राहुल की लीडरशिप को ही मजबूत करेंगी प्रियंका
प्रियंका गांधी की एकमात्र भूमिका होगी कि वे राहुल गांधी की लीडरशिप को मजबूत करती हुई दिखाई दें। इसलिए उन्होंने जो संकेत दिया वह राहुल की मजबूती और राहुल की इच्छा को सर्वोपरि बताता है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे सभी राजनीतिक दलों में अपने-अपने इलाकों के कील कांटे को दुरुस्त करने की बेचैनी बढ़ती जा रही है। कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं की माँग है कि प्रियंका गांधी वाड्रा को रायबरेली और अमेठी के बाहर भी चुनाव प्रचार के लिए भेजा जाए। अगर पार्टी आलाकमान यह माँग मान लेता है तो विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को लाभ संभव है। सोनिया गांधी की संसदीय सीट रायबरेली और राहुल गांधी की लोकसभा सीट अमेठी में सांगठनिक ढांचे को दुरुस्त करने के लिए प्रियंका वाड्रा ने पहले भी काफी सक्रियता से काम किया है। हालांकि विधानसभा चुनाव में वैसी सफलता हासिल नहीं हुई। प्रियंका अब तक अपनी मां सोनिया की ही सीट पर होमवर्क करती रही हैं, लेकिन अब दोनों संसदीय इलाके में आने वाले विधानसभा सीटों की कमान सीधे उनके ही हाथों में फिर से आ सकती है।
दूसरी ओर सियासी गलियारों में कहा जा रहा है कि फिलहाल कांग्रेस की ऐसी कोई योजना नहीं है कि वह उत्तराधिकार के निर्णय में कोई बदलाव करे। प्रियंका गांधी पहले भी रायबरेली और अमेठी में चुनाव प्रचार का काम देखती रही हैं और इस बार भी उन्हें इसी काम में लगाया जा सकता है। दीदी को अपने बीच पाकर वहां कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ जाता है और उनके बीच कांग्रेसी कार्यकर्ता जितना सहज महसूस करते हैं उतना सहज न तो सोनिया गांधी के बीच हो पाते हैं और न ही राहुल गांधी के बीच। सच तो यह भी है कि कांग्रेस के लिए अमेठी और रायबरेली में विधानसभा सीटों पर हार जीत प्रदेश की दूसरी सीटों पर होने वाली हार जीत से ज्यादा मायने रखती है, लेकिन क्योंकि खुद सोनिया गांधी या राहुल गांधी ज्यादा वक्त यहां नहीं दे सकते इसलिए परिवार की ओर से यह जिम्मेदारी प्रियंका गांधी को दे दी जाती है। इस बार भी यही किया जा सकता है।
पार्टी के रणनीतिकारों को भी लगता है कि विधानसभा चुनाव में जिस तरह से पार्टी को रायबरेली और अमेठी में मुंह की खानी पड़ी उसके बाद प्रियंका ने इन दोनों सीटों की कमान अपने हाथों में लेने का मन बना लिया है। वर्ष 2012 में हुए विधानसभा चुनाव और अब के हालात में भी काफी अंतर चुका है। 2009 में रायबरेली और अमेठी की 10 विधानसभा सीटों में से 6 कांग्रेस के कब्जे में थीं, लेकिन इस बार यह संख्या घटकर दो तक पहुंच गई है। गांधी परिवार के लिए यह खतरे की घंटी की तरह ही है।
दूसरी दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस के उप्र मामलों के प्रभारी गुलाम नबी आजादी लगातार प्रियंका को चुनाव प्रचार के लिए दबाव तो नहीं बना रहे हैं लेकिन यह तय लग रहा है कि पूरे प्रदेश में इस बार प्रियंका को लगाया जा सकता है। पिछले विधानसभा चुनाव में प्रियंका ने कहा था कि भाई चाहेंगे तो बहन दूसरी जगहों पर जाएगी। असल में यह कांग्रेस का निर्णय नहीं बल्कि खुद प्रियंका की पालिटिक्स है। प्रियंका गांधी के बारे में कहा जाता है कि वे राजनीतिक रूप से मैच्योर डिसीजन लेती हैं और कोई भी कदम ऐसा नहीं उठाना चाहती हैं जिससे परिवार में किसी प्रकार का खिंचाव या तनाव आए। प्रियंका गांधी अपनी क्षमताओं को भी जानती हैं और नेहरू गांधी परिवार की आर्थिक विरासत की रखवाली का जिम्मा भी अपने पास रखती है, जिससे निश्चित रूप से वे पारिवारिक स्तर पर राहुल गांधी से ज्यादा ताकतवर स्थिति में हैं। प्रियंका गांधी की एकमात्र भूमिका होगी कि वे राहुल गांधी की लीडरशिप को मजबूत करती हुई दिखाई दें। इसलिए उन्होंने जो संकेत दिया वह राहुल की मजबूती और राहुल की इच्छा को सर्वोपरि बताता है। अपनी राजनीतिक सक्रियता के लिए भी राहुल की इच्छा को सर्वोपरि बताकर उन्होंने प्रदेश के कार्यकर्ताओं में संदेश दे दिया कि नेता राहुल गांधी ही हैं, बाकी सब उनके लिए काम कर रहे हैं। इसका सीधा फायदा राहुल गांधी को पहुंचेगा। जो कांग्रेसी अभी तक प्रियंका को नेता बनाने की मुहिम चला रहे थे वह राहुल गांधी के पीछे लामबंद होने के लिए मजबूर हो जाएंगे।
- मानवेंद्र कुमार
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