइच लोकसभा सीट- (कुल वोटरः 17.13 लाख) मान्यता है कि ब्रह्मा ने बहराइच को ऋषि−मुनियों के लिए बसाया था। सैयद सालार मसूद गाजी की मजार भी यहीं है। फिलहाल भाजपा से यहां सांसद बनीं सावित्री बाई फुले इस बार कांग्रेस की उम्मीदवार हैं। भाजपा ने अक्षयवार लाल गौड़ को उतारा है और सपा ने पार्टी के पुराने चेहरे शब्बीर अहमद वाल्मीकि पर फिर दांव लगाया है। शब्बीर अहमद पिछली बार लगभग उतने ही वोट से हारे थे जितने बसपा को मिले थे। इस बार सपा−बसपा के साथ आने से उनकी उम्मीदों को पंख लग गए हैं। भाजपा दलितों के साथ ही अति पिछड़े व सवर्ण मतदाताओं के साथ के भरोसे है। कांग्रेस 2009 में यह सीट जीत चुकी है और मौजूदा सांसद को टिकट देकर उनकी क्षेत्र में पैठ व मुस्लिम वोटों में हिस्सेदारी के जरिए अपनी राह बना रही है। इस सीट पर मुस्लिम वोटर 25 प्रतिशत से अधिक हैं। इनकी भूमिका निर्णायक हो सकती है।

भाजपा− अक्षयवार गौड़। सपा− शब्बीर अहमद । कांग्रेस− सावित्री बाई फूले

मतदाता− 3,32,431 एससी। 5,45,744 मुस्लिम। 1,72,531 सर्वण

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8 कैसरगंज लोकसभा सीट- (कुल वोटरः 17.91 लाख) गोंडा जिले की इस सीट से कुश्ती संघ के अध्यक्ष ब्रजभूषण सिंह अपनी तीसरी पारी खेलने के लिए मैदान में हैं। बसपा से चंद्रदेव राम यादव गठबंधन के उम्मीदवार हैं। यहां से बसपा ने संतोष तिवारी को प्रभारी बनाया था, लेकिन भाजपा से सांठ−गांठ के आरोपों में पार्टी से उन्हें निकाल दिया गया। इसके बाद आजमगढ़ से ताल्लुक रखने वाले चंद्रदेव पर दांव लगाया गया। कांग्रेस ने पूर्व सांसद विनय कुमार पांडेय को उम्मीदवार बनाया है। ब्राह्मण−ठाकुर बहुल इस सीट पर पिछली बार ब्रजभूषण 78 हजार वोट से जीते थे। बसपा के ब्राह्मण प्रत्याशी को भी 1.46 लाख वोट मिले थे। इस बार भाजपा के लिए राहत यह है कि पिछली बार के सपा प्रत्याशी पंडित सिंह के गोंडा से लड़ने से ठाकुर वोटों में सेंधमारी का खतरा नहीं है। मजबूत ब्राह्मण प्रत्याशी न होना भी ब्रजभूषण के पक्ष में है। वहीं, बसपा उम्मीदवार का बाहरी होना भी मुद्दा है। ऐसे में कोर वोटरों की एकजुटता पर गठबंधन की आस टिकी है।

भाजपा− ब्रजभूषण सिंह। बसपा− चंद्रदेव राम। कांग्रेस− विनय कुमार

मतदाता− 225000 मुस्लिम। 302000 दलित। 425000 सर्वण। 129000 ठाकुर

9 गोंडा लोकसभा सीट- (कुल वोटरः 17.54 लाख) अवध की इस 'रियासत' में इस बार सियासी लड़ाई राजा बनाम 'पंडित' की है। भाजपा से मौजूदा सांसद व गोंडा स्टेट के उत्तराधिकारी कीर्तिवर्धन सिंह जीत दोहराने के लिए मैदान में हैं। उनके मुकाबले सपा से गठबंधन के उम्मीदवार विनोद कुमार सिंह उर्फ 'पंडित सिंह' हैं। कांग्रेस ने केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल को उतारा है। इस सीट पर कुर्मी वोटरों की अच्छी संख्या है, जिसके साथ ब्राह्मण व मुस्लिम वोटों की जुगलबंदी कर बेनी प्रसाद वर्मा यहां 2009 में कांग्रेस से सांसद बने थे। फिलहाल दो ठाकुरों की लड़ाई में सबसे बड़ा अंतर छवि का है। पंडित सिंह विवादों के लिए जाने जाते हैं। इस लोकसभा में ब्राह्मण वोटरों की अच्छी तादात भाजपा को मुकाबले में लाती है। दलित−मुस्लिम वोटरों का साथ पंडित सिंह को मिला तो पलड़ा मजबूत दिखेगा। 

