पुतिन के साथ मोदी की इस बार की वार्ता कई मायनों में ऐतिहासिक

Modi russia visit is big event
कमलेश पांडे । May 19 2018 12:00PM

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन आगामी 21 मई को रूस की ग्रीष्मकालीन राजधानी सोची में आयोजित अनौपचारिक शिखर वार्ता में एक-दूसरे से गर्मजोशीपूर्वक मिलेंगे।

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन आगामी 21 मई को रूस की ग्रीष्मकालीन राजधानी सोची में आयोजित अनौपचारिक शिखर वार्ता में एक-दूसरे से गर्मजोशीपूर्वक मिलेंगे। जाहिर है, जब दुनिया के दो दिग्गज राजनेता काला सागर का मोती समझे जाने वाले इस रमणीक शहर में मिलेंगे तो उनकी इस अनौपचारिक मुलाकात पर पूरी दुनिया की नजर गड़ी होगी। सबकी यही चाहत होगी कि आखिरकार इसका फलाफल क्या निकलेगा? क्या दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों में एक अरसे से जमी बर्फ़ पिघलेगी और कोई नई समझदारी विकसित होगी जिससे दोनों पुराने मित्र राष्ट्रों का भला हो।

उम्मीद की जानी चाहिए कि सोची में दोनों नेताओं के बीच कुछ नई सोच-समझ विकसित होगी। ऐसा इसलिए भी कि दोनों नेताओं की सूझबूझ पर उनके अपने देशवासी फिदा हैं और दोनों देशों की मित्रता वक्त की कसौटी पर हमेशा खरी उतरी है। लिहाजा इस अनौपचारिक बैठक में परस्पर किन-किन मुद्दों पर चर्चा होगी और उन पर दोनों देशों का क्या रुख होगा, यह तो अनौपचारिक शिखर वार्ता के बाद ही पता चल सकेगा! लेकिन इतना तय है कि पारस्परिक सामरिक और रणनीतिक सम्बन्धों को बिना किसी दबाव के आगे बढ़ाया जाएगा।

यह सच है कि मोदी की इस रूस यात्रा का मकसद चीन की यात्रा की तरह एक-दूसरे के ऊपर भरोसा बहाल करने या फिर सम्बन्धों को नई मजबूती प्रदान करने जैसा नहीं है, बल्कि भारत-रूस के बीच पहले से जो प्रगाढ़ रिश्ते और मजबूत भरोसे कायम हैं, उन्हीं को आगे बढ़ाते हुए पारस्परिक हितों के लिए इसका सदुपयोग ज्यादा प्रभावी तरीके से करने की योजना है। इसलिए उम्मीद भी बंधी है कि दोनों देश पारस्परिक सामरिक गठजोड़ को नया विस्तार देने के अलावा दुनिया के विभिन्न मंचों पर आपसी सहयोग बढ़ाने की सकारात्मक पहल करेंगे।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि भारत-रूस के बीच के समझदारी भरे सम्बन्ध दुनिया के अन्यान्य देशों के साथ के द्विपक्षीय या बहुपक्षीय रिश्तों से तय नहीं होंगे। क्योंकि भारत का दुनिया के सभी प्रमुख ताकतों के साथ स्वतंत्र रिश्ता है जिसका असर दूसरे देशों पर नहीं पड़ने दिया जाता है। यही हमारी गुटनिरपेक्ष नीति का तकाजा है। यही वजह है कि दोनों देश अपने-अपने राष्ट्रीय हितों को कायम रखते हुए एक दूसरे के प्रति पक्के और विश्वस्त सहयोगी बने हुए हैं और आगे भी बने रहेंगे। क्योंकि दोनों भरोसेमंद देश हैं और दुनियावी कूटनीतिक पटल पर अपनी-अपनी अहमियत से वाकिफ भी हैं।

यहां यह स्पष्ट कर दें कि भले ही बीते दशक से भारत की नजदीकी अमेरिका और उसके मित्र देशों से बढ़ी है, फिर भी मोदी प्रशासन चाहता है कि चीन और रूस जैसे देशों के साथ भी उसके मधुर सम्बन्ध यथावत बने रहें, या फिर विकसित हों, क्योंकि चीन पड़ोसी देश है तो रूस वफादार दोस्त। कहना न होगा कि उटपटांग अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के बीच चीनी और रूसी नेतृत्व भी भारत को साधकर या मिलाकर चलने की इच्छा रखता है जिसकी राह में कुछ नीतिगत अड़चनें हैं। इसलिए चीन ने भारत को बुलावा भेजकर जिस अनौपचारिक शिखर वार्ता की शुरुआत वुहान से की, उसके महज तीन सप्ताह बाद रूस ने उसकी अहमियत समझी और 'सोची अनौपचारिक शिखर वार्ता' के लिए भारत को निमंत्रण भेज दिया, जिसे भारत ने तुरंत स्वीकार कर लिया, क्योंकि इसकी अपनी अहमियत है।

समझा जा रहा है कि सोची में दोनों नेता देश-दुनिया से जुड़े कतिपय अहम मुद्दों पर आपसी चर्चा करेंगे जिसमें ईरान, सीरिया और अफगानिस्तान में उनकी पारस्परिक अद्यतन भूमिका के निर्वहन के अलावा तीसरे देशों में नागरिक परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में भागीदारी जैसे विभिन्न मुद्दों पर भी विस्तृत बातचीत होने के आसार नजर आ रहे हैं। यही नहीं, भारत अपने मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसे महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों के लिए भी रूसी निवेश का आकांक्षी है। क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में शिथिल हुए भारत-रूस द्विपक्षीय व्यापार में बीते साल तकरीबन 21 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। इससे भारत के यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन से रिश्तों पर अच्छा और सकारात्मक असर पड़ रहा है।

