दिल्ली को दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बनाने का श्रेय किसको मिलना चाहिए?

delhi pollution

दिल्ली में वायु प्रदूषण के आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष दीपावली के दिन गुरुवार को सुबह 9 बजे दिल्ली का एक्यूआई लेवल 339 था और यह आतिशबाजी शुरू होने से पहले का आंकड़ा है, वहीं शाम 6 बजे एक्यूआई लेवल बढ़कर 387 तक पहुंच गया था।

हर वर्ष की तरह हमारे देश की राजधानी दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र पावन पर्व दीपावली के बाद से ही कुछ लोगों की लापरवाही के चलते एक बार फिर दमघोंटू जहरीली आबोहवा के चलते गैस चैंबर बन कर हमारा स्वागत कर रहा है। धरातल पर पिछले कई वर्षों से निरंतर बन रहे भयावह हालात देखकर ऐसा लगता है कि हम लोग अपने व अपनों के अनमोल जीवन को स्वस्थ व सुरक्षित रखने के प्रति कितने ज्यादा लापरवाह हैं। जिस तरह की स्थिति बार-बार उत्पन्न हो रही है उसे देखकर लगता है कि दिल्ली व एनसीआर वासियों को जल्द से जल्द इस प्रकार के जहरीले प्रदूषण के साथ "भगवान भरोसे होकर" रहना सीखना होगा, क्योंकि कुछ लोगों की लापरवाही व सरकारी सिस्टम के द्वारा प्रदूषण के स्थाई निदान के प्रति निरंतर बरते जा रहे उदासीन रवैये के चलते लगता है कि प्रदूषण अब इस क्षेत्रवासियों की नियति बन गया है। हालांकि इस क्षेत्र के प्रदूषण के आंकड़ों की बात करें तो उसके अनुसार आबोहवा को खराब करने में मात्र एक आतिशबाजी का ही योगदान नहीं है, इससे तो दीपावली के आसपास के हफ्ते या दो हफ्ते की समस्या ही उत्पन्न होती है बाकी पूरे वर्ष भी इस क्षेत्र में वायु की गुणवत्ता ठीक नहीं रहती है, बल्कि कटु सत्य यह है कि इस क्षेत्र में पहले से ही प्रदूषण फैलाने वाले बहुत सारे घातक कारक हमारे रोजमर्रा के जीवन में मौजूद हैं, जिनको नियंत्रित करने में हमारी सरकार व सिस्टम अभी तक पूर्ण रूप से विफल रही है, जिसकी वजह से इस क्षेत्र में वायु प्रदूषण की स्थिति पहले से ही चिंताजनक बनी रहती है। 

इसे भी पढ़ें: यमुना की दुर्दशा की कहानी: हजारों करोड़ रुपए खर्च होने के बाद भी क्यों काला पानी और जहरीला झाग तैरता नजर आता है

इस स्थिति के चलते इस क्षेत्र में पिछ़ले कुछ वर्षों से दीपावली की आतिशबाजी के बाद वायु प्रदूषण अपने खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है, जिसके बाद आम जनमानस, सरकार व सिस्टम में हर तरफ हायतौबा मचती है और वायु प्रदूषण को तत्काल कम करने के लिए अस्थाई विकल्पों या जुगाड़बाजी के लिए युद्ध स्तर पर कार्य शुरू होता है, लेकिन जैसे ही वायु प्रदूषण से कुछ राहत मिलती है, हम व हमारा सिस्टम चैन की नींद सो जाता है और प्रदूषण से बचाव के स्थाई उपायों को धरातल पर लाना भूल जाता है। साथ ही आम जनजीवन भी रोजमर्रा के उसी पुराने लापरवाही पूर्ण ढर्रे पर आकर एक बार फिर से प्रदूषण फैलाने में लग जाता है।

