जाम के झाम से मुक्ति के हों पुख्ता इंतजाम

traffic jams
ANI

डॉक्टरों के अनुसार, जाम में फंसने वालों को अकसर ब्लड प्रेशर बढ़ने, बर्नआउट, सांस की बीमारी, डिहाईड्रेशन, फीवर, घबराहट, सीने में दर्द आदि बीमारियों का सामना करना पड़ता है। गंभीर मरीज लंबे समय तक जाम में फंस जाए तो उसकी मौत भी हो सकती है।

27 जून को इंदौर-देवास हाईवे पर करीब पर 40 घंटे तक 8 किलोमीटर लंबा जाम लग गया, जिसमें 4000 से ज्यादा वाहन फंस गए थे। इस दौरान 3 लोगों की जान चली गई। 14 जून को केरल के कन्नूर में कोट्टियूर के पास  एक तीन वर्षीय बच्चे की अस्पताल ले जा रही एम्बुलेंस के भीषण ट्रैफिक जाम में फंस जाने से मौत हो गई।

7 जून दिल्ली से आए एक 62 वर्षीय पर्यटक कमल किशोर टंडन की मसूरी में भीषण ट्रैफिक जाम में फंसने के बाद अस्पताल ले जाते समय मौत हो गई। 6 मई उप्र के हमीरपुर जिले के सुमेरपुर थाना क्षेत्र में एक डंपर की टक्कर से बाइक सवार युवक गंभीर रूप से घायल हो गया और राजमार्ग पर तीन घंटे तक जाम फंसे रहने की वजह से उसे वक्त पर उचित उपचार नहीं मिला और इस वजह से उसकी मौत हो गई।

24 अप्रैल हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में मुख्य बाजार देहरा में समय सड़क निर्माण कार्य के कारण लगे भारी जाम ने 75 साल के बुजुर्ग की ज़िंदगी छीन ली। 24 फरवरी कोटा राजस्थान के राष्ट्रीय राजमार्ग-52 पर दरा नाल में लगने वाले भीषण जाम ने एक मासूम की जान ले ली। ये तो बानगी भर है। इस तरह की खबरें अक्सर सुनने, पढ़ने और देखने को मिलती हैं। दो चार दिन के हो हल्ले के बाद गाड़ी पुराने ढर्रे पर दौड़ने लगती है।

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ताजा प्रकरण इंदौर-देवास हाईवे पर 40 घंटे के जाम का है। 40 घंटे का जाम था...कोई सोच भी नहीं सकता कि आज़ादी के 75 साल बाद, 40 किलोमीटर का रास्ता तय करने में 40 घंटे लग सकते हैं। दिल्ली से न्यूयॉर्क जाने में आमतौर पर 16 से 20 घंटे लगते हैं। मतलब जितने में दिल्ली से न्यूयॉर्क की फ्लाइट का आना जाना हो जाए, उतने में इंदौर से देवास नहीं पहुंच सके। इंदौर से देवास तक का रास्ता महज़ 40 किलोमीटर है।

मध्य प्रदेश के हाईकोर्ट ने फटकार लगाते हुए नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी एनएचएआई को इस घटना के लिए जिम्मेदार बताया था। निश्चित रूप से इस दुर्घटना और हजारों लोगों के घंटों जाम में फंसे रहने के मामले में जहां एनएचएआई की तरफ से माफी मांगने की जरूरत थी, वहीं उसने दुर्भाग्यपूर्ण घटना के लिये दोष लोगों पर लगाते हुए असंवेदनशील बयान दे डाला। 30 जून को अदालत में जवाब देते हुए एनएचएआई के वकील ने कहा कि “लोग बिना जरूरी काम के इतनी सुबह घर से बाहर निकलते ही क्यों हैं?” एनएचएआई की इस टिप्पणी ने लोगों में आक्रोश पैदा कर दिया।

उनके इस बयान को सुनकर लोगों को ऐसा लग रहा है कि एनएचएआई घटना की जिम्मेदारी लेने से बच रहा है और घटना के लिए आम लोगों को ही दोषी बताने की कोशिश कर रहा है। यहां तक कि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी एनएचएआई के रुख को कठोर और संवेदनहीन बताया है, जो जमीनी हकीकत को नजरअंदाज करने वाला है। विवाद बढ़ने पर एनएचएआई ने कहा कि,यह टिप्पणी अथॉरिटी के आधिकारिक विचारों को नहीं दर्शाती।

देश में जहां एक तरफ ट्रैफिक की समस्या से निजात पाने के लिए सड़कों, हाई-वेज और एक्सप्रेस-वेज को बनाने का काम जोरों-शोरों पर चल रहा है, वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे शहर भी हैं, जो अंदरूनी ट्रैफिक से काफी ज्यादा परेशान हैं। असल में, ट्रैफिक जाम की समस्या से बड़े ही नहीं बल्कि छोटे शहर भी जूझते हैं। लेकिन बड़े शहरों में यह एक संकट का रूप लेने लगा है।

