पाकिस्तान में चुनाव परिणाम बाद हाफिज सईद बन सकता है ''किंगमेकर''

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पाकिस्तान में चुनावों के क्या परिणाम होंगे और उनका भारत पर क्या असर पड़ेगा। इस समय यही विषय भारतवर्ष में सुर्खियों में है। पाकिस्तान के 71 वर्ष के इतिहास में सम्भवतः पहली बार आतंकवादी खुलकर राजनीति कर रहे हैं।

पाकिस्तान के आम चुनाव 25 जुलाई को हो रहे हैं। इन चुनावों के क्या परिणाम होंगे और उनका भारत पर क्या असर पड़ेगा। इस समय यही विषय भारतवर्ष में सुर्खियों में है। पाकिस्तान के 71 वर्ष के इतिहास में सम्भवतः पहली बार आतंकवादी खुलकर राजनीति कर रहे हैं। अमेरिका का मोस्ट वांटेड आतंकी हाफिज सईद अल्लाह−ओ−अकबर तहरीक नामक पार्टी का स्टार प्रचारक है। अमेरिका ने इस आतंकी पर एक करोड़ डॉलर का इनाम रखा है। अल्लाह−ओ−अकबर तहरीक के 260 से भी अधिक प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। दरअसल हाफिज सईद की पार्टी मिल्ली मुस्लिम लीग को चुनाव आयोग द्वारा 2018 के आम चुनाव के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है। यह प्रतिबन्ध पाकिस्तान के आंतरिक मन्त्रालय के उस पत्र के बाद लगाया गया जिसमें कहा गया था कि एमएमएल का सम्बन्ध आतंकी संगठन लश्कर−ए−तैयबा से है। आंतरिक मन्त्रालय ने यह पत्र उस समय लिखा था जब लाहौर संसदीय क्षेत्र के उप चुनाव में एमएमएल ने पांच प्रतिशत वोट हासिल करके सनसनी फैला दी थी। एमएमएल पर प्रतिबन्ध लगने के बाद हाफिज सईद ने अपने साथियों को आल्लाह−ओ−अकबर तहरीक पार्टी से न केवल टिकट दिलवा दिए बल्कि इस पार्टी का स्टार प्रचारक भी बन गया।

इससे स्पष्ट होता है कि आतंकवादियों का लक्ष्य प्रजातान्त्रिक तरीके से पाकिस्तान की सत्ता हासिल करके उसका बेजा इस्तेमाल करना है। अमेरिका के विल्सन सेंटर में एशिया प्रोग्राम के डिप्टी डायरेक्टर माइकल कुग्लमैन के अनुसार 'कट्टरपंथी समूहों का आम चुनाव में हिस्सा लेना बहुत मायने रखता है। यह इन्हें न केवल सत्ता में आने का अवसर देता है बल्कि ये समूह अपनी राजनीतिक बढ़त का दुरुपयोग कट्टरपंथी विचारधारा को जायज ठहराने में भी कर सकते हैं। पाकिस्तान के माहौल में ऐसे विचारों के समाहित होने की प्रबल सम्भावना भी है।' सईद अपनी चुनावी रैलियों में भारत और अमेरिका के विरुद्ध जहर उगल कर देश के माहौल को अपनी पार्टी के पक्ष में करने की पुरजोर कोशिश कर रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो इस सबसे हाफिज सईद को सत्ता तो हासिल नहीं होगी लेकिन सत्ता पर उसका नियंत्रण अवश्य हो सकता है। 

