राहत के नाम पर जीएसटी मुसीबत तो नहीं बढ़ाएगा?

आशीष वशिष्ठ । Mar 31 2017 11:17AM

राज्यों ने अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए कतिपय ऐसे निर्णय करवा लिए जिनके कारण कर प्रक्रिया सरल होने की जगह और जटिल हो जाएगी जिससे कर चोरी तथा भ्रष्टाचार की गुंजाइश बढ़ना तय है।

जीएसटी संबंधी छोटे−छोटे प्रावधानों को कानूनी जामा पहनाने के लिए मोदी सरकार ने उन्हें वित्त विधेयक का रूप दे दिया। अब लोकसभा की स्वीकृति मिलते ही उन्हें कानून की हैसियत मिल गयी। हालांकि सरकार की इस रणनीति से राज्यसभा की उपेक्षा का प्रश्न उठ खड़ा हुआ है। देश में ऐतिहासिक कर सुधार व्यवस्था 'जीएसटी' को लागू करने का मार्ग प्रशस्त करते हुए लोकसभा ने बुधवार को वस्तु एवं सेवा कर से जुड़े चार विधेयकों को मंजूरी दे दी तथा सरकार ने आश्वस्त किया कि नयी कर प्रणाली में उपभोक्ताओं और राज्यों के हितों को पूरी तरह से सुरक्षित रखने के साथ ही कृषि पर कर नहीं लगाया गया है।

बजट सत्र में ही जीएसटी से जुड़े तमाम विधेयकों को पारित करवाने की हड़बड़ी के पीछे दरअसल 1 जुलाई से उसे लागू करवाने की योजना है ताकि 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले आजादी के बाद का ये सबसे बड़ा कर सुधार मोदी सरकार की उपलब्धि बन सके। लेकिन जीएसटी के बारे में जो खबरें छन−छनकर बाहर आ रही हैं उनके अनुसार आसमान से टपक कर खजूर पर अटकने जैसी स्थिति उत्पन्न होने का खतरा भी व्यापार जगत पर मंडराने लगा है। 

व्यवसायी इस बात को लेकर सशंकित हैं कि जीएसटी आने के बाद उनकी लिखा−पढ़ी और बढ़ जाएगी। चूंकि नई व्यवस्था के बाद भी केन्द्र और राज्य दोनों को कर देना पड़ेगा तथा संबंधित प्रपत्र दाखिल करने की प्रक्रिया और व्यापक हो जाएगी इस कारण व्यापार जगत में उगलत−निगलत पीर घनेरी वाली स्थिति बनी हुई है। जब जीएसटी की चर्चा शुरू हुई थी तब ये आश्वासन दिया गया था कि पूरे देश में एक जैसी टैक्स दरें होंगी तथा प्रदेशों में कार्यरत वाणिज्य कर विभाग की भ्रष्ट व्यवस्था से व्यापारियों और उद्योगपतियों को राहत मिल जाएगी किन्तु जैसे−जैसे जीएसटी के नित नये प्रावधान सामने आ रहे हैं उन्हें देखकर तो ये डर सताने लगा है कि मुसीबत नये रूप में दरवाजे पर दस्तक दे रही है। हालांकि असलियत तो जीएसटी के पूरी तरह लागू होने के उपरांत ही सामने आएगी किन्तु ये कहना गलत नहीं होगा कि राज्यों ने अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए कतिपय ऐसे निर्णय करवा लिए जिनके कारण कर प्रक्रिया सरल होने की जगह और जटिल हो जाएगी जिससे कर चोरी तथा भ्रष्टाचार की गुंजाइश बढ़ना तय है।