भाजपा− कीतिवर्धन सिंह। सपा− विनोद उर्फ। कांग्रेस− कृष्णा पटेल

मतदाता− 2,91,822 मुस्लिम। 1,54,494 क्षत्रिय। 4,80,648 सर्वण। 68,664 वैश्य

10 बाराबंकी लोकसभा सीट- (कुल वोटरः 18.04 लाख) यहां कांग्रेस नेता पीएल पुनिया बेटे तनुज का सियासी भविष्य बनाने का ख्वाब पाले हैं। भाजपा ने मौजूदा सांसद प्रियंका रावत का टिकट काट जैदपुर से विधायक उपेंद्र रावत को चुना है। चार बार के सांसद राम सागर रावत सपा उम्मीदवार हैं। सपा उम्मीदवार की पहचान जमीनी चेहरे के तौर पर है और क्षेत्र की राजनीति में प्रभावी हस्तक्षेप रखने वाले कुर्मी बिरादरी के बड़े नेता बेनी प्रसाद वर्मा का पूरा समर्थन है। कुर्मी वोटरों की यहां अच्छी संख्या है। कुछ विधानसभाओं में यादव भी ठीक−ठाक हैं, मुस्लिमों में पैठ और बसपा का साथ समीकरण दुरुस्त करता है। हालांकि, भाजपा उम्मीदवार विधायक होने के साथ ही संगठन की पसंद हैं और सवर्ण वोटों की प्रभावी संख्या व मोदी प्रभाव उन्हें मजबूत बनाता है। लेकिन, मौजूदा सांसद का विरोध मुश्किल पैदा कर रहा है। कांग्रेस दलितों के साथ ही मुस्लिम वोटों में सेंधमारी के भरोसे है। 

भाजपा− उपेंद्र रावत। सपा− राम सागर। कांग्रेस− तनुज पुनिया

मतदाता− 1,25000 सैनी। 9,91,180 एससी। 8,65,942 मुस्लिम । 71 थर्ड जेंडर


11 फैजाबाद लोकसभा सीट- (कुल वोटरः 18.04लाख) देश की सियासत बदलने वाली राम नगरी समय−समय पर सांसद बदलती रहती है। हर दल को मौका दे चुके फैजाबाद में भाजपा का वनवास 1999 के बाद 2014 में लल्लू सिंह की जीत के बाद खत्म हुआ था। लल्लू इस बार भी भाजपा के उम्मीदवार हैं। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व यहां से दो बार सांसद रहे निर्मल खत्री भी मैदान में हैं। सपा ने पूर्व सांसद मित्रसेन यादव के बेटे आनंद सेन यादव पर भरोसा जताया है। मोदी लहर में यहां भाजपा को सपा, बसपा व कांग्रेस तीनों से अधिक वोट मिले थे। इस बार दमदार त्रिकोणीय लड़ाई है। कभी यहां के जिलाधिकारी रहे रिटार्यड ब्यूरोक्रेट विजय शंकर पांडेय भी यहीं से सियासी पारी शुरू कर रहे हैं। पिछड़े−दलित वोटरों की यहां तादात अच्छी है लेकिन जातीय तिलिस्म भी टूटते हैं। राम और राष्ट्रवाद के साथ ही मोदी के भरोसे यहां भाजपा है जबकि, गठबंधन जातीय समीकरणों को साध रही है।

