UP की जेलों का बुरा हाल, धनबल और बाहुबल का है बोलबाला

munna bajrangi murder is not new in uttar pradesh jail
संजय सक्सेना । Jul 11 2018 12:57PM

पूर्वांचल के गैंगस्टर मुन्ना बजरंगी को जिस तरह से जेल के भीतर मौत के घाट उतारा गया, ठीक उसी तरह से 2005 में उसके गैंग के शार्प शूटर अनुराग त्रिपाठी की भी हत्या जेल में की गई थी।

उत्तर प्रदेश जिला बगापत जेल में हिस्ट्रीशीटर मुन्ना बजरंगी की हत्या ने एक बार फिर जेल व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिये हैं, लेकिन गैंगवार का यह स्टाइल नया नहीं है। मुन्ना बजरंगी को जिस तरह से जेल के भीतर मौत के घाट उतारा गया, ठीक उसी तरह से 2005 में उसके गैंग के शार्प शूटर अनुराग त्रिपाठी की भी हत्या जेल में की गई थी। अनुराग की हत्या वाराणसी जेल में गोली मारकर की गई थी। इस हत्या का आरोप एक अन्य अपराधी संतोष गुप्ता उर्फ किट्टू पर लगा था। बाद में किट्टू भी पुलिस एनकाउंटर में मारा गिराया था।

मुन्ना बजरंगी की हत्या को सिर्फ प्रशासनिक या जिला जेल कर्मियों की लापरवाही तक सीमित करके खारिज नहीं किया जा सकता है। हकीकत यही है कि आम आदमी भले ही जेल का नाम सुनते ही खौफजदा हो जाता हो, परंतु अपराधियों के लिये जेल के कई मायने हैं। यहां धनबल और बाहुबल का 'नंगा नाच' होता है, जितना खूंखार अपराधी होता है उसका उतना जेल में दबदबा रहता है। सलाखों की पीछे रहकर ही कई अपराधी तो विधायक और सांसद तक बन जाते हैं। बाहुबली अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, अमरमणि त्रिपाठी, राजू पाल आदि तमाम अपराधी छवि के लोगों का जनप्रतिनिधि चुना जाना इस बात की मिसाल है। पैसे से जेलों में सुविधाएं खरीदी जाती हैं और जिसके पास मनी पावर नहीं है, उसे तरह−तरह से प्रताड़ित किया जाता है। इन्हें दबंग कैदियों की चाकरी के रूप में उनके कपड़े धोना, हाथ−पैर दबाने से लेकर तेल मालिश तक सब हुक्म बजाना पड़ता है। बड़े−बड़े माफियाओं को जेल की सलाखों के पीछे से अपराध की दुनिया में अपना सिक्का चलाते देखा गया है। यहां खूंखार अपराधियों के बीच रहकर छोटे−छोटे अपराधी भी शातिर बन जाते हैं। ऐसे छोटे−छोटे अपराधी जिनकी जल्द जमानत होने की उम्मीद रहती है, उन पर हिस्ट्रीशीटर बदमाशों का ज्यादा प्रेम उमड़ता है, जमानत पर छूटने के बाद इन छोटे−छोटे अपराधियों को खूंखार अपराधियों के गुर्गे अपने गैंग में शामिल कर लेते हैं। इस तरह की खबरें भीतर से अक्सर आम होती रहती हैं। यह सब कारनामे बिना जेल प्रशासन के संभव नहीं हैं।

यूपी में जेलों में अपराधी कितने बेखौफ हैं इसकी एक मिसाल हाल ही में उत्तर प्रदेश के बस्ती जिला जेल से सामने आई जब यहां कत्ल और हथियार तस्करी के जुर्म में सजा काट रहे तीन अपराधियों ने जेल के अंदर तरह तरह की सेल्फी खिंचवा कर फेसबुक पर पोस्ट कर दी और हथियार तस्करी के मामले में बंद विशाल उपाध्याय ने उसका टाइटल दिया 'माफिया'। इन तस्वीरों के वायरल होने के बावजूद सरकार ने इस मामले में किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। कुछ वक्त पहले फैजाबाद जेल से एक माफिया ने रंगदारी वसूलने का वीडियो जारी किया था।