क्या होगा, क्या नहीं ये सब अनिश्चित है जिसकी वजह से व्यापार और उद्योग जगत भविष्य को लेकर तमाम आशंका से ग्रसित है। हालांकि सरकारी अमला अपने स्तर पर स्पष्टीकरण देता फिर रहा है कि घबराने की कोई बात नहीं है, वहीं कर सलाहकार भी व्यापारियों को जीएसटी की पेचीदगियां समझाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन रह−रहकर आने वाली जानकारियों से उत्पन्न हो रही भ्रम की स्थिति के चलते उद्योग−व्यापार जगत फूंक−फूंककर कदम रख रहा है। सबसे बड़ी आशंका ये बाजार में व्याप्त है कि जीएसटी अपने साथ महंगाई लेकर आएगा। यदि सरकार का दावा मान लें कि इससे बिना बिल के होने वाला व्यापार रुक जाएगा तब हर बिक्री पर टैक्स का आरोपण अनिवार्य होगा जो निश्चित रूप से मूल्य वृद्धि की वजह बनेगी। यद्यपि जीएसटी की दरें काफी वाजिब रखी गई हैं किन्तु इसके कारण अगर मूल्य वृद्धि हुई तो जनता के बीच इसका अच्छा संदेश नहीं जाएगा जो लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार के लिए मुसीबत बन सकता है।

क्या आपने कभी सोचा है कि जो सामान आप खरीदते हैं उस पर आप कितना टैक्स भरते हैं। और कितने तरह के टैक्स भरते हैं। शायद नहीं। जानेंगे तो शायद आप हैरान रह जाएंगे। आप तक पहुंचने से पहले सामान पहले फैक्ट्री में बनता है। फैक्ट्री से निकलते ही इस पर सबसे पहले लगती है एक्साइज ड्यूटी। कई मामलों में एडिशनल एक्साइज ड्यूटी भी लगती है। इसके अलावा आपके टैक्स का एक बड़ा हिस्सा होता है सर्विस टैक्स। अगर रेस्तरां में खाना खाते हैं, मोबाइल बिल मिलता है या क्रेडिट कार्ड का बिल आता है, तो हर जगह ये लगाया जाता है जो 14.5 फीसदी तक होता है। जैसे ही सामान एक राज्य से दूसरे राज्य में जाता है तो सबसे पहले देना होता है एंट्री टैक्स। इसके अलावा अलग−अलग मामलों में अलग−अलग सेस भी लगता है। एंट्री टैक्स के बाद उस राज्य में वैट यानी सेल्स टैक्स लगता है। जो अलग−अलग राज्य में अलग−अलग होता है। इसके अलावा अगर इन सामान का नाता रिश्ता अगर एंटरटेनमेंट से है तो एंटरटेनमेंट या लग्जरी टैक्स भी लगता है। साथ ही कई मामलों में परचेज टैक्स भी देना होता है।

टैक्स का सिलसिला यहीं नहीं रुकता। अभी तो हमने सिर्फ वो टैक्स बताए हैं जो बड़े−बड़े हैं। बल्कि कई टैक्स तो ऐसे हैं जो हमने गिनाए ही नहीं। एक रिपोर्ट के मुताबिक अलग−अलग 18 टैक्स आमतौर पर लगते हैं। लेकिन जीएसटी आने के बाद ही ये सारे टैक्स एक झटके में खत्म हो जाएंगे। और इसकी जगह लगेगा सिर्फ और सिर्फ एक टैक्स जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विस टैक्स। फिलहाल उपभोक्ता अलग−अलग सामान पर 30 से 35 फीसदी टैक्स देते हैं। जीएसटी में इन सभी टैक्सेज को एक साथ ला कर 17 या 18 फीसदी कर दिया जायेगा। इसके बाद सभी राज्यों में सभी सामान एक कीमत पर मिलेगा। जीएसटी लागू होने के बाद सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी, एडीशनल एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स, एडीशनल कस्टम ड्यूटी, स्पेशल एडिशनल ड्यूटी ऑफ कस्टम, वैट, सेल्स टैक्स, सेंट्रल सेल्स टैक्स, मनोरंजन टैक्स, ऑक्ट्रॉय एंडी एंट्री टैक्स, परचेज टैक्स, लक्जरी टैक्स खत्म हो जायेंगे। जीएसटी व्यवस्था में चार दरें 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत तय की गयी है। लग्जरी कारों, बोतल बंद पेय, तंबाकू उत्पाद जैसी अहितकर वस्तुओं व कोयला जैसी पर्यावरण से जुड़ी सामग्री पर उपकर लगेगा। अब आप पूछेंगे कि क्या सिर्फ टैक्स की संख्या कम होगी या टैक्स भी कम होगा। सरकार ने पिछले दिनों एक रिपोर्ट तैयार कराई थी उसमें कहा गया था कि अभी औसतन 24 फीसदी टैक्स सामान पर लगता है। लेकिन जीएसटी के बाद अगर स्टैंडर्ड रेट लगाएं तो ये 17−18 फीसदी रह जाएगा। 

