मानवीय हिंसा से कैसे मुक्त हो पायेगी नारी?

पुलिस पर सभी नागरिकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है, लेकिन महिलाओं पर हिंसा के अधिकतर मामलों में उसका रवैया बेहद लचर-लापरवाह रहता है। वह ऐसे मामलों को अक्सर दर्ज नहीं करती। अगर दर्ज करती भी है तो जांच में कोताही बरती जाती है।

29 जुलाई की रात कार से नोएडा से शाहजहांपुर जा रहे एक परिवार को उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर कोतवाली देहात इलाके के पास दोस्तपुर गांव में 10-12 बदमाशों ने हथियारों के बल पर कार रोक कर कार में सवार परिवार से डकैती और गैंगरेप की वारदात को अंजाम देकर फरार हो गए। ये बदमाश हाईवे से करीब 50 मीटर दूर खेतों में कार समेत पूरे परिवार को ले गए और उन्हें बंधक बनाकर उनके पास मौजूद नकदी, लाखों रुपए का सामान और महिलाओं के जेवर लूट लिए। कार में सवार मां-बेटी से गैंगरेप किया। कार में तीन महिलाएं और तीन पुरुष मौजूद थे।

कुछ माह पहले पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के एक गाँव में एक 14 वर्षीय आदिवासी लड़की को अन्य जाति के लड़के के साथ बातचीत करते हुए देखा गया तो गाँव के कुछ लोगों ने उसकी निर्मम पिटाई की और उसे नंगा कर तीन गाँवों में घुमाया। इस दौरान पुलिस मूक दर्शक बनी रही। इस कांड के बारे में मीडिया में लगातार कवरेज से दबाव बनने पर पुलिस ने अब तक 12 में से सिर्फ 6 आरोपी गिरफ्तार किए हैं। हद तो तब हो गई, जब पीड़िता के परिवार वालों ने ग्रामीणों के हमले के डर से उस मासूम को अपने घर में वापस रखने से इंकार कर दिया। घर वालों का दिल तभी पसीजा, जब प्रशासन ने अपनी नाक बचाने के लिए उन्हें सुरक्षा दिलाने का आश्वासन दिया।

रोंगटे खड़ी करने वाली यह घटना महिलाओं पर हिंसा के तौर तरीकों, कारणों और गुनहगारों के बारे में एक मोटा खाका खींचने के लिए पर्याप्त है। इस मामले में क्या देश का कानून, पुलिस, परिवार, समाज और व्यवस्था गुनहगार नहीं हैं, जो उस लड़की को अकारण सरेआम पीटने, उत्पीड़ित-अपमानित होने और निर्वस्त्र घुमाने के संगीन जुर्म के बावजूद न्याय दिलाने में नाकाम रहे हैं? प्रशासन भले ही अब हरकत में आया और महिला आयोग एवं मानवाधिकार आयोग ने घटना का संज्ञान लिया है? फिर भी सवाल उठता है कि क्या गुनहगार दंडित किए जाएंगे? अगर पिछले आंकड़े देखें तो हमें यह निष्कर्ष निकालने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा कि न्याय तो दूर, पीड़िता के आंसू पोंछने वाले भी नहीं मिलेंगे क्योंकि मीडिया सहित समाज के विभिन्न जागरूक वर्ग समय गुजरने के साथ उसे भुला चुके होंगे।