दिल्ली में वायु प्रदूषण के आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष दीपावली के दिन गुरुवार को सुबह 9 बजे दिल्ली का एक्यूआई लेवल 339 था और यह आतिशबाजी शुरू होने से पहले का आंकड़ा है, वहीं शाम 6 बजे एक्यूआई लेवल बढ़कर 387 तक पहुंच गया था। लेकिन कुछ लोगों के द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय, एनजीटी व सरकार के आतिशबाजी के संदर्भ में दिये गये सभी दिशानिर्देश व आदेशों को ठेंगा दिखाते हुए जमकर आतिशबाजी की गयी थी, जिसके बाद रात 11 बजे दिल्ली का एक्यूआई लेवल 388 रिकॉर्ड किया गया था, आतिशबाजी का प्रभाव शुक्रवार की सुबह एक्यूआई लेवल के बेहद गंभीर स्तर पर पहुंचने के साथ प्रदूषण की घने कोहरे की चादर के रूप में देखने को मिला था। हालांकि इस वर्ष लोगों के जागरूक होने के चलते बहुत सारे ऐसे भी लोग थे जिन्होंने दीपावली के पर्व पर आतिशबाजी ना करके वायु व ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रण करने में अपना अनमोल योगदान भी दिया था, लेकिन उन नादान लोगों का क्या जो अपने क्षणिक राजनीतिक स्वार्थ को पूरा करने के लिए आतिशबाजी करने को भी धर्म से जोड़कर भोलेभाले लोगों को उकसाने का कार्य कर रहे हैं।

इस वर्ष के आंकड़ों के अनुसार दीपावली से अगले दिन शुक्रवार की सुबह में देश की राजधानी दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) लेवल 524 था, सुबह दिल्ली के आईटीओ पर वायु की गुणवत्ता बेहद खराब होकर अपने खतरनाक स्तर पर थी, वहीं दिल्ली के ओखला, पूसा इलाके, मंदिर मार्ग, मेजर ध्यानचंद स्टेडियम, आनंद विहार इलाकों में एक्यूआई लेवल बेहद घातक 999 रिकॉर्ड किया गया था, सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि प्रदूषण से बचाव के तमाम दावों व प्रयास के बाद भी दिल्ली में प्रदूषण के उच्चतम स्तर का 5 साल का रिकॉर्ड टूट गया है। यहां आपको यह भी बता दें कि दिल्ली में दीपावली की रात स्थिति इतनी भयावह हो गई थी कि आनंद विहार में सुबह एक्यूआई लेवल 999 था, जबकि यहां से कुछ ही दूरी पर ही वायु प्रदूषण को कम करने वाला स्मॉग टावर भी लगा हुआ है, हालांकि दावा यह किया जाता है कि स्मॉग टावर अपने एक वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र की वायु को शुद्ध करेगा, उसके पश्चात भी इस क्षेत्र में यह स्थिति होना भयावह है। वहीं अक्षरधाम इलाके में एक्यूआई 810 के आसपास रहा था। वहीं एनसीआर के विभिन्न शहरों में फरीदाबाद में एक्यूआई 454, ग्रेटर नोएडा में एक्यूआई 410, गाजियाबाद में एक्यूआई 438, गुरुग्राम में एक्यूआई 473 और नोएडा में एक्यूआई 456 दर्ज होकर अपनी "गंभीर श्रेणी" को दिखा रहा था।

इसे भी पढ़ें: सरकारें प्रदूषण पर आरोप-प्रत्यारोप करने की बजाय इस समस्या का हल ढूँढ़ें

