भारत की छवि खराब करने की सुनियोजित साजिश थी दिल्ली में हिंसा

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संतोष पाठक । Mar 3 2020 1:04PM

अब यह साफ हो चुका है कि अराजक तत्वों का लक्ष्य दुनियाभर में भारत को बदनाम करना था, भारत की छवि को खराब करना था। साफ नजर आ रहा है कि हिंसा एक त्वरित प्रतिक्रिया नहीं थी, बल्कि सोची-समझी साजिश थी और इसको लेकर लंबे समय से षड्यंत्र किया जा रहा था।

दिल्ली हिंसा का सच सामने आना जरूरी है क्योंकि अगर दिल्ली नहीं बची तो फिर कुछ भी नहीं बचेगा। 1947 में बंटवारे के साथ मिली आजादी के तुरंत बाद देश के कई इलाकों में दंगे भड़क उठे। दंगों और हिंसा की आग में सिर्फ भारत और नए-नए बने पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाके ही नहीं झुलस रहे थे बल्कि इसने देश की राजधानी दिल्ली के भी एक हिस्से को अपनी चपेट में ले लिया था। देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के लिए हालात लगातार चिंताजनक हो रहे थे।

एक तरफ सरदार पटेल को बंटवारे से जुड़ी समस्याओं से जूझना पड़ रहा था। आजाद होने का सपना देख रहे राजे-रजवाड़ों से जूझना पड़ रहा था। पाकिस्तान से आ रहे शरणार्थियों के रहने और खाने-पीने की उचित व्यवस्था के लिए मशक्कत करनी पड़ रही थी और इसी बीच देश की राजधानी दिल्ली में भी दंगे भड़क उठे। हालात लगातार खराब होते जा रहे थे। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल को शांति स्थापित करने और हालात को नियंत्रण में लेने के लिए खुद दिल्ली की सड़कों पर उतरना पड़ा था। बीच में एक दौर ऐसा भी आया जब सरदार पटेल को यह कहना पड़ा कि दिल्ली नहीं बचेगी तो फिर कुछ भी नहीं बचेगा।

  

73 वर्षों बाद 2020 में दिल्ली में जो कुछ भी हुआ, उसने हम सबको शर्मसार कर दिया। विश्व के सबसे ताकतवर लोकतांत्रिक देश का राष्ट्रपति दुनिया के सबसे विशाल लोकतांत्रिक देश के दौरे पर था। जोर-शोर से स्वागत किया जा रहा था, दोस्ती की नई कहानी लिखी जा रही थी। ऐसा पहली बार हो रहा था कि सबसे ताकतवर देश का मुखिया भारत की धरती पर आकर भारत के प्रधानमंत्री की तारीफ में कसीदें पढ़ रहा था, आतंकवाद जैसे मसले पर खुल कर भारत के पक्ष में बयान दे रहा था। आतंकवाद को हर हाल में खत्म करने का दावा कर रहा था और सबसे बड़ी बात कि नागरिकता कानून हो या दिल्ली हिंसा का मसला या फिर कश्मीर, हर मुद्दे पर भारत का समर्थन करते हुए किसी भी घरेलू और आंतरिक मसले पर बोलने से साफ-साफ इंकार कर रहा था। तो दूसरी तरफ दुनिया के सबसे विशाल लोकतांत्रिक देश की राजधानी दिल्ली में दंगाई हिंसा का नंगा नाच कर रहे थे। मार-काट कर रहे थे। मीडिया के साथ-साथ पुलिस को भी निशाना बना रहे थे।

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अब यह साफ हो चुका है कि ऐसे तत्वों का लक्ष्य दुनियाभर में भारत को बदनाम करना था, भारत की छवि को खराब करना था। साफ-साफ नजर आ रहा है कि हिंसा एक त्वरित प्रतिक्रिया नहीं थी, बल्कि सोची-समझी साजिश थी और इसको लेकर लंबे समय से षड्यंत्र किया जा रहा था। आशंका तो यहां तक जताई जा रही है कि इस हिंसा के पीछे विदेशी आतंकी संगठनो का भी हाथ हो सकता है। जिस तरह से दिल्ली में छोटी और बड़ी दोनों तरह की मोबाइल गुलेल मिली है। छतों पर ईंट-पत्थरों का जखीरा मिला है। ईंट पत्थरों के अलावा रॉड, डंडे, पेट्रोल बम, तेजाब यहां तक कि निर्दोष लोगों को मारने के लिए पिस्तौल और तमंचे तक का इस्तेमाल किया गया। उससे यह साफ जाहिर हो रहा है कि हिंसा करने वालों ने कितना जबरदस्त षड्चंत्र रचा था। इन नापाक लोगों का मंसूबा देश की राजधानी दिल्ली को ऐसे समय पर दहलाना था जब अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा को लेकर दुनिया भर के नेताओं और मीडिया की नजरें भारत पर लगी हुई थीं। ये अपने नापाक मंसूबों के साथ निर्दोष लोगों को निशाना बना रहे थे। हत्या-लूटपाट और आगजनी कर रहे थे। इनकी हिम्मत इतनी बढ़ी हुई थी कि ये लोगों के साथ-साथ दंगे को कवर करने वाले मीडियाकर्मियों पर भी निशाना साध रहे थे। पुलिस के आला अफसरों को भी निशाना बना रहे थे। जाहिर तौर पर ये तैयारियां, ये दुस्साहस अपने आप में काफी कुछ बयां करता है।

इसलिए यह जरूरी हो गया है कि इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए। जैसा कि लौह-पुरूष सरदार वल्लभभाई पटेल ने कहा था, जैसा कि देश के पहले उपप्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री सरदार पटेल ने कहा था कि अगर दिल्ली को नहीं बचा पाए तो फिर कुछ नहीं बचेगा। आज जरूरत उसी महापुरूष के उस कथन को याद करने की है।

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दिल्ली के हालातों का जायजा दिल्ली पुलिस के नवनियुक्त कमिश्नर के साथ-साथ देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने भी लिया। दिल्ली हिंसा पर देश के गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों के साथ कई दौर की बैठकें भी कीं। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी दिल्ली हिंसा के पूरे मामले की विस्तृत रिपोर्ट दी गई है। दिल्ली में बैठे तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं ने हिंसा के वीभत्स दौर को देखा। दिल्ली उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक, देश की अदालतों ने दिल्ली के हालात पर गंभीर चिंता जताई। मीडिया ने बहुत करीब से दंगों की आंच को झेला।

जाहिर है कि भारतीय लोकतंत्र का हर स्तंभ दिल्ली के हालात से दुखी है और सबको यह मालूम है कि यह एक गहरी साजिश थी, षड्यंत्र था और इसलिए अब सबको मिल कर कई स्तरों पर एक साथ काम करना होगा। एक तरफ दिल्ली में शांति बनाए रखनी होगी, अफवाहों को फैलने से रोकना होगा तो साथ ही दूसरी तरफ दिल्ली दंगों के असली ष़ड्यंत्रकारियों को जेल के सीखचों के पीछे पहुंचाना होगा और यह सख्त संदेश देश के दुश्मनों को देना होगा कि भारत दिल्ली जैसी हिंसा को बिल्कुल सहन नहीं करेगा। अब वक्त सच सामने लाने का है। दुश्मन को सख्त संदेश देने का है और सख्त एक्शन लेने का है।

  

-संतोष पाठक

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