उत्तराखंड में भाजपा आगे, पर सामने खड़ी हैं कई चुनौतियां भी

बहुगुणा खानदानी कांग्रेसी हैं अतः कब उनकी निष्ठा बदल जाये कोई नहीं कह सकता, यही बात कुछ अन्य विधायकों के साथ भी है जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये हैं क्योंकि उनकी राजनीतिक दुश्मीन तो हरीश रावत से है न कि कांग्रेस से।

नौ नवम्बर 2000 को उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश से अलग होकर एक पृथक प्रदेश के रूप में जन्मा। उन्हीं दिनों झारखण्ड व छत्तीसगढ़ का भी निर्माण हुआ। झारखण्ड थोड़ी उठा पटक के बाद संभल गया, छत्तीसगढ़ लगातार डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में आगे बढ़ रहा है। किन्तु उत्तराखण्ड का भाग्य ऐसा नहीं हुआ। राज्य के जन्म के समय नित्यानन्द स्वामी जी की अल्पकालीन सरकार बनी उस समय कुल 19 विधायक यूपी से अलग होकर आये थे, उन्हीं में से पहला मंत्रिमंडल बना, किन्तु अतिशीघ्र ही उन्हें हटाकर भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बना दिया गया।

केन्द्र में उस समय राजग की सरकार अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व में चल रही थी। तब तत्कालीन गृहमंत्री और उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी मुकदमों को लेकर उत्तराखण्ड आन्दोलनकारियों के निशाने पर आ गये थे। साथ ही उत्तराखण्ड के भाजपा कार्यकर्ताओं में असंतोष इतना बढ़ गया था कि सब बोलने लग गये थे कि भाजपा का आगामी चुनावों में सफाया हो जायेगा और आखिरकार ऐसा ही हुआ। राज्य में हुए पहले विधानसभा चुनावों में 70 सीटों में से भाजपा के पास 19 सीटें ही आयीं और नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में राज्य में कांग्रेस की सरकार बन गयी। वाजपेयी जी ने स्थिति को भांप लिया और आन्दोलनकारियों के मुकदमे समाप्त हो गये।

तिवारी के नेतृत्व में सरकार ठीक चली, विकास पुरुष के नाम से विख्यात वाजपेयी के मित्र तिवारी ने उत्तराखण्ड में अनेकों कल कारखाने लगवाये, विषेश जोन बनाये, सुविधायें भी प्रदान कीं, किन्तु उनके ही विरूद्ध हरीश रावत विद्रोह कर बैठे और अगले चुनाव में भाजपा बहुमत में आ गई तथा भुवन चन्द खण्डूरी मुख्यमंत्री बने, किन्तु भाजपा के ही कतिपय सिपहसालारों को तथा उत्तराखण्ड में मशहूर ख और ब की राजनीति (अर्थात ठाकुर और ब्राह्मण) के चलते उन्हें हटाकर रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री बना दिया गया। उनके कार्यकाल में स्थिति ऐसी हो गयी कि भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पहुंच गया, कार्यकर्ताओं के काम होने बन्द हो गये, चुनाव नजदीक देख भाजपा ने पुनः भुवन चन्द्र खण्डूरी को गद्दी सौंप दी, 'अबकी बार खण्डूरी सरकार' तथा 'खण्डूरी है जरूरी' के नारों के साथ भाजपा चुनाव में उतरी लेकिन खण्डूरी को उनकी सीट से हराने में भाजपा के ही दमदार नेताओं का हाथ था। भाजपा की सरकार नहीं बनी तो कांग्रेस ने जोड़ तोड़ करके और पद बांट कर सरकार बना ली तथा ब्राह्मण विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बना कांटों वाला ताज सौंप दिया। सूत्रों के अनुसार कहा जाता है कि बहुगुणा ने इसके लिये भारी भरकम रकम भी आलाकमान को चुकाई। किन्तु ख और ब की राजनीति के चलते तथा विद्रोह का झण्डा थामे हरीश रावत ग्रुप ने कांग्रेस आलाकमान को एक दिन भी चैन से सोने नहीं दिया तथा आखिरकार मजबूर होकर बहुगुणा को हटाकर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बना ही दिया एवं रावत की दशकों पुरानी इच्छा पूरी कर दी।
 
अब सरकार में अन्दर ही अन्दर विद्रोह की खिचड़ी पकनी प्रारम्भ हो गयी। आखिरकार मार्च 2016 में बहुगुणा गुट के 9 विधायक पार्टी से अलग हो गये, अपनी विधायकी भी समाप्त करवा दी। किन्तु राजनीति के चाणक्य रावत अपनी टूटी फूटी सरकार को किसी प्रकार बचा ले गये। भविष्य में ऊंट किस करवट बैठेगा यह भी तय नहीं, क्योंकि यदि भाजपा सत्ता आती है, जैसा कि दिखाई दे रहा है, भाजपा के पूर्व तीन मुख्यमंत्री तो इस समय सांसद हैं और तीनों ही मुख्यमंत्री पद की दौड़ में हैं। चौथी तो महारानी हैं, वे बनना नहीं चाहेंगी, पांचवें टमटा जी केन्द्र में मंत्री बन चुके हैं। रही बात विधायकों की तो प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट निर्विवाद नेता हैं किन्तु ख और ब की लड़ाई से तो भाजपा अछूती है ही नहीं, अतः कम से कम उत्तराखण्ड में निर्विवाद नेता ढूंढना मुश्किल है।

कांगेस से भाजपा में आये बहुगुणा खानदानी कांग्रेसी हैं अतः कब उनकी निष्ठा बदल जाये कोई नहीं कह सकता, यही बात कुछ अन्य विधायकों के साथ भी है जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये हैं क्योंकि उनकी राजनीतिक दुश्मीन तो हरीश रावत से है न कि कांग्रेस से, अतः आने वाले समय में कौन कहां रहेगा कोई भी नहीं कह सकता। आने वाले समय में यदि वर्तमान परिस्थितियां अप्रत्याशित रूप से हरीश रावत को जिता ले जाती हैं तो वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे किन्तु यदि कांग्रेस हार जाती है और भाजपा सत्ता में आ जाती है तो कांग्रेस के बागी भाजपा के लिये सिरदर्द बनेंगे ही। वहीं भाजपा में एक पूर्णकालिक मुख्यमंत्री ढूंढना भी कोई आसान काम नहीं होगा ऐसा प्रतीत हो रहा है। ऐसा भी हो सकता है कि सपा तथा अन्य छोटी पार्टियां पुनः एक बार सरकार का हिस्सा बनें। किन्तु वर्तमान में भाजपा ही सरकार बनाने की स्थिति में नजर आ रही है वो भी नयी समस्याओं और बाह्य व अन्दर की चुनौतियों के साथ।

- डॉ. हरिमोहन गोयल

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