वहीं सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) के द्वारा शनिवार को जारी किये गये आंकड़ों के अनुसार दीपावली के दो दिन बाद भी दिल्ली की वायु गुणवत्ता सूचकांक "बेहद गंभीर" श्रेणी में बना हुआ था, जिसके अनुसार एक्यूआई लेवल 533 दर्ज किया गया है। शनिवार को कनॉट प्लेस और जंतर-मंतर पर जीवन के लिए घातक पीएम10 का स्तर क्रमश: 654 और 382 रहा। एएनआई न्यूज ऐजेंसी के अनुसार पीएम 2.5 का स्तर कनॉट प्लेस में 628, जंतर-मंतर के पास 341 और आईटीओ के पास 374 दर्ज किया गया था। जबकि कनॉट प्लेस में देश का पहला स्मॉग टावर लगाया गया था उसके बाद भी यह स्थिति होना सोचने पर मजबूर करता है। लेकिन आमजन को चिंतित करने वाली बात यह है कि दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के चलते दीपावली से चार-पांच दिन बाद भी सांस लेना मुश्किल बना हुआ है, हवा की गुणवत्ता "गंभीर श्रेणी" में बनी हुई है। दीपावली के तीसरे दिन यानी रविवार की सुबह दिल्ली के अधिकतर इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एक्यूआई लेवल 450 के करीब बना हुआ है, वहीं गाजियाबाद के लोनी में एक्यूआई लेवल 664 और नोएडा के सेक्टर 62 में एक्यूआई 547, ग्रेटर नोएडा में एक्यूआई लेवल 400 दर्ज किया गया है। 

दिल्ली एनसीआर के वायु प्रदूषण के यह आंकड़े लोगों के स्वास्थ्य के मद्देनजर बेहद चिंता का विषय हैं। वायु प्रदूषण का यह लेवल इस क्षेत्र में बेहद जहरीली और दमघोंटू हो चुकी आबोहवा होने का स्पष्ट संकेत दे रहा है और दिल्ली को दुनिया में सबसे अधिक प्रदूषित शहर होने का प्रमाणपत्र भी दिला रहा है। हमारे लिए शर्मनाक बात यह है कि दिल्ली दुनिया में सबसे प्रदूषित वायु गुणवत्ता वाला शहर बन गया है, यहां पर वायु प्रदूषण के चलते दीपावली के आसपास लंबे समय तक गैस चैंबर जैसे हालात बने रहते हैं। इस क्षेत्र में विभिन्न कारकों की वजह से प्रदूषण बहुत तेजी के साथ दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है, हमारी सरकार व सिस्टम वायु प्रदूषण रोकने के नाम पर छोटे-मोटे तात्कालिक उपाय करके जनता के टैक्स के करोड़ों रुपये खर्च करके, उसके बाद अस्थाई रूप से प्रदूषण नियंत्रण होने के बाद इस सफलता का श्रेय लेने के लिए सरकार व सिस्टम जनता के करोड़ों रुपये विज्ञापनों पर खर्च करके अपनी पीठ समाचारपत्रों व न्यूज चैनलों के माध्यम से लगातार थप-थपाती रहती हैं। इस गंभीर समस्या का स्थाई निदान करने की जगह सरकार व सिस्टम जहरीले वायु प्रदूषण के लिए कभी पड़ोसी राज्यों के किसानों के द्वारा पराली जलाने को जिम्मेदार ठहराता है, तो कभी वह दीपावली के दिन होने वाली आतिशबाजी को जिम्मेदार ठहरा कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेता है। लेकिन मैं आपकी याद ताजा कर दूं कि पिछ़ले वर्ष अक्टूबर में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने जानकारी दी थी कि वर्त्तमान में शहर में लगभग 95 प्रतिशत प्रदूषण धूल, निर्माण तथा जैव ईंधन जलने जैसे विभिन्न प्रकार के स्थानीय कारकों की वजह से है और वायु प्रदूषण में पराली जलने का हिस्सा लगभग 4 फीसदी मात्र है।

