Indus Water Treaty से जुड़े मामले में Hague Court ने दिया Pakistan के पक्ष में फैसला, भारत बोला- हमें यह कतई मंजूर नहीं

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सिंधु जल संधि मामले में भारत का कहना रहा है कि वह स्थायी मध्यस्थता अदालत में पाकिस्तान द्वारा शुरू की गई कार्यवाही में शामिल नहीं होगा, क्योंकि सिंधु जल संधि की रूपरेखा के तहत विवाद का पहले से ही एक निष्पक्ष विशेषज्ञ परीक्षण कर रहे हैं।

सिंधु जल संधि से जुड़े विवादों को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच मचे घमासान के बीच हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत ने पाकिस्तान के पक्ष में फैसला सुनाया है जिसके बाद भारत ने कहा है कि कश्मीर में किशनगंगा और रतले पनबिजली परियोजनाओं को लेकर स्थायी मध्यस्थता अदालत में ‘अवैध’ कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए उसे मजबूर नहीं किया जा सकता है। दरअसल, अदालत ने फैसला दिया है कि उसके पास पनबिजली के मामले पर नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच विवाद पर विचार करने का ‘अधिकार’ है। स्थायी मध्यस्थता अदालत ने एक बयान में कहा है कि विश्व बैंक के साथ पत्राचार के जरिए भारत द्वारा अदालत के अधिकार क्षेत्र पर की गई आपत्तियों पर उसने विचार किया है। हेग स्थित अदालत ने एक बयान में कहा कि अदालत ने भारत की हर आपत्ति को खारिज किया है और तय किया है कि अदालत के पास पाकिस्तान की मध्यस्थता के आग्रह में उल्लेखित विवाद पर विचार करने और उसे तय करने का अधिकार है। बयान में यह भी कहा गया है कि यह फैसला सर्वसम्मति से किया गया है जो पक्षों के लिए बाध्यकारी है तथा इसके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती है।

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भारत की प्रतिक्रिया

उधर, भारत का कहना रहा है कि वह स्थायी मध्यस्थता अदालत में पाकिस्तान द्वारा शुरू की गई कार्यवाही में शामिल नहीं होगा, क्योंकि सिंधु जल संधि की रूपरेखा के तहत विवाद का पहले से ही एक निष्पक्ष विशेषज्ञ परीक्षण कर रहे हैं। निष्पक्ष विशेषज्ञ की आखिरी बैठक 27 और 28 फरवरी को हेग में हुई थी तथा अगली बैठक सितंबर में होनी है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा है कि भारत को अवैध और समान्तर कार्यवाहियों को मानने या उनमें हिस्सा लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है जो संधि में उल्लेखित नहीं हैं। बागची ने कहा कि भारत की लगातार और सैद्धांतिक स्थिति यह रही है कि तथाकथित मध्यस्थता अदालत का गठन सिंधु जल संधि के प्रावधानों का उल्लंघन है, क्योंकि यह संधि एक जैसे मुद्दे के लिए समान्तर कार्यवाही की इजाजत नहीं देती है। बागची ने कहा कि भारत सरकार संधि के अनुच्छेद 12 (3) के तहत सिंधु जल संधि में संशोधन के संबंध में पाकिस्तान की हुकूमत से बातचीत कर रही है। उन्होंने अपनी साप्ताहिक मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि एक निष्पक्ष विशेषज्ञ किशनगंगा और रतले परियोजनाओं से संबंधित विवाद को देख रहे हैं तथा भारत ‘संधि-संगत’ निष्पक्ष विशेषज्ञ की कार्यवाही में हिस्सा ले रहा है।

पाकिस्तान की प्रतिक्रिया

उधर, अदालत के फैसले से उत्साहित पाकिस्तान ने उम्मीद जताई है कि भारत सिंधु जल संधि को 'सद्भावना' से लागू करेगा। इस्लामाबाद में, विदेश कार्यालय ने कहा कि स्थायी मध्यस्थता अदालत ने "अपने अधिकार क्षेत्र को बरकरार रखा है और कहा है कि वह अब विवाद में मुद्दों को हल करने के लिए आगे बढ़ेगा।" विदेश कार्यालय ने कहा है कि सिंधु जल संधि पानी बंटवारे पर पाकिस्तान और भारत के बीच एक मूलभूत समझौता है और इस्लामाबाद उसके विवाद निपटान तंत्र सहित संधि के कार्यान्वयन के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। पाकिस्तान के बयान में कहा गया है, ''हमें उम्मीद है कि भारत भी इस संधि को सद्भावना से लागू करेगा।”

भारत ने क्या आपत्ति जताई थी?

हम आपको याद दिला दें कि भारत ने संधि के विवाद निवारण तंत्र का पालन करने से पाकिस्तान के इंकार के मद्देनजर इस्लामाबाद को जनवरी में नोटिस जारी कर सिंधु जल संधि की समीक्षा और उसमें संशोधन की मांग की थी। यह संधि 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में सीमा-पार नदियों के संबंध में दोनों देशों के बीच हुई थी। सिंधु जल संधि पर विश्व बैंक ने भी हस्ताक्षर किए हैं। हम आपको यह भी बता दें कि भारत और पाकिस्तान ने नौ वर्षों की वार्ता के बाद 1960 में संधि पर हस्ताक्षर किये थे। इस संधि के मुताबिक पूर्वी नदियों का पानी, कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो भारत बिना रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता है। भारत से जुड़े प्रावधानों के तहत रावी, सतलुज और ब्यास नदियों के पानी का इस्तेमाल परिवहन, बिजली और कृषि के लिए करने का अधिकार भारत को दिया गया। भारत ने पाकिस्तान को जो नोटिस भेजा था वह किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं से जुड़े मुद्दे पर मतभेद के समाधान को लेकर पड़ोसी देश के अपने रुख पर अड़े रहने के मद्देनजर भेजा गया था। यह नोटिस सिंधु जल संधि के अनुच्छेद 12 (3) के प्रावधानों के तहत भेजा गया था।

विवाद क्यों हुआ?

हम आपको यह भी बता दें कि वर्ष 2015 में पाकिस्तान ने भारतीय किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं पर तकनीकी आपत्तियों की जांच के लिये तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति करने का आग्रह किया था। वर्ष 2016 में पाकिस्तान इस आग्रह से एकतरफा ढंग से पीछे हट गया और इन आपत्तियों को मध्यस्थता अदालत में ले जाने का प्रस्ताव किया। भारत ने इस मामले को लेकर तटस्थ विशेषज्ञ को भेजने का अलग से आग्रह किया था। भारत का मानना है कि एक ही प्रश्न पर दो प्रक्रियाएं साथ शुरू करने और इसके असंगत या विरोधाभासी परिणाम आने की संभावना एक अभूतपूर्व और कानूनी रूप से अस्थिर स्थिति पैदा करेगी, जिससे सिंधु जल संधि खतरे में पड़ सकती है। यही नहीं, विश्व बैंक ने भी 2016 में भारत की बात से सहमति जताते हुए दो समानांतर प्रक्रियाएं शुरू करने को रोकने का निर्णय किया था, साथ ही भारत और पाकिस्तान से परस्पर सुसंगत रास्ता तलाशने का आग्रह किया था।

-नीरज कुमार दुबे

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