हिमाचल प्रदेश में सरकार बदल गई पर समस्याएं जस की तस

Government changed in Himachal Pradesh but problems still alive
विजय शर्मा । Apr 20 2018 4:26PM

50,000 करोड़ के कर्ज तले दबे हिमाचल प्रदेश में मुख्य सचेतक एवं उप मुख्य सचेतक जैसे अनावश्यक पदों को सृजित कर विधायकों को कैबिनेट रैंक देने की कवायद शुरू हो चुकी है।

हिमाचल प्रदेश की जयराम सरकार के 100 दिन पूरे हो गए हैं लेकिन सरकार के बहुत सारे वायदे ऐसे हैं जिन पर अभी काम ही शुरू नहीं हुआ है। किसी भी सरकार के कामकाज के आकलन के लिए 100 दिन का समय बहुत कम होता है लेकिन आजकल जनता−जनार्दन सरकार के हर काम की परख बड़ी तल्लीनता से करती है। सरकार ने आते ही सामाजिक सुरक्षा के लिहाज से वृद्धावस्था पेंशन की आयु सीमा 80 वर्ष से घटाकर 70 वर्ष करने के वादे को पूरा कर दिया है। लेकिन तबादलों को लेकर सरकार को आलोचना झेलनी पड़ रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार केवल 2100 कर्मचारियों के तबादले किये गये हैं लेकिन विपक्ष 10 हजार से ज्यादा कर्मचारियों को तबादलों का दावा कर रहा है और आरोप लगा रहा है कि राजनीतिक द्वेष से तबादले किये जा रहे हैं और अपने चहेते अधिकारियों को उच्च पदों पर आसीन किया जा रहा है।

नई नियुक्तियों में आरएसएस और आरएसएस के ही सहयोगी संगठन एबीवीपी के सदस्यों का दबदबा दिखाई दे रहा है और मुख्यमंत्री कार्यालय पर तो आरएसएस की पूरी छाप दिखाई दे रही है और कहा जा रहा है कि सरकार का संचालन पूरी तरह आरएसएस के हाथ में है और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर आरएसएस के एजेंडे पर काम कर रहे हैं। भाजपा की मौजूदा सरकार आलाकमान और आरएसएस के दोहरे दबाव में दिखाई दे रही है ऊपर से तीन वरिष्ठ नेताओं सर्वश्री शांता कुमार, प्रेम कुमार धूमल और जेपी नड्डा के करीबियों को भी सरकार में नए पद सृजित करके समाहित करने की योजना पर काम चल रहा है। सरकार बनते ही मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अपने चहेतों को पद बांटने के लिए हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग के सदस्यों की संख्या बिना कैबिनेट मंजूरी के तीन से पांच कर दी और नए सदस्यों को शपथ दिला दी है।

जिन मुद्दों पर भाजपा कांग्रेस पर हमलावर रहती थी अब उन्हीं मामलों पर उसकी किरकिरी हो रही है। सरकार गठन से पहले ही जयराम ठाकुर सहित भाजपा के नेता कांग्रेस सरकार द्वारा कई विभागों में ठेके पर नियुक्त रिटायर्ड कर्मचारियों और अधिकारियों को हटाने पर आमादा थे और सरकार बनते ही आनन−फानन में सबको चलता कर दिया गया था लेकिन अब पता चला है कि फिर से गुपचुप तरीके से रिटायर्ड कर्मचारियों की नियुक्तियां हो रही हैं। शराब पर पिछली सरकार की आबकारी नीति की भाजपा खूब आलोचना करती थी लेकिन अपवाद को छोड़ दें तो प्रतिस्पर्धा के चलते हिमाचल में शराब अपेक्षाकृत सस्ती थी लेकिन भाजपा की सरकार बनने पर चहेते शराब ठेकेदारों को खुश करने के लिए देशी व अंग्रेजी शराब की कीमतों में 25 प्रतिशत वृद्धि कर दी गई है और उस पर सैस लगा दिया है, जिससे शराब व्यापारियों को लूट की पूरी छूट दे दी गई है। एक दिलचस्प खबर आई है कि इस बार महिलाएं भी शराब ठेकों का संचालन करेंगी। दरअसल इसके पीछे पार्टी के ही नेता हैं जिन्होंने अपने परिजनों के नाम से ठेकों के लिए आवेदन किया और लेकिन हकीकत में संचालन वही करेंगे।