भारत में कहा जाता है कि यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:। अर्थात जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। भारत में नारी को देवी के रूप में देखा गया है। भारत में स्त्रियों की दशा सदैव एक जैसी नहीं रही अपितु समय एवं काल के साथ उसमें परिवर्तन आते गए। किसी युग में नारी को सम्मान दिया गया तो कहीं उसका अपमान, उत्पीड़न, अत्याचार किया गया। भारत में आज भी सामाजिक ताना-बाना ऐसा है जिसमें अधिकांश महिलाएं पिता या पति पर ही आर्थिक रूप से निर्भर रहती हैं, तथा निर्णय लेने के लिए भी परिवार में पुरुषों पर निर्भर रहती हैं। हालांकि देश के संविधान में महिलाओं को सदियों पुरानी दासता एवं गुलामी की जंजीरों से मुक्ति दिलाने के प्रावधान किए गए हैं। भारतीय समाज में सदियों से स्त्रियों को सत्ता, सम्पत्ति और प्रतिष्ठा से वंचित रखा गया। डॉ. अम्बेडकर के शब्दों में कहें तो भारतीय समाज में नारी की स्थिति दलित वर्ग से बेहतर नहीं रही। भारतीय संविधान में नारी समाज को सामाजिक न्याय के दायरे में रखा गया। फिर भी भारतीय महिलाओं को संविधान के अनुरूप न्याय नहीं मिल पा रहा है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो 2014 के आंकड़े के अनुसार पति और सम्बंधियों द्वारा महिलाओं के प्रति की जाने वाली क्रूरता में 7.5 प्रतिशत वृद्धि हुई है। घरेलू हिंसा अधिनियम देश का पहला ऐसा कानून है, जो महिलाओं को उनके घर में सम्मानपूर्वक रहने का अधिकार सुनिश्चित करता है। इस कानून में महिलाओं को सिर्फ शारीरिक हिंसा से नहीं, बल्कि मानसिक, आर्थिक एवं यौन हिंसा से बचाव का अधिकार भी शामिल है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दोगुने से भी अधिक हुए हैं। पिछले दशक के आंकड़ों पर आधारित विश्लेषण के मुताबिक पिछले दशक में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कम से कम 22 लाख 40 हजार मामले दर्ज किये गये हैं। इस हिसाब से भारत में हर घंटे महिलाओं के खिलाफ अपराध के 26 मामले या हर दो मिनट में एक शिकायत दर्ज होती है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए के तहत पति और रिश्तेदारों द्वारा किसी भी महिला को शारीरिक या मानसिक रूप से चोट पहुंचाना देश में सबसे अधिक होने वाला अपराध है। आंकड़ों के अनुसार पिछले दस सालों में आईपीसी धारा 498 ए के तहत 909713 मामले या यूं कहें कि हर घंटे 10 मामले दर्ज किये गये हैं। धारा 354 के तहत किसी भी महिला की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल प्रयोग करना जैसी वारदातें देश में होने वाला दूसरा सबसे अधिक अपराध है। पिछले एक दशक में इस तरह के करीब 470556 मामले दर्ज किये गये हैं। महिलाओं को अगवा एवं अपहरण (315074) करने जैसी वारदातें देश में होने वाला तीसरा सबसे अधिक अपराध है। बलात्कार 243051, महिलाओं के अपमान 104151 और दहेज हत्या 80833 तथा अन्य देश में सर्वाधिक होने वाले अपराध हैं। पिछले एक दशक में दहेज प्रतिशोध अधिनियम, 1961 के तहत कम से कम 66,000 मामले दर्ज किये गये हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार इनके अपराधों के अलावा वर्ष 2014 में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में कुछ नई श्रेणियां भी जोड़ी गई हैं। इनमें बलात्कार के प्रयास 4234, आईपीसी की धारा 306 के तहत महिलाओं को आत्महत्या के लिए उकसाना (3734) एवं घरेलू हिंसा से बचाव (426) शामिल हैं।

पिछले 10 सालों में आंध्र प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सर्वाधिक मामले (263839) दर्ज किये गये हैं। देश भर में महिलाओं की लज्जा भंग करने के सबसे अधिक मामले (35733) आंध्र प्रदेश में दर्ज किये गये हैं जबकि पति या उनके रिश्तेदार द्वारा अत्याचार के मामले (117458) में राज्य दूसरे, लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल प्रयोग करने जैसी वारदात मामले (51376) में तीसरे एवं दहेज हत्या मामले (5364) में चौथे स्थान पर है। आंध्र प्रदेश के बाद महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले सबसे अधिक पश्चिम बंगाल में दर्ज (239760) किये गये हैं। पश्चिम बंगाल में सर्वाधिक मामले पति या रिश्तेदारों द्वारा महिलाओं पर किये गये अत्याचार के मामले (152852) दर्ज किये गये हैं। महिलाओं के खिलाफ अपराध मामले में अपहरण (27371) एवं दहेज हत्या मामले (4891) में पांचवें स्थान पर हैं। महिलाओं के खिलाफ अपराध के 236456 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश तीसरे, 188928 मामलों के साथ राजस्थान चौथे एवं 175593 की आंकड़ों के साथ मध्य प्रदेश पांचवें स्थान पर है। पिछले एक दशक में देश भर में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में करीब आधे अपराध इन पांच राज्यों में हुए हैं। पिछले एक दशक में मध्य प्रदेश में सर्वाधिक बलात्कार के मामले (34143) दर्ज किये गये हैं। 19993 मामलों के साथ पश्चिम बंगाल दूसरे, 19894 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश तीसरे एवं 18654 आंकड़ों के साथ राजस्थान चौथे स्थान पर है।

