क्या है नागरिकता (संशोधन) विधेयक ? क्यों हो रहा है इसका विरोध ?

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कांग्रेस का कहना है कि यह 1985 के ‘ऐतिहासिक असम करार’ के प्रावधानों का उल्लंघन है जिसके मुताबिक 1971 के बाद बांग्लादेश से आए सभी अवैध विदेशी नागरिकों को वहां से निर्वासित किया जाएगा भले ही उनका धर्म कुछ भी हो।

केंद्रीय मंत्रिमंडल की ओर से बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के गैर मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दिये जाने के बाद इसका लोकसभा में पारित होना तय हो गया है। हालांकि विधेयक की असली परीक्षा राज्यसभा में होगी जहां राजग अल्पमत में है। और जब इस विधेयक पर भाजपा को अपने सहयोगी दलों शिवसेना, जदयू, लोजपा आदि का ही समर्थन प्राप्त नहीं है साथ ही असम गण परिषद ने इस विधेयक के विरोध में भाजपा को दिया गया समर्थन वापस ले लिया है तो यह तय है कि संसद के ऊपरी सदन में इस विधेयक की राह बाधित होगी ही। यह विधेयक 2016 में पहली बार पेश किया गया था लेकिन सरकार का कहना है कि इसका मसौदा दोबारा से तैयार किया गया है। भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनावों में इसका वायदा किया था।

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आखिर पूरा मामला है क्या ?

नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन करने के लिए लोकसभा में नागरिकता विधेयक लाया गया था। इस विधेयक के जरिये अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदायों- हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैन, पारसियों और ईसाइयों को बिना समुचित दस्तावेज के भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव रखा है। इसमें भारत में उनके निवास के समय को 12 वर्ष के बजाय छह वर्ष करने का प्रावधान है। यानी अब ये शरणार्थी 6 साल बाद ही भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। इस बिल के तहत सरकार अवैध प्रवासियों की परिभाषा बदलने के प्रयास में है। 

वैसे देखा जाये तो एनआरसी और नागरिकता संशोधन बिल एक-दूसरे के विरोधाभासी हैं क्योंकि जहां एक ओर नागरिकता संशोधन विधेयक में भारतीय जनता पार्टी धर्म के आधार पर शरणार्थियों को नागरिकता देने पर विचार कर रही हैं वहीं एनआरसी में धर्म के आधार पर शरणार्थियों को लेकर कोई भेदभाव नहीं है। कांग्रेस, शिवसेना, जदयू, असम गण परिषद और तृणमूल कांग्रेस इस विधेयक के विरोध में हैं। कांग्रेस का कहना है कि यह 1985 के ‘ऐतिहासिक असम करार’ के प्रावधानों का उल्लंघन है जिसके मुताबिक 1971 के बाद बांग्लादेश से आए सभी अवैध विदेशी नागरिकों को वहां से निर्वासित किया जाएगा भले ही उनका धर्म कुछ भी हो।


विवाद क्यों उठा ? 

दरअसल मामले ने तूल तब पकड़ा जब गत सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने असम दौरे के दौरान लोगों को भरोसा दिलाया कि एनआरसी से कोई भी असल नागरिक नहीं छूटेगा। उन्होंने कहा कि अतीत में हुए अन्याय को दूर करने के लिए जल्द ही संसद में नागरिकता विधेयक को पारित कराया जायेगा। मोदी ने कालीनगर में ‘विजय संकल्प समावेश रैली’ को संबोधित करते हुए कहा कि वह एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) के दौरान कई लोगों को हुई दिक्कतों और समस्याओं के बारे में जानते हैं।

उन्होंने पूर्वोत्तर में भाजपा की लोकसभा चुनाव प्रचार मुहिम की शुरूआत करते हुए कहा, ‘‘मैं आपको आश्वासन देता हूं कि किसी भी वास्तविक भारतीय नागरिक के साथ अन्याय नहीं होगा। दशकों से लटकी समस्या का अब अंत होने वाला है और यह आप लोगों के त्याग के कारण संभव हो पाया है। यह सुनिश्चित करने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं कि सभी लोगों को सुना जाए और वे प्रक्रिया में कम से कम कठिनाई का सामना करें।’’ मोदी ने कहा था, ''नागरिक (संशोधन) विधेयक, 2016 पर भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार आगे बढ़ रही है।'' उन्होंने कहा, ‘‘यह (विधेयक) लोगों की जिंदगी और भावनाओं से जुड़ा है। यह किसी के फायदे के लिए नहीं है बल्कि अतीत में हुए अन्याय का प्रायश्चित करने के लिए है।’’ प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने 35 वर्षों से ‘‘लटके’’ असम समझौते की धारा छह को लागू करने का निर्णय लिया है।