324 सदस्यों वाली पाकिस्तानी संसद में बहुमत के लिए 172 सीटें चाहिए। अब तक हुए सर्वेक्षणों के आधार पर इस बार मुख्य मुकाबला इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक−ए−इंसाफ और सत्ताधारी दल पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) के बीच ही है लेकिन सत्ता से दोनों ही पार्टियाँ दूर दिखाई दे रही हैं। ऐसे में सरकार बनाने के लिए इनको छोटे दलों का समर्थन लेना पड़ेगा और इस सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि ये छोटे दल कट्टरपंथी विचारधारा वाले ही होंगे। जिनका भारत के प्रति सदैव विद्रोही रूख रहेगा। पाकिस्तान की सेना यही चाहती भी है। जानकारों की मानें तो पाकिस्तानी सेना चुनाव में सशक्त भूमिका निभाते हुए अन्दर ही अन्दर इमरान खान को समर्थन दे रही है। लेकिन साथ ही अल्लाह−ओ−अकबर तहरीक, मुत्तहिदा मजलिस−ए−अमल तथा तहरीक−ए−लब्ब्यक पाकिस्तान जैसे कट्टरपन्थी दलों का भी जमकर सहयोग कर रही है। जिससे इनके जीते हुए प्रत्याशी इमरान खान को समर्थन देकर प्रधानमन्त्री बनवा दें और सत्ता की चाभी इन कट्टरपंथियों के माध्यम से सेना के हाथ में रहे।

नवाज शरीफ अब तक सेना और कट्टरपंथियों के खिलाफ खुलकर बोल रहे थे। 6 जुलाई को उन्हें तथा उनके बेटी−दामाद को जेल भेजने के आदेश और चुनाव में भाग न लेने के निर्देश के बाद उन्होंने जोर देकर कहा था कि पाकिस्तान के 70 वर्षीय इतिहास की धारा मोड़ने की उनकी कोशिशों को यह सजा मिली है। उन्होंने कहा, 'मैं वादा करता हूँ कि इस संघर्ष को तब तक जारी रखूँगा जब तक पाकिस्तानियों को उन जंजीरों से आज़ादी नहीं मिल जाती जिनमें वे सच बोलने की वजह से कैद हैं।' उन्होंने यह भी कहा 'मैं अपने संघर्ष को तब तक जारी रखूँगा जब तक कि पाकिस्तान के लोग कुछ जनरलों और न्यायधीशों द्वारा थोपी गयी गुलामी से आजाद नहीं हो जाते।' नवाज शरीफ के बोल सेना और न्याय−व्यवस्था से जुड़े लोगों को भले ही न भाये हों परन्तु देश के अमन पसन्द लोगों को सन्तुष्ट करते हैं।

पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई−2017 में पनामा पेपर लीक मामले में दोषी करार देते हुए नवाज शरीफ को किसी भी सरकारी पद और राजनीतिक पार्टी में पद पर बने रहने पर रोक लगा दी थी। तब उनकी जगह शाहिद खाकान अब्बासी को प्रधानमन्त्री तथा नवाज के भाई शाहबाज शरीफ को पार्टी का मुखिया बनाया गया था। नवाज शरीफ इस चुनाव में सक्रिय भूमिका निभाने वाले थे लेकिन 13 जुलाई को एवेनफील्ड फ्लैट मामले में बेटी−दामाद समेत उन्हें जेल भेज दिया गया।

नवाज शरीफ तथा उनके बेटी−दामाद को जेल तो भेज दिया गया लेकिन जेल भेजने से पूर्व उन पर लगाये गए आरोप सिर्फ अनुमान पर ही आधारित हैं। तीनों लोग सिर्फ इसलिए दोषी हैं क्योंकि अदालत में वे अपनी बेगुनाही साबित नहीं कर पाए। लन्दन स्थित जिन चार एवेनफील्ड फ्लैटों को भ्रष्टाचार के पैसों से खरीदने के उन पर अरोप लगे हैं, उसमें यह तय नहीं हो सका कि ये फ़्लैट उन्होंने प्रधानमन्त्री रहते हुए खरीदे हैं या फिर उसके पहले जब वे सिर्फ एक सियासी नेता हुआ करते थे। नवाज शरीफ के समर्थक पहले ही इसे सोचा समझा षड्यंत्र बता चुके हैं। ऐसे में आम मतदाताओं का रुख नवाज शरीफ के प्रति सकारात्मक होने की प्रबल सम्भावना है लेकिन उनकी अनुपस्थिति में पार्टी का प्रचार कमजोर पड़ता दिखाई दे रहा है।