हालात यह हैं कि जेल के जो अधिकारी/कर्मचारी सख्ती दिखाते हैं, उनको भी मौत के घाट उतार दिया जाता है। लखनऊ जेल के सुपरिटेंडेंट आरके तिवारी की हत्या, लखनऊ जेल के अंदर डिप्टी सीएमओ डॉक्टर आरके सचान का कत्ल इस बात की बानगी है। जेलों से बड़े पैमाने पर मोबाइल, शराब, नशा वगैरह बरामद होता रहा है। कई माफियाओं के जेल से ठेकेदारी/वसूली और हत्या तक का फरमान सुनाने तक की खबरें आम होती रही हैं। दो मई 2017 को मिर्जापुर जिला जेल में बंद शातिर अपराधी मुन्ना बजरंगी गैंग का रिंकू सिंह शूटर अमन सिंह को फोन पर इलाहाबाद और सिंघरौली में दो लोगों की हत्या का फरमान सुनाता है। एसटीएफ को इस बात की भनक लग जाती है और अमन सिंह गिरफ्तार हो जाता है, जो धनबाद के चर्चित नीरज सिंह हत्याकांड में शामिल था।

15 जनवरी 2017 को इलाहाबाद की नैनी जेल में बंद अपराधी उधम सिंह करनावल−मेरठ में मार्बल व्यवसायी व प्रॉपर्टी डीलर को फोन कर दस−दस लाख की फिरौती मांगता है। फिरौती न देने पर फोन करके दोनों को ठिकाने लगाने के लिए शूटर प्रवीण कुमार पाल को बुलाता है। प्रवीण मेरठ से इलाहाबाद पहुंच जाता है, लेकिन वारदात को अंजाम देने से पहले एसटीएफ उसे दबोच लेती है।

इसी प्रकार से यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान माफिया बृजेश सिंह चंदौली की सैयदराजा सीट से अपने भतीजे सुशील सिंह को जिताने के लिए कई ग्राम प्रधानों और बीडीसी को जेल से फोन करता है। भतीजे के नहीं जीतने पर अंजाम बुरा होने की धमकी देता है। जेल में वर्चस्व की लड़ाई में कई बार गैंगवार भी होते देखा गया है। इसी क्रम में 13 नवंबर 2017 को इलाहाबाद की नैनी सेंट्रल जेल में सनसनीखेज वारदात हुई थी जब जेल के अंदर बंद माफिया राजेश पायलट और फहीम पर जानलेवा हमला किया गया था। ये हमला मेरठ के कुख्यात गैंगस्टर उधम ने किया था।

17 अगस्त 2016 को सहारनपुर जिला कारागार में 2 गैंग के बदमाशों के बीच झड़प हो गई। इसमें एक ने दूसरे की चम्मच से गला रेतकर हत्या कर दी। घटना के बाद आनन−फानन में सभी आला अधिकारियों ने जिला कारागार में डेरा डाल दिया। हत्यारोपी बदमाश को हिरासत में ले लिया गया। पता चला कि दोनों गैंग के 2 बदमाश शाहनवाज उर्फ प्लास्टिक और सुक्खा 2 साल से जिला कारागार में बंद थे, जिनके बीच एक खूनी वारदात हुई थी।

18 जनवरी 2015 को मथुरा जिला कारागार में शनिवार को ब्रजेश मावी की हत्या के मामले में बंद कुख्यात राजेश टोंटा और मावी गिरोह के बीच गैंगवार हो गई। दोनों के बीच जेल में फायरिंग हुई और इसमें बंदी अक्षय सोलंकी की मौत हो गई। राजेश टोंटा समेत दो घायल हो गए। रात करीब 12 बजे घायल टोंटा को उपचार के लिए आगरा ले जाते समय रास्ते में गोलियों से भून दिया गया। बदमाशों का दुस्साहस ये था कि जिस समय टोंटा पर हमला किया गया, उस समय एंबुलेंस के साथ एसओ छाता, महिला थाना एसओ और व्रज वाहन भी था।