भाजपा− लल्लू सिंह। सपा− आनंद सेन। कांग्रेस− डॉ.निर्मल खत्री

मतदाता− 247995 मुस्लिम। 389707 एससी। 478277 सर्वण

12 सीतापुर लोकसभा सीट- (कुल वोटरः 18.04 लाख) पहले चुनाव से लेकर अब तक इस सीट पर तीन मौकों को छोड़कर ब्राह्मण या कुर्मी ही सांसद बना है। 2014 में भाजपा कभी बसपाई रहे राजेश वर्मा के जरिए 51 हजार वोटों की बढ़त से इस सीट पर काबिज हुई थी। इस बार भी पार्टी ने उन पर ही भरोसा जताया है। पिछले चुनाव में भाजपा को करारी टक्कर देने वाली पूर्व सांसद कैसर जहां टिकट न मिलने के बाद कांग्रेस की प्रत्याशी हो चुकी हैं। गठबंधन की ओर से नकुल दुबे बसपा के प्रत्याशी हैं। वहीं पिछले चुनाव में सपा के प्रत्याशी रहे भरत त्रिपाठी ने भाजपा का दामन थाम लिया है। इस सीट पर मुस्लिम, दलित, ब्राह्मण व कुर्मी वोटरों की बहुतायत है। पिछली बार नजदीकी मुकाबले में जीती भाजपा कुर्मी उम्मीदवार, ब्राह्मणों के साथ व मुस्लिम वोटों में बंटवारे की उम्मीद पाले हैं। हालांकि, बसपा ने प्रभावी ब्राह्मण चेहरा दिया है और सपा के साथ, दलित वोटों का समर्थन उसकी गणित मजबूत बना रहा है। लड़ाई त्रिकोणीय है, इसलिए, कोर वोटरों का बना रहना अहम होगा।

भाजपा− लल्लू सिंह। सपा− आनंद सेन। कांग्रेस− निर्मल खत्री

मतदाता− 3.1 लाख वैश्य। 1.3 लाख बघेल। 2.8 लाख एससी। 2.7 लाख मुस्लिम

13 कौशांबी लोकसभा सीट- (कुल वोटरः 17.65 लाख) सुरक्षित सीट पर सपा−बसपा के प्रभाव का आंकलन इससे किया जा सकता है कि त्रिकोणीय लड़ाई में भी भाजपा 42 हजार वोटों से यह सीट जीत पाई थी। हालांकि, इस बार रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया की जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) की एंट्री ने चुनाव दिलचस्प बना दिया है। भाजपा ने सांसद विनोद सोनकर पर दांव लगाया है। पिछली बार उन्हें सपा से कड़ी टक्कर देने वाले पूर्व सांसद शैलेंद्र कुमार जनसत्ता दल(लोकतांत्रिक) से उम्मीदवार हैं। बसपा छोड़कर पार्टी में आए इंद्रजीत सरोज पर सपा ने दांव लगाया है तो बसपा से आए गिरीश चंद्र पासी कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। दलित बहुल इस सीट की दो विधानसभाएं कुंडा व बाबूगंज प्रतापगढ़ में आती हैं। इन दोनों ही सीटों पर राजा भैया का असर है। ऐसे में उनकी पार्टी क्या कमाल करेगी यह परिणाम बताएगा।

भाजपा− विनोद कुमार। सपा− इंद्रजीत। कांग्रेस− गिरीश चंद्र

मतदाता−4,00,000 एससी। 3,00,000 ओबीसी

14 फतेहपुर लोकसभा सीट- (कुल वोटरः 18.20 लाख) मंडल कमिशन की रिपोर्ट लागू कर देश की राजनीति बदलने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह भी फतेहपुर की नुमाइंदगी कर चुके हैं। पिछड़ा वोटर बहुल इस सीट पर राजनीति भी मंडल और कमंडल के ध्रुवीकरण पर टिकी है। भाजपा ने केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति पर फिर भरोसा जताया है तो बसपा ने बिंदकी के पूर्व विधायक सुखदेव प्रसाद वर्मा को भी टिकट दिया है। टिकट की आस टूटने के बाद पूर्व सांसद राकेश सचान सपा छोड़ कांग्रेस की उम्मीदवारी कर रहे हैं।

भाजपा− साध्वी निरंजन ज्योति। बसपा− सुखदेव प्रसाद। कांग्रेस− राकेश सचान

मतदाता− 709971 सर्वण। 504861 ओबीसी

- अजय कुमार

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