क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान पाकिस्तानी युवाओं की पहली पसन्द माने जाते हैं। इमरान खान ने सन 1996 में पाकिस्तान तहरीक−ए−इंसाफ नाम की पार्टी बनाकर राजनीति शुरू की थी। नेशनल असेम्बली में इस दल के 33 सदस्य हैं। इस दृष्टि से यह देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है। पाकिस्तान के चुनाव में इस बार भ्रष्टाचार सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा है और इमरान खान ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे ज्यादा आवाज उठाई है। सन 2014 में उन्होंने नवाज सरकार के विरुद्ध आजादी मार्च निकाला था। पाकिस्तान के इतिहास का यह सबसे बड़ा आन्दोलन था, जो 126 दिन चला था। नवाज शरीफ के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने वालों में इमरान खान भी शामिल थे। जिसके तहत ही नवाज शरीफ को प्रधानमन्त्री पद छोड़ना पड़ा था। इस सबका सीधा लाभ इमरान खान को मिल सकता है।

बिलावल अली भुट्टो जरदारी की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की स्थिति बहुत अच्छी नहीं तो ख़राब भी नहीं है। राष्ट्रीय संसद में इसके 47 सदस्य हैं। सिंध प्रान्त में इस पार्टी की सरकार है और यहाँ इसकी स्थिति अधिक मजबूत मानी जाती है। एक अन्य दल मुत्तेहिदा कौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) की स्थिति भी कमजोर नहीं है। पाकिस्तान के कराची शहर में इस पार्टी का काफी दबदबा है। राष्ट्रीय संसद में इसके 24 सदस्य हैं। इसे विभाजन के बाद पाकिस्तान जाकर बसे मुहाजिरों की पार्टी माना जाता है। इसकी स्थापना 1984 में अल्ताफ हुसैन ने की थी। अवामी नेशनल पार्टी पाकिस्तान के खैबर पख्तून ख्वाह में सबसे बड़ी ताकत रही है। हालांकि पिछले चुनाव में तहरीक−ए−पाकिस्तान ने इसे प्रान्त की सत्ता से बाहर कर दिया था। राष्ट्रीय संसद में इसके मात्र दो सदस्य हैं। इस पार्टी के प्रमुख असफंदयार वली खान हैं। जमीयत उलेमा−ए−इस्लाम (एफ) पाकिस्तान का सुन्नी देवबंदी राजनीतिक दल है। मौलाना फजलुर रहमान के नेतृत्व वाले इस दल के पास 12 सांसद हैं। जमीयत उलेमा−ए−इस्लाम के 1988 में विभाजन के बाद यह पार्टी अस्तित्व में आयी थी। पाकिस्तान मुस्लिम लीग नाम की पार्टी सिन्धी धार्मिक नेता पीर पागड़ा से जुड़ी हुई है। राष्ट्रीय संसद में इसके 5 सदस्य हैं। सिराज उल हक के नेतृत्व वाले जमीयत उलेमा−ए−इस्लाम के राष्ट्रीय संसद में केवल चार सदस्य हैं। यह दल पाकिस्तान को शरिया कानून के अनुसार चलाना चाहता है। पाकिस्तान मुस्लिम लीग (क्यू) नाम की पार्टी नवाज शरीफ के पीएमएल (एन) से टूटकर बनी है। राष्ट्रीय संसद में इसके सिर्फ दो सदस्य हैं। इस पार्टी के मुखिया शुजात हुसैन परवेज मुशर्रफ के सैन्य शासन में कुछ समय तक पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री रह चुके हैं।

कुल मिलाकर सेना की इच्छा के अनुकूल पाकिस्तान में फिलहाल किसी भी दल की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनती हुई दिखाई नहीं दे रही है। परन्तु असली मुकाबला इमरान खान और नवाज शरीफ की पार्टी के बीच ही है। अन्य दल भी अपना−अपना जनाधार बढ़ाकर सत्ता की कुंजी अपने हाथ में लेने की फि़राक में हैं। भारत समेत पाकिस्तान के सभी पड़ोसी देश इस चुनाव पर निगाह गड़ाए हुए हैं। भारत पाकिस्तान की सत्ता को कट्टरपंथियों से मुक्त देखना चाहता है परन्तु इसकी सम्भावना बहुत कम है।  

-डॉ. दीपकुमार शुक्ल

(लेखक स्वतन्त्र पत्रकार हैं।)

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