खतरनाक है प्लास्टिक, देश को इससे मुक्ति दिलाने का अभियान जरूरी है

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एकल उपयोग प्लास्टिक देश के पर्यावरण, नागरिकों, पशु-पक्षियों, समुद्री जीवों आदि के लिए कितना ख़तरनाक है, इस भयावह स्थिति को समझना बहुत आवश्यक है। दरअसल, प्लास्टिक आसानी से विघटित नहीं होता है एवं इसका स्वरूप लगभग 1000 वर्षों तक बना रहता है।

दिनांक 25 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने “मन की बात” कार्यक्रम में देश का आह्वान किया है कि इस वर्ष दीपावली तक देश को प्लास्टिक कचरे से मुक्ति दिलायी जानी चाहिए। इसलिए, इस बार “स्वच्छता ही सेवा” अभियान की शुरूआत दिनांक 11.09.2019 से की जाए एवं इस अभियान के अंतर्गत एकल उपयोग प्लास्टिक के इस्तेमाल को ख़त्म करने के प्रयास प्रारम्भ किए जाएँ। उन्होंने आगे कहा है कि इस बार, जब 2 अक्टोबर 2019 को आदरणीय बापू महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाई जाएगी, तो इस अवसर पर हम उन्हें न केवल खुले में शौच से मुक्त भारत समर्पित करेंगे बल्कि उस दिन पूरे देश में प्लास्टिक के ख़िलाफ़ एक नए जन आंदोलन की नीव भी रखेंगे। 

एकल उपयोग प्लास्टिक के इस्तेमाल को ख़त्म करने के प्रयास को एक जन आंदोलन का रूप देना होगा। इस हेतु समाज में उत्साह है। कई व्यापारी भाइयों ने तो अपनी दुकान में एक तख्ती लगा दी है जिसमें लिखा है कि प्रिय ग्राहक, अपना थैला साथ लेकर ही आएँ, ताकि एकल उपयोग प्लास्टिक के इस्तेमाल को ख़त्म किया जा सके। इससे पैसा भी बचेगा और पर्यावरण की रक्षा में सभी देशवासी अपना महत्वपूर्ण योगदान भी दे पाएँगे। प्रधानमंत्री ने समाज के सभी वर्गों, हर गाँव, क़सबे, शहर के निवासियों से अपील करते हुए करबद्ध प्रार्थना की है कि इस वर्ष गांधी जयंती, एक प्रकार से, भारत माता को प्लास्टिक कचरे से मुक्ति के रूप में मनाई जानी चाहिए। देश की सभी नगर निगमों, नगर पालिकाओं, ज़िला पंचायतों, ग्राम पंचायतों, सरकारी, ग़ैर सरकारी संस्थानों एवं प्रत्येक नागरिक से अनुरोध भी किया गया है कि प्लास्टिक कचरे के स्टोर के लिए उचित व्यवस्था की जाये। साथ ही, कोरपोरेट सेक्टर से भी अपील की गई है कि जब ये सारा प्लास्टिक कचरा इकट्ठा हो जाए तो इसके उचित विघटन हेतु वे भी आगे आएँ। प्लास्टिक कचरे के विघटन की व्यवस्था के साथ-साथ इसे रीसायकल किए जाने की भी व्यवस्था की जानी चाहिए। इससे ईंधन आदि बनाया जा सकता है। इस प्रकार, इस दीपावली तक हम प्लास्टिक कचरे के सुरक्षित निपटारे का कार्य भी पूरा कर सकते हैं। बस, केवल संकल्प चाहिए। प्रधानमंत्री ने तो दिनांक 26 अगस्त 2019 को जी-7 सदस्य देशों के सम्मेलन में भी यह बता दिया है कि भारत में पर्यावरण में सुधार करने के उद्देश्य से किस प्रकार प्लास्टिक कचरे को ख़त्म करने हेतु प्रयास किए जा रहे हैं।  

