मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के लिए आसान नहीं आगे की राह, सिर पर सजा है कांटों का ताज

Vishnu Deo Sai
ANI

छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार के गठन के साथ ही साय सरकार के लिए चुनौतियों का दौर शुरू हो चुका है, जिससे उसे लगातार जूझते रहना पड़ेगा। सबसे बड़ी चुनौती है प्रदेश में विकास कार्यों को गति प्रदान करने के लिए हजारों करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व जुटाने की।

छत्तीसगढ़ विधानसभा के चुनाव परिणाम घोषित हुए एक महीने से भी ज्यादा हो चुका है और सभी मंत्रियों को विभाग आवंटित किए जाने के बाद प्रदेश में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार के गठन का काम पूरा हो चुका है। कई दिनों के इंतजार के बाद पिछले दिनों छत्तीसगढ़ में मंत्रियों के विभागों का बंटवारा किया गया, जिसमें मुख्यदमंत्री विष्णु देव ने अपने पास पांच विभाग रखे हैं जबकि दोनों उपमुख्यमंत्रियों को भी अहम विभाग सौंपे गए हैं। मुख्यमंत्री ने सामान्य प्रशासन विभाग, खनिज, जनसम्पर्क, परिवहन और आबकारी विभाग अपने पास रखा है जबकि उपमुख्यमंत्री अरुण साव को लोक निर्माण साथ पीएचई, विधि, और नगरीय प्रशासन विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई है। दूसरे उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा को गृह विभाग के अलावा पंचायत एवं ग्रामीण विकास, तकनीकी शिक्षा, रोजगार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग दिया गया है। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री सहित अधिकतम 13 मंत्री हो सकते हैं और मुख्यमंत्री साय तथा दो उपमुख्यमंत्रियों के अलावा राज्य में 10 और मंत्री बन सकते हैं।

बृजमोहन अग्रवाल को स्कूल शिक्षा, उच्च शिक्षा, संसदीय कार्य, धार्मिक न्यास, पर्यटन एवं संस्कृति विभाग, रामविचार नेताम को आदिम जाति विकास, अनुसूचित जाति विकास, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक विकास, कृषि विकास एवं किसान कल्याण विभाग, दयालदास बघेल को खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग, केदार कश्यप को वन एवं जलवायु परिवर्तन, जल संसाधन, कौशल विकास एवं सहकारिता विभाग, लखनलाल देवांगन को वाणिज्य और उद्योग एवं श्रम विभाग, श्याम बिहारी जायसवाल को लोक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, चिकित्सा शिक्षा, बीस सूत्रीय कार्यान्वयन विभाग, ओपी चौधरी को वित्त, वाणिज्यिक कर, आवास एवं पर्यावरण, योजना आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग, लक्ष्मी राजवाड़े को महिला एवं बाल विकास तथा समाज कल्याण विभाग और टंकराम वर्मा को खेलकूद एवं युवा कल्याण, राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग आवंटित किए गए हैं। सभी विभागों के आवंटन के बाद मंत्री का एक पद रिक्त रह गया है, जिसे बाद में भरा जाएगा। 3 दिसम्बर को छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने के 10 दिन बाद 13 दिसंबर को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में विष्णु देव साय के साथ दो उपमुख्यमंत्रियों अरुण साव और विजय शर्मा ने भी शपथ ली थी। उसके बाद हुए मंत्रिमंडल विस्तार में 22 दिसंबर को 9 विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई थी, जिन्हें करीब एक सप्ताह बाद विभाग आवंटित किए गए।

इसे भी पढ़ें: नवंबर 2023 से छत्तीसगढ़ में माओवादी विरोधी अभियान तेज़, जानिए क्या कहते हैं आंकड़े

विष्णुदेव साय मंत्रिमंडल की सबसे खास बात यह है कि साय कैबिनेट में सभी वर्गों का विशेष ध्यान रखा गया है। छत्तीसगढ़ में भाजपा आलाकमान द्वारा मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और मंत्रियों में जातिगत समीकरणों का इस प्रकार ख्याल रखा गया है ताकि आगामी लोकसभा चुनाव में सभी वर्गों के मतदाताओं को साधा जा सके। प्रदेश की 12 सदस्यीय कैबिनेट में 2 सामान्य, 6 ओबीसी, 3 एसटी और 1 एससी को शामिल किया गया है। मंत्रिमंडल में 8 बार के विधायक बृजमोहन अग्रवाल, वरिष्ठ नेता केदार कश्यप, दयालदास बघेल और रामविचार नेताम ऐसे चेहरे हैं, जो पिछली भाजपा सरकार में मंत्री रह चुके हैं जबकि अरुण साव, विजय शर्मा, आईएएस से नेता बने ओपी चौधरी और टंकराम वर्मा पहली बार विधायक बनने के बाद मंत्री बने हैं जबकि श्याम बिहारी जायसवाल और लखनलाल देवांगन पहले भी एक बार विधायक रहे हैं। मुख्यमंत्री सहित कुल 12 मंत्रियों में से सर्वाधिक 6 ओबीसी वर्ग से रखे गए हैं, जिनमें उपमुख्यमंत्री अरुण साव, लखनलाल देवांगन, श्याम बिहारी जयसवाल, टंकराम वर्मा, ओपी चौधरी और लक्ष्मी राजवाड़े शामिल हैं जबकि मुख्यमंत्री विष्णु देव साय, रामविचार नेताम और केदार कश्यप अनुसूचित जनजाति वर्ग से हैं। एससी वर्ग यानी अनुसूचित जाति से दयालदास बघेल और सामान्य वर्ग से उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा तथा बृजमोहन अग्रवाल को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। लक्ष्मी राजवाड़े कैबिनेट में एकमात्र महिला सदस्य हैं।