एक जानकारी के मुताबिक एक घंटे जाम में एक लीटर ईंधन बर्बाद होता है। जितनी ईंधन की खपत होगी, उतना ही ज्यादा सीओटू उत्सर्जन भी होगा, जो पर्यावरण और प्रदूषण के साथ-साथ अर्थव्यवस्था के लिए भी नुकसानदायक होता है। एक अनुमान के अनुसार, महानगरों में और हाईवे पर देश में हर साल लगने वाले ट्रैफिक जाम से हर साल तकरीबन 1.4 लाख करोड़ रुपये तक का नुकसान हो रहा है।  

टॉमटॉम ट्रैफिक इंडेक्स 2024 के अनुसार, देश में कोलकाता का ट्रैफिक सबसे धीमा है। बेंगलुरु ने इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर जगह बनाई है। कमोबेश ऐसे हालात दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, पुणे, चंडीगढ़, गुरुग्राम, लखनऊ, जयपुर, कानपुर, अमृतसर, अहमदाबाद, वाराणसी और देश के अन्य महानगरों और शहरों के हैं।

डाक्टरों के अनुसार, जाम में फंसने वालों को अकसर ब्लड प्रेशर बढ़ने, बर्नआउट, सांस की बीमारी, डिहाईड्रेशन, फीवर, घबराहट, सीने में दर्द आदि बीमारियों का सामना करना पड़ता है। गंभीर मरीज लंबे समय तक जाम में फंस जाए तो उसकी मौत भी हो सकती है। 2022 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि यदि अब जाम में एंबुलेंस फंसी तो इसे अपराध माना जाएगा और मरीज को नुकसान पहुंचाने के तहत कार्रवाई की जाएगी। बावजूद इसके स्थिति में कोई खास फर्क दिखाई नहीं देता।

इसमें दो राय नहीं कि सड़कों के नेटवर्क सुधार से उपभोक्ताओं के समय व धन की बचत हुई है तो उद्योग-व्यापार को भी गति मिली है। लेकिन इससे जुड़ी तमाम विसंगतियां भी सामने आई हैं। सड़कों के त्रुटिपूर्ण डिजाइन व निर्माण में चूक को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। वहीं अकसर बड़ी सड़कों और राजमार्ग परियोजनाओं के निर्माण के दौरान अंतहीन असुविधा भारतीय यात्रियों के लिए रोजमर्रा के अनुभव हैं। अधिकांश साइटों पर निर्माण से जुड़ी, यात्रियों के अनुकूल सर्वोत्तम परंपराओं को अपनाना और यातायात में व्यवधान को कम से कम करना सुनिश्चित नहीं किया जाता है।  

जानकारों के मुताबिक, जाम की समस्या को खत्म करने के लिए सबसे पहले पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ाना होगा। इसके अलावा लोगों को कार पूलिंग के लिए जागरूक करना होगा जिससे सड़क पर वाहनों की संख्या को कम किया जा सके। सड़क पर जाम का एक बड़ा कारण जगह-जगह कट का होना भी है। पैदल और छोटे वाहनों के आवागमन के लिए मुख्य सड़कों के साथ सर्विस रोड बनाए जाने से भी जाम की समस्या से निजात पाया जा सकता है। जिन स्थानों पर घनी आबादी के चलते सर्विस रोड नहीं बनाए जा सकते। वहां एलिवेटेड रोड, अंडरपास और फ्लाईओवर आदि का निर्माण किया जा सकता है।  

जाम से जूझते शहरों में सड़कों की भीड़भाड़ कम करने के लिए केंद्र सरकार सरकार ने राज्यों की राजधानियों समेत दस लाख से अधिक आबादी वाले 94 शहरों में जाम की समस्या के स्थायी समाधान के लिए रिंग रोड, बाईपास समेत अन्य उपाय करने की योजना बनाई है। यूपी में लोगों को जाम की समस्या से राहत दिलाने के लिए पुलों, रिंग रोड और बाईपास का जाल बिछाया जाएगा। इनके निर्माण पर लोक निर्माण विभाग वित्तीय वर्ष 2025-26 में कुल 6124 करोड़ रुपए का बजट खर्च करेगा। सीएम योगी के निर्देश पर पीडब्ल्यूडी की ओर से यह खाका खींचा गया है।

निस्संदेह, देश के शहरों में आए दिन जाम लगने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। शासन-प्रशासन को इसके तार्किक समाधान की दिशा में वैज्ञानिक तरीके से गंभीरता के साथ प्रयास करने चाहिए। जाम की सूचना मिलने पर उसे खुलवाने की तत्काल पहल होनी चाहिए। यात्रियों के लिये तुरंत चिकित्सा सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए। निश्चय ही, इंदौर-देवास हाईवे की घटना दुर्भाग्यपूर्ण है, जिसको लेकर शासन-प्रशासन के साथ ही भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण यानी एनएचएआई को गंभीरता से लेना चाहिए। उन तमाम आशंकाओं को टालना चाहिए जो भविष्य में ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति के कारक बन सकते हैं।

 -डॉ. आशीष वशिष्ठ  

(स्वतंत्र पत्रकार)

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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