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प्लास्टिक, विशेष रूप से एकल उपयोग प्लास्टिक, देश के पर्यावरण, नागरिकों, पशु-पक्षियों, समुद्री जीवों आदि के लिए कितना ख़तरनाक है, इस भयावह स्थिति को समझना बहुत आवश्यक है। दरअसल, प्लास्टिक आसानी से विघटित नहीं होता है एवं इसका स्वरूप लगभग 1000 वर्षों तक बना रहता है। विश्व में प्लास्टिक का उपयोग इतना बढ़ता जा रहा है कि पिछले 10 वर्षों के दौरान जितना प्लास्टिक का उत्पादन हुआ है इतना प्लास्टिक का उत्पादन इन 10 वर्षों के पहले के पूरे समय में भी नहीं हुआ था। इन सभी प्लास्टिक उत्पादों में से 50 प्रतिशत प्लास्टिक उत्पाद केवल एक बार ही उपयोग कर फेंक दिए जाते हैं। प्रत्येक वर्ष इतना प्लास्टिक धरती एवं समुद्र में फेंका जाता है कि यदि ये पूरा प्लास्टिक एक कड़ी के रूप में जोड़ा जाये तो इस कड़ी के माध्यम से भू-भाग के चार चक्कर लगाए जा सकते हैं। वर्तमान में केवल 5 प्रतिशत प्लास्टिक ही रीसायकल हो पाता है शेष 95 प्रतिशत प्लास्टिक कचरे का रूप ले लेता है। पूरे विश्व में लगभग 50,000 करोड़ प्लास्टिक की थैलियाँ प्रतिवर्ष उपयोग में आती हैं। सामान्यतः प्लास्टिक कचरे को समुद्र में फेंक दिया जाता है, इससे समुद्र के पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है एवं समुद्री जीव इसका शिकार हो रहे हैं। प्रतिवर्ष समुद्र में 10 लाख समुद्री पक्षी एवं एक लाख समुद्री स्तनपायी जीवों की जीवनलीला प्लास्टिक पदार्थ खाने से समाप्त हो जाती है। भारत में तो कई पशु-पक्षी (गाय, भैंस आदि) प्लास्टिक के पदार्थों को खाकर अपनी जान गंवा बैठते हैं। प्लास्टिक कचरे का भंडार हमारे देश के लिए भी एक गंभीर समस्या बन गया है। महानगरों, शहरों एवं अब तो ग्रामीण इलाक़ों में भी प्लास्टिक कचरे के भंडार के पहाड़ आसानी से देखे जा सकते हैं। इसी कारण से प्रधानमंत्री ने अपने मन की बात कार्यक्रम में इस कचरे के विघटन हेतु कोरपोरेट जगत से भी अपील की है। 

परंतु, हम नागरिकों की ज़िम्मेदारी तो अब शुरू होती है कि भविष्य में किस प्रकार हमारे जीवन में प्लास्टिक के उपयोग को सीमित किया जाये। दरअसल, यह बहुत ही आसान है। हमें केवल कुछ आदतें अपने आप में विकसित करनी होंगी। यथा, जब भी हम सब्ज़ी एवं किराने का सामान आदि ख़रीदने हेतु जाएँ तो कपड़े के थैलों का इस्तेमाल करें। इससे ख़रीदे गए सामान को रखने हेतु प्लास्टिक के थैलियों की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। एकल उपयोग प्लास्टिक के उपयोग को कठोरता के साथ बिलकुल “ना” कहें। इसके स्थान पर, पुनः प्रयोग होने वाले प्लास्टिक उत्पादों का इस्तेमाल करें। चाय एवं कॉफ़ी आदि के ढाबों पर प्लास्टिक मग्स के स्थान पर कुल्हड़ का उपयोग करें। इस संदर्भ में, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने तो यहाँ तक कह दिया है कि इस प्रकार की व्यवस्थाएँ की जा रही हैं कि रेल्वे प्लैट्फ़ॉर्म एवं हवाई अड्डों पर भी अब चाय एवं कॉफ़ी कुल्हड़ में ही परोसी जाएगी। मनोरंजन के लिए गाने, भजन एवं फ़िल्मों आदि के वीडियो ऑनलाइन ही ख़रीदें, इनकी प्लास्टिक की CD एवं DVD नहीं ख़रीदें। विभिन्न समुद्री किनारों पर फैल रहे प्लास्टिक कचरे की सफ़ाई में अपना योगदान हर नागरिक दे सकता है। छुट्टी के दिन कई दोस्त लोग मिलकर इस प्रकार की सामाजिक सेवा में अपना हाथ बंटा सकते हैं। जब भी विभिन्न सरकारों द्वारा अपने-अपने प्रदेशों में प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध की घोषणा की जाती है, इसका पुरज़ोर समर्थन करें एवं समाज में अपने भाई बहनों को भी समझाएँ कि वे इस प्रतिबंध को सफल बनाएँ। उक्त बताए गए छोटे-छोटे उपायों से देश में प्लास्टिक कचरे के फ़िर से इकट्ठा होने को रोका जा सकता है।

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वर्ष 2016 में प्लास्टिक वेस्ट मेनेजमेंट रूल्ज़, 2016 भी भारतीय संसद ने पास किए हैं। इन नियमों के अनुसार प्लास्टिक थैलियों की न्यूनतम मोटाई 40 माइक्रान से बढ़ाकर 50 माइक्रान कर दी गई है। इससे इन प्लास्टिक थैलियों की लागत 20 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी एवं अब शायद दुकानदार, क्रेता को मुफ़्त में प्लास्टिक थैलियाँ उपलब्ध कराना बंद कर दें। वर्ष 2016 से उक्त क़ानून को ग्रामीण इलाक़ों में भी लागू कर दिया गया है एवं ग्राम पंचायतों के ऊपर यह ज़िम्मेदारी डाली गई है कि वे प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन से सम्बंधित नियमों का कड़ाई से पालन करें। अब समय आ गया है कि देश को प्लास्टिक कचरे से मुक्त कराया जाए ताकि न केवल मासूम पशु-पक्षियों की जान बचाई जा सके बल्कि पर्यावरण में भी सुधार लाया जा सके। 

-प्रह्लाद सबनानी

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