प्रदेश की वित्तीय स्थिति अत्यंत दयनीय होने के बावजूद सरकार की फिजूलखर्ची में कोई कमी नहीं आई है। 50,000 करोड़ के कर्ज तले दबे प्रदेश में मुख्य सचेतक एवं उप मुख्य सचेतक जैसे अनावश्यक पदों को सृजित कर विधायकों को कैबिनेट रैंक देने की कवायद शुरू हो चुकी है। कई नए पद सृजित करने की कवायद चल रही है और अभी बोर्डों और निकायों तथा पीएसयू में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष नियुक्त किये जाने हैं जिसका सारा भार आम जनता के सिर लाद दिया जायेगा। 

सरकार बनने के बाद अब तक जयराम सरकार 1000 करोड़ का कर्ज से चुकी है। मुख्यमंत्री ने अब यह सार्वजनिक बयान दिया है कि प्रशासन चलाने के लिए सरकार ऐसे ही कर्ज लेती रहेगी। आज हर हिमाचली पर जन्म लेते ही करीब 65 हजार का कर्ज चढ़ जाता है। सरकार बनने से पहले भाजपा ने सरकारी खर्चों में कटौती के लिए वित्त आयोग बनाने का वायदा किया था लेकिन उस पर सरकार मौन है। इससे पहले 2005 में भाजपा की धूमल सरकार ने राजस्व घाटा उत्तरदायित्व एवं प्रबंधन अधिनियम पारित किया था जिसके अन्तर्गत 2011−12 तक वित्तीय घाटे को शून्य पर लाया जाना तथा उसके बाद अतिरिक्त (सरप्लस) किया जाना निर्धारित किया गया था और धूमल सरकार ने सरकारी खर्चों पर नियंत्रण का भरपूर प्रयास किया था लेकिन कांग्रेस की सरकार बनने पर सरकारी खजाने को अपने चहेते को फिट करने तथा कर्मचारियों की नाराजगी दूर करने के लिए खोल दिया था जो नई भाजपा की सरकार बनने पर भी बदस्तूर जारी है।

केन्द्र सरकार और राज्य के पैट्रोल−डीजल पर अत्यधिक टैक्स के कारण महंगाई चरम पर है लेकिन आम जनता की राहत के लिए राज्य सरकार कोई कदम नहीं उठा पा रही है लेकिन हितों को पद बांटने में सरकार को कोई हिचक नहीं है। सरकार राजस्व घाटे का रोना लगातार जारी रखे है और राजस्व जुटाने के सवाल पर वही रटा−रटाया जवाब है कि आबकारी, खनन, हाइड्रो और पर्यटन नीति को आकर्षक बनाया जायेगा तथा निवेशकों को आकर्षित करने के लिए धारा 118 का सरलीकरण किया जायेगा। धारा 118 का व्यापक सरलीकरण किया जा चुका है और इसमें पूर्व की सरकार एकल खिड़की व्यवस्था लागू कर चुकी है लेकिन सुधार की गुंजाइश हो सकती है लेकिन यदि इसे अनावश्यक रूप से समाप्त या सरल कर दिया गया तो इसका दुरूपयोग हिमाचल की मूल संस्कृति व सभ्यता के लिए खतरा बन जायेगी। कर्मचारी वर्ग को खुश करने के लिए कर्ज लेकर भत्ते बांटे जा रहे हैं तथा अनुबंध कर्मचारियों का वेतन बढ़ा दिया गया है लेकिन प्रदेश के करीब 10 लाख युवाओं के लिए रोजगार की व्यवस्था के लिए सरकार के पास कोई सार्थक योजना नहीं है। सरकार बने हुए 100 दिन हो गये हैं और सरकार की ब्रांडिंग के लिए बड़ी पैमाने पर सभी अखबारों में पूरे−पूरे पेज के विज्ञापन प्रकाशित किये गये और ऐसा पहली बार हुआ है कि सरकार अपनी 100 दिन की उपलब्धियों के लिए पीठ थपथपा रही है। पहले सरकार 100 दिन पूरे होने पर मीडिया ब्रीफिंग के जरिए अपने कामों का ब्यौरा जनता के सामने रखती थी लेकिन इस बार सरकार बदली है, सरकार का नेता बदला है तो निजाम भी बदलेगा लेकिन अमूल−चूल बदलाव को छोड़ दें तो जमीन पर कुछ ठोस दिखाई नहीं दे रहा है। सरकार को अनावश्यक खर्च घटाकर सरकारी खजाने पर अतिरिक्त बोझ डालने से परहेज करना चाहिए लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार इस दिशा में गंभीर नहीं है।

