धोखे की राजनीति हार्दिक और कांग्रेस दोनों को भारी पड़ेगी

The Congress was the only one to start the Patel agitation

अब यह भी साफ हो रहा है कि पाटीदार आंदोलन को शुरू करने के पीछे कांग्रेस ही थी। इसका उद्देश्य पाटीदारों को आरक्षण दिलाना नहीं था। कांग्रेस जानती थी कि फिलहाल ऐसा नहीं किया जा सकता।

हार्दिक और कांग्रेस की जुगलबंदी अपने अंजाम पर पहुंची। कुछ दिन तक पटकथा इधर उधर चलती रही। अंततः पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल और कांग्रेस के बीच समझौता हो गया। चुनाव में समझौता या गठबंधन करने का सभी को अधिकार है। इस पर आपत्ति नहीं हो सकती लेकिन इनके द्वारा गुजरात की जनता को धोखे में रखा गया, यह अनुचित है। दोनों ने जिस प्रकार का समझौता किया है, उसका संवैधानिक दृष्टि से कोई महत्व नहीं है। कांग्रेस ने कहा कि वह सत्ता में आई तो पाटीदारों को आरक्षण दिया जाएगा। कांग्रेस के दिग्गज कपिल सिब्बल का उत्साह आसमान पर है। उनकी बातों से लगा जैसे पटीदारों का आरक्षण उनकी जेब में है, सरकार बनाने का मौका मिला, तो वह जेब से निकाल कर आरक्षण सामने रख देंगे।

हार्दिक भी ऐसे मासूम बन रहे हैं, जैसे कांग्रेस उनकी मुराद पूरी कर देगी। कपिल सिब्बल जब केंद्र में मंत्री थे उस समय भी आरक्षण के कई मसले उठे थे। कांग्रेस ने कई चुनावों में विभिन्न जातियों को आरक्षण देने का वादा किया था। कांग्रेस की तत्कालीन आंध्र प्रदेश सरकार ने एक वर्ग को आरक्षण दे भी दिया था। सिब्बल सुप्रीम कोर्ट के बड़े वकील हैं, संविधान के विशेषज्ञ हैं। उस समय केंद्र में मंत्री थे। लेकिन आरक्षण पर उनकी आंध्र प्रदेश सरकार का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया। कपिल सिब्बल कुछ नहीं कर सके क्योंकि पचास प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं हो सकता। यह सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश है। हार्दिक और कांग्रेस के समझौते में संविधान के अनुच्छेद छियालीस और सैंतालीस का उल्लेख किया गया है। यह दावा किया गया कि इसके आधार पर आरक्षण मिल जायेगा। जबकि ऐसे प्रयास पहले भी विफल रहे हैं। जिन प्रदेश सरकारों ने ऐसी हिमाकत की उन्हें सुप्रीम की फटकार सुननी पड़ी क्योकि यह सब राजनीतिक लाभ उठाने के लिए किया जा रहा था। सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी उचित थी।

कपिल सिब्बल जैसे कांग्रेसी नेताओं को बताना होगा कि उसके बाद न्यायिक दृष्टि से क्या बदलाव आया है जिसमें वह पाटीदारों को आरक्षण दिला देंगे। परिस्थितियां बिल्कुल पहले जैसी हैं। इसी प्रकार कांग्रेस की महाराष्ट्र सरकार ने भी आरक्षण बढ़ाने का प्रयास किया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट में उसे मुंह की खानी पड़ी। उस समय भी केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। कपिल सिब्बल जब सरकार में थे, तब आरक्षण नहीं दिला सके, अब कौन सा तीर मार लेंगे। विडम्बना देखिये उसी कांग्रेस ने अनुच्छेद छियालीस व सैंतालीस के तहत आरक्षण दिलाने का वादा किया है। यह हास्यास्पद है। क्या कांग्रेस यह कहना चाहती है कि उसे पहले इन अनुच्छेद की जानकारी नहीं थी।

इसी आधार पर हार्दिक भी कठघरे में हैं। उन्हें बताना होगा कि कांग्रेस के वादे पर विश्वास करने का क्या आधार है। कांग्रेस केंद्र और संबंधित राज्य में सत्ता के बावजूद ऐसा नहीं कर सकी थी। जाहिर है कि कांग्रेस और हार्दिक पटेल के बीच हुआ समझौता फरेब पर आधारित है। यह फरेब पाटीदारों के साथ किया गया है। गुजरात के उपमुख्यमंत्री और पाटीदार समुदाय के सम्मानित नेता नितिन पटेल ने तो यहां तक कहा कि यह एक मूर्ख का दूसरे मूर्ख के साथ समझौता है। जिसके माध्यम से पाटीदारों को मूर्ख बनाने का प्रयास किया गया। हार्दिक पटेल कांग्रेस के एजेंट रूप में कार्य कर रहे हैं। वह अब बेनकाब हो चुके हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि हार्दिक की विश्वसनीयता दांव पर लग गई है। कांग्रेस के साथ हुआ समझौता पाटीदार समुदाय के गले नहीं उतर रहा है। इसीलिए हार्दिक अपनी कीमत बताने में लगे हैं। उन्होंने कहा कि जब वह जेल में थे तब भाजपा ने उन्हें बारह सौ करोड़ रुपए में खरीदने की कोशिश की थी। इसके अलावा वह अब छह करोड़ गुजरातियों की बात करने लगे हैं। जबकि उनकी राजनीति जातिवादी है। इसमें गुजरात के कल्याण का कोई विचार नहीं है। हार्दिक की जो सीडी प्रचारित हुई, उनसे भी उनकी छवि पर धब्बा लगा है। 

अब यह भी साफ हो रहा है कि पाटीदार आंदोलन को शुरू करने के पीछे कांग्रेस ही थी। इसका उद्देश्य पाटीदारों को आरक्षण दिलाना नहीं था। कांग्रेस जानती थी कि फिलहाल ऐसा नहीं किया जा सकता। वह तो केवल भाजपा सरकार को परेशानी में डालना चाहती थी। उसके नेता पर्दे के पीछे रहे थे। इसमें भाजपा के कुछ असन्तुष्ट भी शामिल थे। इन लोगों ने हार्दिक जैसे युवकों को आगे किया। जातिवादी मसले संवेदनशील होते हैं। पाटीदारों की भी इसमें संख्या बढ़ी। हार्दिक ने अपने को बड़ा नेता मान लिया। वह पूरे समुदाय के लिए फैसले लेने लगे। बताया जाता है कि इन सबके पीछे कांग्रेस थी। पाटीदार आंदोलन समिति ने चुनाव न लड़ने और कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला लिया है। एक अन्य धोखा देखिये।  हार्दिक अपने कई समर्थकों को कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा रहे हैं। असली मुद्दा यही था। इसी के लिए सौदेबाजी हो रही थी। जब टिकट का सौदा पूरा हुआ, उसके तत्काल बाद समझौता हो गया। इसमें आरक्षण का वादा हो गया। जबकि वास्तविक समझौता केवल सीट को लेकर था। लेकिन अब कलाई खुल चुकी है। धोखे की यह राजनीति हार्दिक और कांग्रेस दोनों को भारी पड़ेगी।

- डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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