बहरहाल, छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार के गठन के साथ ही साय सरकार के लिए चुनौतियों का दौर शुरू हो चुका है, जिससे उसे लगातार जूझते रहना पड़ेगा। सबसे बड़ी चुनौती है प्रदेश में विकास कार्यों को गति प्रदान करने के लिए हजारों करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व जुटाने की। दरअसल, विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा द्वारा जनता के समक्ष ‘मोदी की गारंटी’ के रूप में जिस तरह की घोषणाएं की गई थी, उन्हें अमलीजामा पहनाए जाने पर सरकारी खजाने पर बहुत बड़ी चोट पड़ने वाली है। ऐसे में मुख्यमंत्री के समक्ष किसानों, कामगारों और महिलाओं से किए गए वायदों को पूरा करने की बड़ी चुनौती रहेगी। माना जाता है कि 2018 में भाजपा की करारी हार का एक बड़ा कारण उसका घोषणा पत्र भी था लेकिन इस बार के चुनाव में भाजपा ने इसका खास ध्यान रखते हुए जनता से खूब वायदे किए और अपने घोषणा पत्र को पार्टी ने ‘छत्तीसगढ़ के लिए मोदी की गारंटी’ का नाम दिया और जनता ने भी ‘मोदी की गारंटी’ पर भरोसा जताया। ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा पर अपनी दी गई सभी गारंटियों को मूर्त रूप देकर जनता को उसका सीधा लाभ पहुंचाने की बड़ी चुनौती सामने रहेगी और निश्चित रूप से इन परिस्थितियों में मुख्यमंत्री के लिए आगे की राह आसान नहीं है।

भाजपा ने चुनाव के दौरान जनता से न केवल यह वायदा किया था कि वह किसानों से प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान की खरीदी करेगी बल्कि अपने संकल्प पत्र में 3100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदने का भी वादा किया था जबकि धान का समर्थन मूल्य 2300 रुपये है। ऐसे में सरकार को धान की खरीद पर किसानों को अब 800 रुपये प्रति क्विंटल का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ेगा, जिसके लिए सरकार को करीब 10 हजार करोड़ रुपये के अतिरिक्त राजस्व की जरूरत होगी। धान खरीदी पर सरकार की करीब 45 हजार करोड़ रुपये की राशि खर्च होगी। इसी प्रकार यदि महिलाओं को 12 हजार रुपये वार्षिक दिए जाने के वायदे पर अमल किया जाता है तो छत्तीसगढ़ की करीब 70 लाख विवाहित महिलाओं के लिए सरकार को करीब साढ़े नौ हजार करोड़ के फंड की व्यवस्था करनी पड़ेगी। गरीब परिवार की महिलाओं को 500 रुपये में गैस सिलैंडर देने का भी वादा किया गया था। ऐसे में भूमिहीन खेतिहर मजदूरों पर 570 करोड़ से ज्यादा और गैस सिलैंडर सब्सिडी पर करीब एक हजार करोड़ की रकम खर्च होगी। एक लाख शासकीय पदों पर भर्ती करने का वायदा भी भाजपा ने चुनाव के दौरान किया था।

भाजपा द्वारा चुनाव के दौरान किए गए इन तमाम वादों को पूरा करने पर बहुत भारी-भरकम खर्च होगा और पहले से ही कर्ज में डूबे छत्तीसगढ़ की वित्तीय हालत को सुधार कर इन वायदों को पूरा करना भाजपा के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। कुल मिलाकर वायदों को पूरा करने में भाजपा को अनुमानित करीब 65 हजार करोड़ की रकम खर्च करनी होगी। मौजूदा समय में छत्तीसगढ़ करीब 82 हजार करोड़ रुपये के कर्ज के बोझ तले दबा है। माना जाता है कि 2018 में जब भाजपा के रमन सिंह ने कुर्सी छोड़ी थी और भूपेश बघेल ने सत्ता संभाली थी, तब राज्य पर 41695 करोड़ रुपये का कर्ज था लेकिन 2023 तक यह कर्ज बढ़कर दोगुना हो गया है। स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि बघेल सरकार को कर्ज पर करीब छह हजार करोड़ रुपये का तो वार्षिक ब्याज ही देना पड़ रहा था। हालांकि छत्तीसगढ़ में भाजपा न केवल मजबूत बहुमत के साथ सत्ता में आई है बल्कि कांग्रेस के पांच वर्षों के कार्यकाल की गलतियों और गलत कार्यों को लगातार करीब से देखते हुए उसे कई सबक भी मिले हैं। ऐसे में प्रदेश के हित में उम्मीद की जानी चाहिए कि भाजपा के नए मुख्यमंत्री साव और उनकी कैबिनेट के सभी मंत्री इस बात का विशेष ध्यान रखेंगे कि तमाम तरह की सीधे फायदे पहुंचाने वाली योजनाओं के बाद भी यदि मतदाताओं ने कांग्रेस को खारिज करते हुए पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा को सत्ता सौंपी है तो मौजूदा भाजपा सरकार को उस तरह की गलतियों और गलत कार्यों से बचना चाहिए।

बहरहाल, अब देखना यह है कि नए मुख्यमंत्री के रूप में विष्णुदेव साय भाजपा आलाकमान के साथ-साथ जनता की उम्मीदों पर भी कितना खरा उतरते हैं, उनके काम करने के तौर-तरीके कैसे रहते हैं, शासन-प्रशासन को वे कितना बेहतर बना सकते हैं, राज्य का कितना आर्थिक विकास कर सकते हैं और अपने नेतृत्व में जनता के बीच कितनी साख कमा सकते हैं।

-योगेश कुमार गोयल

(लेखक 34 वर्षों से पत्रकारिता में निरंतर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं)

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़