खास बात यह कि अमेरिका और रूस में बढ़ती रणनीतिक तनातनी, अमेरिका और चीन में छिड़े व्यापार युद्ध, कोरियाई द्वीप में परमाणु निरस्त्रीकरण, दक्षिण चीन सागर विवाद, हिन्द प्रशांत महासागर में नौसैनिक वर्चस्व की होड़, पश्चिमी एशियाई देशों (अरब) की विडंबनापूर्ण परिस्थिति आदि के बीच विकसित और प्रगाढ़ हो रहे भारत-अमेरिकी सम्बन्ध, भारत-जापान सम्बन्ध आदि, जिसे अब अमेरिका द्वारा अपने पक्ष में भुनाने हेतु भारत पर नीतिगत दबाव डालने की तैयारी जोर पकड़ चुकी है, के मद्देनजर भारत-रूस के पारस्परिक हितों को कैसे अप्रभावित रखा जाए, इस पर भी विस्तार पूर्वक चर्चा हो सकती है और इससे निपटने के तौर-तरीकों पर भी सोचा जा सकता है।

यही वजह है कि भारत अपनी ओर से रूस को यह आश्वस्त करेगा कि भारत का सामरिक हित या फिर हथियारों की खरीद-फरोख्त का कार्यक्रम अमेरिका के दखल से प्रभावित नहीं होगा। क्योंकि रूसी सैन्य निर्यात पर अमेरिकी प्रतिबंध से भारत के साथ रूस के समझौतों को लेकर भी चिंताएं उठती रही हैं, जबकि भारत बार बार स्पष्ट कर रहा है कि वह अपने सामरिक रिश्तों को हर हाल में कायम रखेगा। दूसरी ओर भारत भी पाकिस्तान के साथ रूस के बढ़ते सहयोग को लेकर कई बार अपनी चिंताएं जता चुका है, लेकिन रूस हमेशा भारत को यह भरोसा देने में कामयाब हो जाता है कि भारत की सुरक्षा की कीमत पर वह किसी के साथ कोई सहयोग नहीं करेगा।

इससे स्पष्ट है कि समकालीन विश्व का विस्मार्क समझे जाने वाले भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक पटल पर जिस कुशलतापूर्वक अपनी सधी चाल चल रहे हैं, उससे घनिष्ठ मित्रगण ही नहीं बल्कि धुर विरोधियों का भी दंग रह जाना स्वाभाविक है। शायद यही वजह है कि देश-दुनिया के दिग्गज राजनेता भी प्रधानमंत्री मोदी की अग्रगामी नीतियों के कायल हो चुके हैं और उनके साथ बिना किसी पूर्व निर्धारित एजेंडे के अनौपचारिक शिखर वार्ता और अन्य बैठकें किए जाने पर जोर दे रहे हैं। ऐसा इसलिए कि आपसी मित्रवत सम्बन्ध और अधिक प्रगाढ़ हों, द्विपक्षीय रिश्तों को संतुलित किया जाए और यदि उनमें कोई कमियां/खामियां रह गई हों तो उन्हें दूरियां बनाने, बढ़ाने के लायक कतई नहीं छोड़ा जाए। इसके अलावा, बेलगाम पाकिस्तान को घेरने और बेकाबू आतंकवाद को पछाड़ने के लिए पीएम मोदी ने जिस राजनयिक चक्रब्यूह का ईजाद किया है, उसके मद्देनजर आज नहीं तो कल पाकिस्तान का बच निकलना मुश्किल है, क्योंकि पहले चीन और अब रूस से विकसित हो रही संतुलित समझदारी यदि बन गई तो पाकिस्तान पर मनोवैज्ञानिक दबाव भी बढ़ेगा।

इसलिए सुलगता सवाल है कि जब दुनियावी रिश्तों की कसौटी पर भारत-रूस की दोस्ती एक नहीं कई बार खरी साबित हो चुकी है, तब दोनों देशों को यह बात समझनी होगी कि आख़िरकार वो कौन सी अप्रत्याशित वजहें हैं जिनसे दोनों के रिश्तों में एक अप्रत्याशित ठहराव ला दिया है जिससे पारस्परिक भरोसे में भी कमी आई है। क्योंकि सिर्फ अमेरिकी या पश्चिमी देशों से द्विपक्षीय प्रेम के पींगे बढ़ाने और चीन-पाकिस्तान से अतिरिक्त सावधानी बरतने के बावजूद भारत दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी महाशक्ति रूस (पूर्व सोवियत संघ) की उपेक्षा कतई नहीं कर सकता, और ऐसा करना भी नहीं चाहिए। क्योंकि इस वीटो-धारी देश ने संयुक्त राष्ट्र संघ में एक नहीं बल्कि कई बार भारतीय हितों की जमकर तरफदारी की है, इसलिए उससे हमारे रिश्ते सदैव प्रगाढ़ बने रहें, भारत की ओर से यही कोशिश होनी चाहिए और हो भी रही है, जिसके लिए मोदी प्रशासन प्रशंसा का पात्र है।

-कमलेश पांडे

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