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भाजपा का तर्क

असम के वरिष्ठ मंत्री और भाजपा नेता हिमंत बिस्व शर्मा के मुताबिक अगर नागरिकता (संशोधन) विधेयक पारित नहीं हुआ तो अगले पांच साल में राज्य के हिंदू अल्पसंख्यक बन जायेंगे। शर्मा ने कहा कि यह उन लोगों के लिये फायदेमंद होगा जो चाहते हैं कि असम दूसरा कश्मीर बन जाये। राज्य के वित्त मंत्री ने कहा, ‘‘मुझे पूरा यकीन है कि अगर यह विधेयक पारित नहीं हुआ तो असमी हिंदू महज पांच साल में ही अल्पसंख्यक बन जायेंगे। यह उन तत्वों के लिये फायदेमंद होगा जो चाहते हैं कि असम दूसरा कश्मीर बन जाये।’’ 

जेपीसी में भी हुआ बवाल

नागरिकता संशोधन विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की अंतिम रिपोर्ट में कम से कम चार विपक्षी दलों की सहमति नहीं है और इस समिति में उनके प्रतिनिधियों ने रिपोर्ट में अपना विरोध दर्ज कराया है। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, माकपा और समाजवादी पार्टी के सदस्यों ने इस विधेयक पर जेपीसी रिपोर्ट में अपनी असहमति दर्ज करायी है। असहमति भरे नोट में से एक में कहा गया है, ‘‘नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 पर संयुक्त समिति के सदस्य के तौर पर हम कह सकते हैं कि अंतिम रिपोर्ट में समिति में आम सहमति नहीं थी। हम इस विधेयक के विरुद्ध हैं क्योंकि यह असम में जातीय विभाजन को सतह पर लाता है।’’ जेपीसी रिपोर्ट को बहुमत से तैयार किया गया है क्योंकि विपक्षी सदस्यों ने धार्मिक आधार पर नागरिकता देने का विरोध किया था और कहा था कि यह संविधान के खिलाफ है।


शिवसेना भी विरोध में

भारतीय जनता पार्टी के साथ बढ़ती कटुता के बीच उसकी सहयोगी शिवसेना ने कहा है कि वह संसद में नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध करेगी। पार्टी नेता संजय राउत ने एक बयान में कहा कि असम गण परिषद ने शिवसेना से इस कानून का विरोध करने की अपील की थी जिसके बाद यह निर्णय लिया गया। शिवसेना का कहना है कि असमी लोगों के सांस्कृतिक, सामाजिक एवं भाषाई पहचान की सुरक्षा के लिए असम संधि में किये गये प्रयासों को इस प्रस्तावित कानून से ठेस पहुंचेगा।

भाजपा को हराने का आह्वान

असम के दो महत्वपूर्ण संगठनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणी पर कड़ी प्रतिक्रिया दी और राज्य के लोगों से आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने का अनुरोध किया। मोदी ने घोषणा की कि विवादित नागरिकता कानून 2016 संसद में जल्द ही पारित किया जाएगा। ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) और कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) ने विधेयक को ‘‘अलोकतांत्रिक’’ और ‘‘असंवैधानिक’’ बताते हुए कहा कि अगर विधेयक संसद में पारित किया गया तो वह कानूनी लड़ाई शुरू करेगा। उन्होंने कहा, ''मोदी ने साफ कह दिया कि वह 2019 का संसदीय चुनाव भारत के लिए नहीं बल्कि विदेशियों के लिए लड़ेंगे।’’ 

दूसरी ओर कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर असम को धार्मिक और भाषाई आधार पर बांटने की कोशिश करने का आरोप लगाया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रिपुन बोरा का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी यह नहीं जानती कि वह क्या चाहती है क्योंकि असम समझौता और नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 एक साथ लागू नहीं किया जा सकता है। कांग्रेस का कहना है कि मोदी हिंदू बांग्लादेशियों को केवल वोट बैंक की राजनीति के लिए असम लाना चाहते हैं।

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बहरहाल, मुश्किल वाली बात यह है कि असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक के खिलाफ लोगों का बड़ा तबका प्रदर्शन कर रहा है। पूर्वोत्तर के आठ प्रभावशाली छात्र निकायों के अलावा असम के 40 से ज्यादा सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों ने नागरिकता अधिनियम में संशोधन करने के सरकार के कदम के खिलाफ मंगलवार को बंद बुलाया है। यही नहीं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल असम गण परिषद ने भाजपा का साथ छोड़ दिया है और कहा है कि हमने इस विधेयक को पारित नहीं कराने के लिए केंद्र को मनाने के लिए आखिरी कोशिश की लेकिन कुछ काम नहीं आया। अब सरकार को कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए खास ध्यान देना होगा क्योंकि पूर्वोत्तर का इलाका बहुत समय बाद शांत हुआ है। लेकिन साथ ही यह भी देखना है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र के आबादी समीकरणों को बिगाड़ने के जो प्रयास पूर्व में किये गये उसको सुधारा जाये।

-नीरज कुमार दुबे

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