गांधीजी भगत सिंह की फांसी पर चुप रहे थे, यह बात लोग भूले नहीं हैं

Gandhiji was silent on hanging of Bhagat Singh

भगतसिंह तथा उनके साथियों की फांसी का विरोध नहीं करने वाले उन्हीं गांधी के पोते गोपाल कृष्ण गांधी ने जब राष्ट्रद्रोही याकूब मेनन को न्यायालय के द्वारा दी गई फांसी की मांग का विरोध किया तो देश एक बार फिर से व्यथित हो उठा।

गोपाल कृष्ण गांधी जिस पृष्ठ भूमि से आते हैं, उसे देखते हए उन्हें भाजपा द्वारा उपराष्ट्रपति पद के लिए समर्थन दिया जाना कोई बड़ी बात नहीं थी। वे महात्मा गांधी के पौत्र हैं, उन्हें सार्वजनिक जीवन का 72 वर्ष लम्बा अनुभव है। वे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे तथा पूरे पांच साल तक पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे। जब भाजपा को मोहनदास करमचंद गांधी से परहेज नहीं रहा तो, गोपाल कृष्ण देवदास गांधी से कैसा परहेज! फिर भी भाजपा ने गोपालकृष्ण गांधी को समर्थन नहीं देकर भारतीय जनता पार्टी के सर्वाधिक सम्मानित, अनुभवी एवं परिपक्व नेता 68 वर्षीय वैंकया नायडू को सक्रिय राजनीति से विलग कर उपराष्ट्रपति का चुनाव लड़ाने का निर्णय लिया तो इसके पीछे की बातें बहुत सी गहरी बाते हैं। शिवसेना ने एनडीए द्वारा उपराष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के चयन के लिए की जा रही बैठक से ठीक पहले, चौराहे पर आकर गोपाल कृष्ण गांधी की हाण्डी फोड़ी तो भाजपा के लिए, गोपाल कृष्ण के नाम का समर्थन करना आसान नहीं रह गया था किंतु गोपाल गांधी की नैया डुबोने के लिए शिवसेना अकेली पर्याप्त नहीं थी।

राजनीति में कहा कुछ जाता है और किया कुछ जाता है। जब उसके परिणाम आते हैं तो उनका मतलब कुछ और निकाला जाता है। यदि सोनिया गांधी, ममता बनर्जी और मायावती चाहतीं तो भाजपा के राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी को समर्थन देकर उपराष्ट्रपति पद के लिए ऐसा व्यक्ति चुन सकती थीं जो भाजपा और विपक्ष दोनों के लिए समान रूप से स्वीकार्य हो किंतु तीनों राजनेत्रियों के अहंकार ने न केवल गोपाल कृष्ण गांधी की नैया डुबो दी अपितु विपक्ष द्वारा समर्थित प्रत्याशी को उपराष्ट्रपति बनाए जाने का अवसर भी हाथ से निकाल दिया। इतना ही नहीं इस अहंकार ने 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस तथा उसकी समर्थक अन्य पार्टियों के लिए पराजय का मार्ग और अधिक चौड़ा कर दिया है। बहुत सी विपक्षी पार्टियों के विधायकों ने खुलेआम अपनी पार्टी से विद्रोह करके भाजपा के राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी को वोट दिया है। उपराष्ट्रपति के लिए होने वाले मतदान में लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य इस विद्रोह को दोहरा सकते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राजनीति के चतुरतम खिलाड़ियों में से एक मुलायम सिंह से भी कुछ नहीं सीख सकीं जिन्होंने राहुल का समर्थन लेने पर अपने ही बेटे के घुटने टिकवा दिए तथा राष्ट्रपति पद के भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में खुले आम वोट डलवाये। 

लगे हाथों कुछ बात गोपाल कृष्ण गांधी तथा उनके बाबा मोहनदास गांधी की भी हो जाए। भगतसिंह, सुखदेव तथा राजगुरु के प्रकरण में कांग्रेस के डिक्टेटर मोहनदास गांधी ने वर्ष 1931 में देश की आशाओं के विपरीत कार्य किया। देश चाहता था कि गांधीजी, लॉर्ड इरविन से होने वाली संधि में युवा क्रांतिकारियों की फांसी की सजा को माफ करवाएं किंतु गांधीजी तो जैसे स्वयं ही जिद पर अड़े थे कि भगतसिंह तथा उनके साथियों को फांसी अवश्य दी जाए। पाठकों को स्मरण दिला देना उचित होगा कि दिसम्बर 1921 में अहमदाबाद के कांग्रेस अधिवेशन में गांधी को कांग्रेस का डिक्टेटर नियुक्त किया गया था। उनकी यह डिक्टेटरशिप यहां तक चली कि 1932 के द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में गांधीजी कांग्रेस के एक मात्र प्रतिनिधि बनकर गए, गांधीजी ने साफ कह दिया कि वे कांग्रेस के अकेले प्रतिनिधि होंगे, किसी दूसरे नेता को नहीं ले जाएंगे। तत्कालीन वायसरय लॉड इरविन ने लिखा है कि मुझे पूरी उम्मीद थी कि गांधीजी, भगतसिंह तथा उसके साथियों की फांसी की सजा माफ करने की मांग करेंगे किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। जब भगतसिंह और उनके साथियों को फांसी हो गई तब पूरा देश गांधीजी के खिलाफ गुस्से से उबल पड़ा जिसका सामना कांग्रेस को लाहौर अधिवेशन में करना पड़ा।

भगतसिंह तथा उनके साथियों की फांसी का विरोध नहीं करने वाले उन्हीं गांधी के पोते गोपाल कृष्ण गांधी ने जब राष्ट्रद्रोही याकूब मेनन को न्यायालय के द्वारा दी गई फांसी की मांग का विरोध किया तो देश एक बार फिर से व्यथित हो उठा। राजनेता मानते हैं कि जनता की स्मरणशक्ति कमजोर होती है किंतु शिवसेना ने नेताओं का यह भ्रम दूर करने में जरा भी विलम्ब नहीं किया। जहाँ तक वैंकया नायडू का प्रश्न है, वे उसी आरएसएस की पृष्ठभूमि से आते हैं, जिस पर कांग्रेस के बहुत से नेता मोहनदास गांधी की हत्या में संलिप्तता का आरोप लगाते रहे हैं। इतिहास के इस मोड़ पर एक बार फिर आरएसएस के निष्ठावान स्वयं सेवक तथा कांग्रेस के गांधी आमने-सामने हो गए हैं।

- डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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