राज्यपाल सत्यपाल मलिक के अंदर का किसान जाग गया है, अब मोदी सरकार क्या करेगी ?

Satyapal Malik

किसानों की मांगों का समर्थन करते हुए मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा कि किसान आंदोलन के दौरान देश में 250 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है लेकिन सरकार को उनकी जरा भी फिक्र नहीं है। किसानों के प्रति सरकार की बेरुखी ठीक नहीं है।

मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक इन दिनों अपने बयानों को लेकर देशभर में खासे चर्चित हो रहे हैं। अपनी बात को बेबाकी से बोलने वाले मलिक ने देश में चल रहे किसान आंदोलन को लेकर बड़ी बात कही है। उन्होंने केंद्र सरकार को सलाह दी है कि वह किसानों की बात सुन कर समय रहते उसका समाधान करवाएं। वरना किसानों की नाराजगी आने वाले समय में भाजपा को बहुत भारी पड़ सकती है। मलिक के इस बयान से भाजपा में असहजता की स्थिति उत्पन्न हो रही है व पार्टी लगातार बैकफुट पर आ रही है।

किसानों की मांगों का समर्थन करते हुए सत्यपाल मलिक ने कहा कि किसान आंदोलन के दौरान देश में 250 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है लेकिन सरकार को उनकी जरा भी फिक्र नहीं है। किसानों के प्रति सरकार की बेरुखी ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि देश में कहीं कोई जानवर भी मर जाता है तो नेता लोग संवेदना प्रकट करने लगते है। मगर 250 किसानों की मौत के बाद भी सरकार संवेदनहीन बनी हुई है जो बड़ी ही सोचनीय बात है। राज्यपाल के संवैधानिक पद पर रहते हुए भी मलिक के अंदर का किसान जाग उठा है। अपने पद की परवाह न करते हुए वह खुलकर किसानों के समर्थन में उतरें आए हैं। संवैधानिक पद पर रहते हुये उनका खुलकर किसानों के समर्थन में आना एक बड़ी बात है। इससे किसानों के आंदोलन को नयी ताकत मिलेगी। किसानों के पक्ष में देश की जनता में सकारात्मक संदेश जायेगा।

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अपनी बात को बेबाकी से रखने वाले सत्यपाल मलिक मूलतः किसान रहे हैं। मलिक ने राजनीति में एक लंबी पारी खेली है। 1974 में पहली बार उत्तर प्रदेश में विधायक बनने वाले मलिक 1980 से 1989 तक राज्यसभा व 1989 से 1991 तक अलीगढ़ से लोकसभा सदस्य रह चुके हैं। मलिक भारतीय क्रांतिदल, कांग्रेस, लोकदल, जनता दल, समाजवादी पार्टी के रास्ते भाजपा में आकर पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने थे। केन्द्र सरकार ने मलिक को पहली बार सितम्बर 2017 में बिहार का राज्यपाल बनाया था। उसके बाद मलिक को जम्मू-कश्मीर, गोवा और मेघालय का राज्यपाल बनाया गया। कुछ समय तक उनके पास ओडिशा के राज्यपाल का भी प्रभार रह चुका है।

किसानों के पक्ष में बयान देने के कारण सरकार द्वारा उन्हें पद से हटाने के सवाल पर मलिक का कहना है कि पद पर रखना या हटाना सरकार का काम है। मगर उन्होंने किसानों को लेकर जो भी बातें कही हैं वह सभी सरकार के हित की बातें हैं। मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा जिससे सरकार का कहीं अहित होता हो। यदि सरकार मेरी बात मानती है तो सरकार को ही आगे चलकर बहुत बड़ा लाभ होगा। किसान घर छोड़कर अपनी बातें बताने आए थे।

उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि सिखों ने तो 300 सालों तक मुगलों से लड़ाई लड़ी थी। गुरु महाराज के चारों बेटे मारे गए। लेकिन उन्होंने मुगलों से लड़ाई चालू रखी। कभी हार नहीं मानी थी। अब तो जाट और सिख के साथ पूरे देश की किसान कौम जुड़ रही है। इससे सरकार को समझना चाहिए। उन्होंने कहा कि वे कुछ कर तो नहीं सकते लेकिन सरकार को मशविरा दे सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इस आंदोलन से यह भी अच्छा हुआ कि किसानों में जागरूकता आई है। वे अपने मुद्दों को समझने और बोलने लगे हैं।

हाल ही में अपनी राजस्थान यात्रा के दौरान उन्होंने बताया था कि किसान आंदोलन के चलते आज उत्तर प्रदेश के गांव में ऐसी स्थिति हो गई है कि लोग भाजपा नेताओं को गांव में नहीं घुसने दे रहे हैं। यह बात भी पूरी तरह सत्य है। ऐसी स्थिति से बचना है तो सरकार बड़ा दिल रखते हुए किसानों के साथ सकारात्मक बातें करें। उनका आंदोलन समाप्त करवाने के प्रयास करने चाहिए। मलिक का कहना है कि मैं खुद एक जाट परिवार से हूं। हमारा परिवार भी पीढ़ियों से किसानी करता आ रहा है। मैंने किसानों के दुख तकलीफ को नजदीक से देखा और महसूस किया है। इसीलिए मुझे यह बातें बोलनी पड़ रही हैं।

सत्यपाल मलिक के बयान से भाजपा की स्थिति सांप छछूंदर वाली हो गई है। पार्टी का ना निगलते बन रहा है ना उगलते। देश के पांच राज्यों में चुनाव चल रहे हैं। जहां भारतीय जनता पार्टी सत्ता हासिल करने के लिये पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ रही है। ऐसे में उन्हें यदि पद से हटाया जाता है तो लोगों में गलत संदेश जाने का अंदेशा बना हुआ है। ऊपर से किसानों के पक्ष में बोलकर उन्होंने खुद को बड़ा किसान हितैषी बना लिया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट बहुल क्षेत्र के रहने वाले मलिक जाटों के बड़े नेता माने जाते हैं। हालांकि उनका कभी बड़ा जनाधार नहीं रहा है। वह एक बार विधानसभा का, एक बार लोकसभा का चुनाव ही जीत सके हैं। दलबदलू छवि के चलते 1996 के लोकसभा चुनाव में तो उनकी जमानत जब्त हो गई थी। मगर अपनी जोड़-तोड़ की राजनीति के बूते वह दो बार राज्यसभा में जाने में सफल रहे थे।

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राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर रहने के उपरांत भी खुलकर किसानों के पक्ष में बोलने के कारण उन्हें किसानों की सहानुभूति मिली है। ऐसे में भाजपा नेताओं द्वारा उनके बयानों को नजरअंदाज किया जाना ही पार्टी के लिए बेहतर है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी के किसी भी नेता ने मलिक के बयान पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। पार्टी आलाकमान ने चुप्पी साध ली है ताकि विवाद नहीं बढ़े। लेकिन अंदरखाने मलिक के बयान के बाद भाजपा में खलबली मची हुई है। अब भाजपा नेताओं को भी लग रहा है कि यदि शीघ्र ही किसानों की समस्याओं का समाधान करवा कर उनके आंदोलन को समाप्त नहीं करवाया गया तो आने वाले समय में उनको भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। किसान नेता राकेश टिकैत सहित आंदोलन से जुड़े अन्य लोग भी देश के विभिन्न प्रदेशों में जाकर लोगों को किसानों की समस्याओं से अवगत करवा रहे हैं। विशेषकर विधानसभा चुनाव वाले प्रदेशों में किसान नेताओं का जाना भाजपा के लिए अच्छा संकेत नहीं है।

-रमेश सर्राफ धमोरा

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक हैं। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)

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