वैसे भी दिल्ली-एनसीआर के इस क्षेत्र में रोजाना तो आतिशबाजी नहीं की जाती है, लेकिन फिर भी भ्रष्टाचार व अन्य विभिन्न कारणों के चलते प्रदूषण फैलाने वाले मुख्य कारकों की अनदेखी करके, सरकार व सिस्टम का सारा ध्यान वायु प्रदूषण की जिम्मेदारी दूसरों के मत्थे थोपने की रहती है और इस उद्देश्य की पूर्ति के मद्देनजर ही हर वर्ष किसानों के द्वारा पराली जलाने व दीपावली पर आतिशबाजी चलाने का बहाना लेकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया जाता है। अब इस भयावह हालात में सभी लोगों के मन में यह प्रश्न बार-बार उठता है कि आखिर इस क्षेत्र में जहरीला वायु प्रदूषण किस वजह से होता है। आपको बता दें कि आंकड़ों के अनुसार इस क्षेत्र में वायु प्रदूषण करने वाले मुख्य कारक निम्न हैं, इसमें गाड़ियों के धुएं की वजह से करीब 28 फीसदी, धूल-मिट्टी के कारण करीब 17 फीसदी, कारखाने की गंदगी के कारण करीब 30 फीसदी, खुले में कचरा जलाने के कारण 4 फीसदी, डीजल जनरेटर की वजह से 10 फीसदी और पावर प्लांट के कारण 11 फीसदी प्रदूषण होता है। वहीं वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य और आर्थिक प्रभाव पर ‘लैंसेट प्लेनेटरी हेल्थ’ में प्रकाशित एक वैज्ञानिक पत्र के मुताबिक वर्ष 2019 में भारत में वायु प्रदूषण की वजह से करीब 17 लाख लोगों की मौत हुई थी, यह देश में हुई कुल मौतों का 17.8 फीसदी है, वहीं इन मौतों के कारण देश को 2.6 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान हुआ था जो जीडीपी का 1.4 फीसदी है, इससे पहले 2017 में यह आंकड़ा 12 लाख 40 हजार था।

इसे भी पढ़ें: मोदी और केजरीवाल की अपीलों का कितना असर है यह पटाखेबाजों ने दिखा दिया

विचारणीय बात यह है कि आज देश में वायु प्रदूषण के चलते हर छोटे बड़े शहर की आबोहवा में गंभीर बीमारियों को जन्म देने वाले विषैले प्रदूषक तत्वों का भंडार मंडरा रहा है, अब तो हमारे देश में भी इसकी वजह से लोग बेमौत काल का ग्रास बनने लगे हैं और फिर भी हम लोग तमाशबीन बनकर सारी जिम्मेदारी सरकार व सिस्टम के भरोसे छोड़कर आराम से हाथ पर हाथ रखकर बैठे हैं, अब वह समय आ गया है जब हम लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक होकर हर तरह के प्रदूषण से निदान के लिए दूरगामी रणनीति बनाकर धरातल पर मिलजुल कर स्थाई पहल करनी होगी।

आज बहुत सारे लोग अपनी जिम्मेदारी व नैतिक दायित्वों का सही ढंग से निर्वहन करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं, जबकि सभी लोग यह भलीभांति जानते हैं कि स्वच्छ वायु जल व धरती जीवन के लिए बेहद जरूरी है। स्वच्छ वायु शरीर के लिए हर पल बेहद आवश्यक है, फिर भी हम पिछले वर्षों की स्थिति से कोई सबक ना सीखकर उसको अपने ही हाथों से आतिशबाजी जलाकर प्रदूषित करके खतरनाक स्तर तक जहरीली बना देते हैं। जबकि हम सभी यह अच्छी तरह से जानते हैं कि हम स्वच्छ वायु का बंदोबस्त करने में अब दिन-प्रतिदिन नाकाम होते जा रहे हैं, फिर भी हम सारी जिम्मेदारी सरकार व सिस्टम पर डालकर बेफिक्र होकर अपने घरों में बैठें हैं। अधिकांश लोग पर्यावरण संरक्षण के लिए अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने के लिए तैयार नहीं हैं, जो आज के माहौल में अपने व दूसरों के जीवन से खिलवाड़ है।