प्रधानमंत्री की अपार लोकप्रियता एवं साफ−सुथरी छवि के बावजूद ये कहना पूरी तरह सत्य है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली के बारे में न तो जनता की और न ही व्यापार जगत की राय अच्छी है। ये धारणा काफी प्रबल है कि जनता के हित की तमाम योजनाओं को उन्होंने रुकवा दिया। बतौर वित्त मंत्री सरकार की आर्थिक स्थिति मजबूत करना उनका प्राथमिक कर्त्तव्य है किन्तु दूसरी तरफ सरकार के लिए भी ये देखना जरूरी हो जाता है कि उसके साथ−साथ जनता की माली हालत में भी सुधार होता रहे। जीएसटी लाने के पीछे एक साथ कई उद्देश्य बताए गए थे। यदि केन्द्र तथा राज्यों में एक ही दल सत्तारूढ़ रहा होता तब शायद जीएसटी को लागू करने में इतनी कठिनाई नहीं आती। 

कहते हैं अनेक भाजपा विरोधी दलों की सत्ता वाले राज्यों ने काफी दिक्कतें पैदा कीं जिसकी वजह से केन्द्र को मूल प्रस्ताव में बदलाव भी करने पड़े। इसके कारण विभिन्न राज्यों में कर की दरों में भिन्नता होने से कीमतों में एकरूपता का लक्ष्य कितना पूरा हो सकेगा ये देखने वाली बात होगी किन्तु फिलहाल तो जो और जैसा दिखाई दे रहा है उसके अनुसार जीएसटी को सभी मर्जों की दवा मानकर चलने वाला आशावाद जल्दबाजी ही होगी। केन्द्र और राज्य सरकारों को सीधे−सीधे जन विरोधी भले न कह दिया जाये लेकिन जीएसटी आने के बाद कर चोरी, भ्रष्टाचार तथा प्रक्रियात्मक जटिलताएं पूरी तरह खत्म हो जाएंगी, ये भरोसा भी फिलहाल नहीं रहा।

अर्थशास्त्रियों के अनुसार, देश में जीएसटी के लागू होने से नए घर खरीदने की कीमत 8 फीसदी तक बढ़ जाएगी और घर खरीदने वाले में 12 फीसदी की कमी आएगी। जीएसटी लागू होने पर आईटी कंपनियों को भी नुकसान होगा। जीएसटी के बाद वर्कफोर्स से लेकर प्रोडक्शन की लागत तक सब बढ़ जाएगा। वहीं जीएसटी एक भ्रामक शब्द है, एक टैक्सेशन सिस्टम के नाम पर 2 प्रकार का टैक्स लग सकता है। जैसे एक सेंट्रल टैक्स और एक स्टेट टैक्स। इसके नियमों के बारे में अभी भी कुछ साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता है। इन दो के अलावा एक इंटरस्टेट जीएसटी भी लागू हो सकता है। अधिकतर इंडायरेक्ट टैक्स अब जीएसटी के तहत आने लगेंगे। अलग−अलग नामों से 165 देशों में जीएसटी पहले ही लागू हो चुका है। जीएसटी को लागू होने पर एक देश दोनों तरीकों से सकारात्मक और नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है। नकारात्मक पक्ष को नकराना सही नहीं होगा, जीएसटी लागू करने से पहले इसके हर पहलू पर विचार करना होगा।

- आशीष वशिष्ठ

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़