बसपा-कांग्रेस के मुस्लिम प्रत्याशियों से सपा गठबंधन को हो सकता है भारी नुकसान

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दूसरे चरण के नामांकन की प्रक्रिया पूरी होने के साथ ही पहले-दूसरे चरण की कुल 113 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों की तस्वीर भी साफ हो गई है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 113 में से सर्वाधिक 91 सीटों पर भाजपा ने परचम लहराया था।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जिस तरह से गैर भाजपा दलों ने बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव लगाया है, उससे भाजपा की बल्ले-बल्ले होते दिख रही है। भाजपा के रणनीतिकारों को लगता है कि जिस भी विधानसभा क्षेत्र में दो या तीन मुस्लिम प्रत्याशी होंगे, वहां भाजपा की राह आसान हो सकती है, भाजपा को जो नुकसान किसान आंदोलन के चलते जाट वोटरों की नाराजगी से हो रहा है, भाजपा को उसकी भरपाई मुस्लिम वोटों के बंटने से हो सकता है। राजनीति के जानकार भी मानते हैं कि भले ही कोई दल यह दावा करें कि मुस्लिम वोट बैंक एक मुश्त उसके साथ है, लेकिन जो दूसरे दलों के मुस्लिम प्रत्याशी हैं वह अपनी पहचान के बल पर अच्छी खासी संख्या में मुस्लिम वोट तो काटेंगे ही। बस यहीं से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की चुनावी तस्वीर बदल सकती है। पश्चिमी उतर प्रदेश में प्रथम चरण की 58 में से 11 विधानसभा सीटों पर दो और तीन विधानसभा क्षेत्रों में तीन-तीन मुस्लिम प्रत्याशी हैं। वहीं दूसरे चरण में आठ सीटों पर तीन-तीन और चार सीटों पर दो-दो मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में हैं।

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समाजवादी पार्टी इस पेंच को समझ रही है कि जिस तरह से बहुजन समाज पार्टी और ओवैसी ने मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव लगाया है उससे भाजपा को बड़ा फायदा मिल सकता है। दो चरणों की नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के साथ ही सभी सीटों पर जिस तरह की तस्वीर उभर कर सामने आ रही है, उससे सपा-रालोद गठबंधन की गणित को बसपा बिगाड़ती दिख रही है। सपा गठबंधन ने अपनी तुष्टिकरण की सियासत पर पर्दा डालने और चुनाव हिन्दू बनाम मुस्लिम वोटरों के बीच नहीं बंटे, इसके लिए मुस्लिम प्रत्याशी काफी कम संख्या में उतरे थे, लेकिन बसपा और कांग्रेस ने बेहिसाब मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतार कर चुनाव को दो वर्गो में बांट कर रख दिया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश व ब्रज क्षेत्र की कई सीटों पर एआईएमआईएम (आल इंडिया मजलिस ए इत्तिहापद उल मुस्लिमीन) के मुस्लिम प्रत्याशी भी भाजपा के लिए वरदान साबित हो रहे हैं। क्योंकि मुस्लिम उम्मीदवारों से बसपा, कांग्रेस या ओवैसी की पार्टी को लाभ कम, भाजपा का फायदा ज्यादा होता दिख रहा है। जहां सपा ने मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारे हैं, वहां कांग्रेस और बसपा के मुस्लिम प्रत्याशी मौजूद हैं, ऐसे में मुसलामनों का बड़ा धड़ा कांग्रेस/बसपा के मुस्लिम प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करके सपा को नुकसान पहुंचाते हुए दिख रहे हैं।

दूसरे चरण के नामांकन की प्रक्रिया पूरी होने के साथ ही पहले-दूसरे चरण की कुल 113 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों की तस्वीर भी साफ हो गई है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 113 में से सर्वाधिक 91 सीटों पर भाजपा ने परचम लहराया था। तब कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरी सपा को यहां से 17 सीटों पर जहां सफलता मिली थी। कांग्रेस की झोली में सिर्फ दो सीटें आईं थीं। बसपा भी दो और रालोद सिर्फ एक सीट पर सिमट कर रह गई थी। 

गौरतलब है कि सपा-रालोद गठबंधन ने जहां दोनों चरणों की 113 सीटों में से 32 पर ही मुस्लिम प्रत्याशी खड़े किए हैं, वहीं बसपा ने अंतिम समय तक प्रत्याशी बदलते हुए 39 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं। कांग्रेस ने भी 28 मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव लगाया है। प्रदेश भर में सिर्फ 100 प्रत्याशी उतारने की बात कहने वाली एआईएमआईएम के भी मुस्लिम उम्मीदवारों से किसी तरह के चमत्कार की उम्मीद नहीं दिखती।

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जानकारों का कहना है कि प्रथम दो चरणों के अंतर्गत आने वाली बुढ़ाना, लोनी, मुरादनगर, शिकारपुर, चरथावल, आगरा उत्तर, मीरापुर, छपरौली, नकुड़, गंगोह, बढ़ापुर, चांदपुर, नूरपुर, नौगावां सादात, असमोली, गुन्नौर, नवाबगंज, सहसवान, शेखूपुर और तिलहर जैसी सीटों पर गठबंधन के सामने मुस्लिम प्रत्याशी उतारने से मुस्लिम समाज के ज्यादा वोट बसपा को ही मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। दलितों में तकरीबन 55 प्रतिशत जाटव वोट का भी बड़ा हिस्सा मिलने से बसपा के इन सीटों पर फायदे में रहने का अनुमान लगाया जा रहा है। उन सीटों पर भी गठबंधन को कम फायदा होता दिख रहा है जहां पर सपा ने मुस्लिम प्रत्याशी तो उतारे हैं लेकिन उसके साथ ही बसपा, अपना दल (एस) व कांग्रेस आदि के भी मुस्लिम उम्मीदवार हैं। ऐसी सीटों पर मुस्लिम मतों के बिखराव की संभावना जताई जा रही है। बेहट, थानाभवन, सिवालखास, मेरठ दक्षिण, धौलाना, बुलंदशहर, कोल, अलीगढ़ शहर, नजीबाबाद, धामपुर, कांठ, ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद नगर व ग्रामीण, कुंदरकी, स्वार, चमरव्वा, रामपुर, अमरोहा, संभल व मीरगंज आदि ऐसी ही सीटें मानी जा रही हैं। माना जा रहा है कि इन सीटों पर मुस्लिम मतों के बिखराव का सीधा फायदा भाजपा को हो सकता है।

- संजय सक्सेना

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