जहरीले वायु प्रदूषण के गंभीर प्रकोप से आजकल दिल्ली व एनसीआर के निवासी एक बार फिर से बहुत ज्यादा परेशान हैं। लोगों के खुद के द्वारा बुलाई गयी आफत को किसानों के द्वारा पराली जलाने का धुआं बताकर जिम्मेदारी से भागने का लगातार प्रयास जारी है, पराली जलाने व आतिशबाजी चलाने को वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहरा कर सिस्टम अपने कदम की इतिश्री करने के लिए पूर्ण रूप से सजग है। वैसे अच्छी बात यह है कि अबकी बार इस क्षेत्र में ठंड का फिलहाल कोई प्रकोप नहीं है, हवा भी निरंतर चल रही है, मौसम की हालिया स्थिति देखकर लगता है कि इस क्षेत्र के निवासियों को इस बार वायु प्रदूषण से जल्द राहत मिल जायेगी। लेकिन अब विचारणीय यह है कि क्या सरकार व सिस्टम चलाने वाले लोग बिना किसी पक्षपात व एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डाले बिना निष्पक्ष रूप से इस हालात पर मंथन करके इस गंभीर समस्या के स्थाई समाधान के लिए जल्द से जल्द धरातल पर प्रयास करेंगे, क्योंकि अब वायु प्रदूषण के बेहद गंभीर स्तर पर पहुंचने के कारण एनसीआर के अधिकांश शहरों की हालत दिन-प्रतिदिन तेजी से खराब होती जा रही है। दिल्ली, फरीदाबाद, पलवल, गुरुग्राम, सोनीपत, गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा आदि शहरों का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) आये दिन विभिन्न कारकों से चिंताजनक स्तर पर पहुंच जाता है, जोकि मानव, जीव-जंतु व वृक्षों आदि किसी भी प्रकार के जीवन के लिए बिल्कुल भी उचित नहीं है। जब भी इस क्षेत्र में हवा चलनी बंद हो जाती है, तब प्रदूषण के कारक सभी तत्व इकट्ठा होकर वायु गुणवत्ता के एक्यूआई को "गंभीर" श्रेणी में पहुंचा देते हैं।

प्रदूषण को लेकर सर्वोच्च न्यायालय और एनजीटी की बार-बार फटकार के बाद भी हमारे देश के सिस्टम की हालात देखकर लगता है कि उसको धरातल की जगह कागजों में प्रदूषण नियंत्रित करने की बेहद चिंता है, वह लंबे समय बीतने के बाद भी प्रदूषण को कम करने के लिए कोई ठोस कारगर दूरगामी स्थाई प्रयास धरातल पर नहीं कर पा रहा है। हमारे सिस्टम की कार्यप्रणाली देखकर ऐसा लगता है कि उसको प्रदूषण की कोई विशेष चिंता नहीं है, उनके लिए अब हर वर्ष होने वाला वायु प्रदूषण एक आम बात हो गयी है। पिछले कई वर्षों से जब भी वायु प्रदूषण के लिए हमारे सरकारी सिस्टम को सर्वोच्च न्यायालय व एनजीटी फटकार लगाता है, तो हमारे देश का सिस्टम वायु प्रदूषण कम करने के लिए तरह-तरह के आईडिया न्यायालय के सामने रखकर अपनी जान बचाता है, लेकिन अफसोस की बात यह है कि समय व्यतीत होने के बाद धरातल पर वही "ढाक के तीन पात" वाली स्थिति बरकरार रहती है। प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए फाइलों के अतिरिक्त कहीं कोई ठोस विशेष कार्य सिस्टम के द्वारा दूरगामी नीति के आधार पर नहीं होता है। अब तो आम जनमानस के लिए भी विचारणीय तथ्य यह है कि उसको इस जहरीली दमघोंटू आबोहवा से स्थाई रूप से मुक्ति कब तक मिलेगी ?

-दीपक कुमार त्यागी

(स्वतंत्र पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक)

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़