सरकार बनने के बाद जयराम ठाकुर ने पिछली सरकार द्वारा शुरू किये गये कई संस्थानों के बंद करने का फैसला किया है तथा आबकारी नीति में बदलाव करके हर प्रकार की शराब पर करीब 25 प्रतिशत की भारी बढ़ोतरी की है और उस पर गौवंश संरक्षण के नाम पर अतिरिक्त सैस लगा दिया गया है। सैस का किसी ने विरोध नहीं किया है लेकिन शराब पर 25 प्रतिशत की भारी वृद्धि किसी को हजम नहीं हो रही है।  अपने नेताओं पर राजनीतिक या अन्य कारणों से चलाए जा रहे आपराधिक मामलों को वापिस लेने का फैसला किया गया है और ऐसा हर सरकार करती आई है और अब यह परम्परा सी बन गई है। रूसा पर सरकार पलट गई है। पहले भाजपा ने वादा किया था कि वह रूसा हटा देगी लेकिन अब कहा जा रहा है कि सुधार किया जायेगा। किसानों की जमीन पर मुआवजे को दोगुने से चौगुना करने का एलान किया गया था जिस पर अभी काम शुरू नहीं हुआ है।

प्रदेश में पहले केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय खोलने पर सरकार की चाल सुस्त है। स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ावा देने के लिए हिमाचल में हर जिले में नर्सिंग स्कूल खोलने पर सरकार चुप है। चंबा में आयुष विश्वविद्यालय खोला जाना प्रस्तावित है लेकिन उस पर अभी कोई काम शुरू नहीं हुआ है। एयर एंबुलेंस और हर जिले में ट्रॉमा सेंटर खोलने का वादा अभी दूर की कौड़ी है। ड्रग कंट्रोल ब्यूरो खोलने की कवायद भी अभी फाइलों में ही सिमटी है। शिक्षण संस्थानों को वाई−फाई सुविधा से जोड़ने के वायदे पर अभी सरकार मौन है। असल में वायदे तो हजार हैं लेकिन हाथ बंधे हैं। सरकार के पास बजट की भारी कमी है और बजट के बिना कोई भी योजना कारगर ढंग से सिरे नहीं चढ़ सकती। जब सरकार के पास कर्मचारियों को वेतन−भत्तों के लिए समुचित धन की व्यवस्था नहीं है तो फिर योजनाओं को अमलीजामा कैसे पहनाया जा सकता है।

हिमाचल में भाजपा की सरकार गठन के बाद उम्मीद बंधी थी कि प्रदेश को कर्जमुक्त करने के लिए केन्द्र सरकार सहायता करेगी लेकिन ऐसा लगता है कि जयराम ठाकुर के दिल्ली दौरे केवल नेताओं को एडजस्ट करने में बीत गये और केन्द्रीय बजट में ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई जिससे यह आभास मिलता है कि केन्द्र सरकार लीक से हटकर कोई मदद करेगी। पांच साल तक सरकार चलाने के लिए कम से कम करीब ढाई लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी और सरकार के पास इतने धन की व्यवस्था कैसे होगी। जाहिर है कि सरकार कर्ज लेगी। बजट के अनुसार आगामी वर्ष में सरकार को करीब 30 हजार करोड़ राजस्व प्राप्त होने का अनुमान है जबकि उसका खर्च 35 हजार करोड़ है जिसका 42 प्रतिशत केवल कर्मचारियों को वेतन−भत्तों और पेंशन पर खर्च होता है। इसके अलावा करीब 18−20 प्रतिशत से अधिक पिछला कर्ज तथा ब्याज चुकाने में खर्च हो रहा है। इस प्रकार नई योजनाओं के लिए पैसा ही नहीं बचता तो विकास योजनाएं सिरे कैसे चढ़ेंगी जबकि नेताओं और मंत्रियों की महत्वाकांक्षाएं बढ़ती ही जा रही हैं। यह भी कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री नौकरशाही पर अपनी छाप नहीं छोड़ पा रहे हैं और नौकरशाही के कारण ही उनकी कई योजनाएं धरातल पर नहीं उतर पा रही हैं। हालांकि कहा जा रहा है कि वह शांता कुमार और जेपी नड्डा के करीब हैं और उनसे सलाह−मशविरा करके ही आगे बढ़ रहे हैं।

-विजय शर्मा

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