महिलाओं पर हिंसा रोकने के लिए तमाम तरह के कानून मौजूद हैं- घरेलू हिंसा की रोकथाम, दहेज निषेध सम्बंधी नए कानून बनाए गए, कार्यस्थलों पर उत्पीड़न रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिशा-निर्देश जारी किए आदि। फिर भी, उन पर हिंसा का सिलसिला नहीं थमा है। जहां एक ओर कानूनों में कई तरह की खामियां हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हें सही तरीके और सख्ती से लागू नहीं किया जाता। नतीजतन, अपराधी न केवल साफ बच निकलते हैं, बल्कि उनके हौसले भी बढ़ जाते हैं।

पुलिस पर सभी नागरिकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है, लेकिन महिलाओं पर हिंसा के अधिकतर मामलों में उसका रवैया बेहद लचर-लापरवाह रहता है। वह ऐसे मामलों को अक्सर दर्ज नहीं करती। अगर दर्ज करती भी है तो जांच में कोताही बरती जाती है। भ्रष्ट पुलिसकर्मी-अधिकारी उस पर परदा डालने में कोई कसर नहीं छोड़ते। देखा गया है कि ऐसे मामलों की रिपोर्ट करने में महिलाएं और उनके परिजन हिचकिचाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक पुलिस इनमें से सिर्फ 5 मामले दर्ज करती है।

महिलाओं पर हिंसा के मामलों में दोषसिद्धि कम होना दूसरा चिंताजनक पहलू है, जिसके लिए पुलिस और प्रशासन की अकर्मण्यता ही जिम्मेदार मानी जा सकती है। एक विश्वसनीय अध्ययन के अनुसार आईपीसी के विभिन्न 32 प्रतिशत केसों के निपटारे में अदालतों को एक से तीन साल तक का समय लग जाता है, जबकि 22.4 प्रतिशत केसों में पांच साल। ऐसे में हिंसा की शिकार महिलाओं को कितना और कैसा इंसाफ मिलेगा, इसकी कल्पना भर की जा सकती है। महिलाओं पर अपराध की जांच संवेदनशील तरीके से की जानी चाहिए, जो पुलिस महकमे में पर्याप्त संख्या में महिला पुलिसकर्मियों की तैनाती से ही संभव है।

महिलाओं के बिना हम किसी समाज की कल्पना तक नहीं कर सकते हैं। वही समाज का एक मूलभूत अंग होती हैं तो हम यह सब क्यों भूल जाते हैं क्यों उन्हें इस तरह की प्रताड़ना से गुजरना पड़ता है। लिंगानुपात का घटना भी महिलाओं के लिए किसी अपराध से कम नहीं है। हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश समेत देश के कई प्रमुख राज्यों में लिंगानुपात बहुत बड़ी समस्या है, इससे हम और आप यही कल्पना कर सकते हैं कि एक दिन भारत में महिलाओं की दयनीय स्थिति हो जाएगी। प्रधानमंत्री द्वारा चलाया गया बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान इस समस्या से निपटने में कारगर सिद्ध हो सकता है और हम सबको इसका समर्थन भी करना चाहिए। महिलाओं पर होने वाले दुष्कर्म जैसे अपराध को रोकने के लिए अपनी और समाज की सोच को बदलना होगा और इस तरह के जुर्म को रोकने के लिए आरोपियों के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद करना होगा और राष्ट्रहित में महत्वपूर्ण कदम उठाना चाहिए।

- रमेश सर्राफ धमोरा

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