06 अगस्त 2014 को उप−कारागार रुड़की के गेट पर खूनी गैंगवार ने पूरे रुड़की क्षेत्र को हिलाकर रख दिया। स्वचालित हथियारों से लैस अपराधियों ने जेल परिसर में हिस्ट्रीशीटर चीनू पंडित और उसके साथियों पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी। फायरिंग में चीनू के तीन साथियों की मौत हो गई जबकि तीन घायल हो गए। गैंगवार और जेल प्रशासन की लापरवाही के चलते यूपी की जेलें कैदियों की कब्रगाह बन रही हैं। पिछले पांच साल में जेल की चहारदीवारी के भीतर दो हजार से अधिक कैदियों−बंदियों की जिंदगी का सूर्यास्त हो चुका है। वर्ष 2012 से जुलाई 2017 के बीच हुई मौतों का यह आंकड़ा सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जुटाया गया था।

प्रदेश में 62 जिला जेल, पांच सेंट्रल जेल और तीन विशेष कारागार हैं। इन जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों का होना भी इतनी मौतों का प्रमुख कारण है। जेलों में कैदियों की होने वाली मौतों में बड़ी संख्या बुजुर्गों की है। इनमें ज्यादातर टीबी, दमा और उच्च रक्तचाप से पीड़ित रहते हैं। बैरकों में क्षमता से अधिक कैदियों के चलते टीबी जैसी बीमारी तेजी से फैलती है।

उधर, जेलों में सुधार के लिए गठित मुल्ला कमेटी की सिफारिशें 25 साल बाद भी धूल फांक रही हैं। इसमें जेल नियमावली में संशोधन के साथ ही कैदियों के पुनर्वास से संबंधित सिफारिशें की गई थीं, जिन्हें आज तक लागू नहीं किया गया। उत्तर प्रदेश में कारागारों में स्टाफ की कमी भी एक बड़ी समस्या है। तमाम जेलों में 35 से 40 प्रतिशत कर्मचारियों की कमी आम बात है। ज्यादातर जेलें अंग्रेजों के समय बनी हैं। जहां पहले 500 बंदी थे वहीं आज 3000 से ज्यादा कैदियों की संख्या है। आज भी उसी हिसाब से ही स्टाफ है जो अभी तक नहीं बढ़ाया गया है। प्रदेश में 10129 स्टाफ होना प्रस्तावित है लेकिन इसके विपरीत 6500 स्टाफ ही कार्यरत है। 3450 कर्मचारियों की जगह अभी भी खाली है।

बताते चलें कि मुन्ना बजरंगी की पत्नी ने बजरंगी की हत्या से एक सप्ताह पूर्व प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि उसका पति यूपी पुलिस की हिट−लिस्ट पर है और उसकी हत्या की साजिश रची जा रही है। उसने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कहा था कि उसके पति की जान खतरे में है। रविवार को बजरंगी को एम्बुलेंस में भारी सुरक्षा के बीच झांसी से बागपत जेल में लाया गया था क्योंकि वह अस्वस्थ था। 2009 में बजरंगी को मुंबई से डीसीपी संजीव यादव की अगुआई वाली एक स्पेशल सेल टीम ने गिरफ्तार किया था। मुन्ना बजरंगी के बारे में एक रोचक घटनाक्रम यह भी है कि 1998 में दिल्ली पुलिस (मुठभेड़ विशेषज्ञ राजबीर सिंह की टीम) ने मुन्ना बजरंगी को कम से कम 9 बार गोली मार दी थी और उसे मृत मानकर पुलिस ने उसके शव को पोस्टमार्टम के लिये जब अस्पताल भेजा तो वह वहां जिंदा हो गया था।

-संजय सक्सेना

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