समस्याओं के समाधान में बढ़ी नई और उभरती प्रौद्योगिकी की भूमिका

emerging technology

एंबीटैग (AmbiTag) अपनी तरह का पहला इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) उपकरण है, जो टीकों, दवाओं, रक्त नमूने, भोजन व डेयरी उत्पाद, माँस उत्पाद और पशु वीर्य इत्यादि के परिवहन के दौरान आवश्यक परिवेशी तापमान की निगरानी करता है।

नई और उभरती प्रौद्योगिकियां स्वास्थ्य, शिक्षा, ऊर्जा, पर्यावरण, कृषि, रणनीतिक, सुरक्षा एवं उद्योग 4.0 में राष्ट्रीय पहलों को सशक्त बना रही हैं। इसमें राष्ट्रीय अंतर्विषयक साइबर-भौतिक प्रणाली मिशन के माध्यम से देश भर में स्थित 25 नवाचार केंद्रों में विकसित की जा रही प्रौद्योगिकियां प्रमुखता से शामिल हैं, जो जन-केंद्रित समाधान से जुड़ी पहलों को मजबूती प्रदान कर रही हैं। मिशन के तहत विकसित प्रौद्योगिकियों और स्थापित किए गए प्रौद्योगिकी मंचों से विभिन्न क्षेत्रों में आम जीवन से जुड़ी समस्याओं के समाधान प्रदान करने में सहायता मिली है। इनमें स्वास्थ्य क्षेत्र महत्वपूर्ण रूप से शामिल रहा है, जिस पर कोविड-19 महामारी के दौरान सबसे अधिक ध्यान केंद्रित किया गया।

इसे भी पढ़ें: ऑमिक्रॉन के लिए सीएसआईआर वैज्ञानिकों ने विकसित की आरटी-पीसीआर किट

भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बंगलूरू में कृत्रिम बुद्धिमत्ता एवं रोबोटिक्स प्रौद्योगिकी पार्क (एआरटीपीएआरके) ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई)-संचालित प्लेटफॉर्म विकसित किया है, जिसने कोविड-19 संक्रमण के तेजी से प्रसार के समय वॉट्सऐप पर भेजी गई छाती के (चेस्ट) एक्स-रे छवियों की व्याख्या में शुरूआती हस्तक्षेप के माध्यम से उन चिकित्सकों की सहायता की, जिनके पास एक्स-रे मशीनों तक पहुँच की सुविधा किसी कारणवश नहीं थी। एक्स–रे सेतु नामक यह समाधान त्वरित और उपयोग में आसान है, और ग्रामीण क्षेत्रों में निदान सुविधा के लिए मोबाइल के माध्यम से भेजे गए कम-रिजॉल्यूशन छवियों के साथ भी काम कर सकता है। मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का उपयोग करते हुए, यह प्रणाली फेफड़ों में संदिग्ध असामान्य क्षेत्रों को दिखाते हुए रोगियों की रिपोर्ट तैयार करती है, जिससे कोविड-19, निमोनिया अथवा फेफड़ों की अन्य असामान्यताओं अथवा संक्रमण का पता लगाया जाता है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), बॉम्बे के वैज्ञानिकों की एक टीम ने कोविड-19 की पहचान के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), जोधपुर के प्रौद्योगिकी नवाचार केंद्र (टेक्नोलॉजी इनोवेशन हब) द्वारा समर्थित रक्षक (RAKSHAK) नामक टेपेस्ट्री विधि विकसित की है, जो कोविड-19 की उपचारात्मक कार्रवाई, ज्ञान मथन (स्किमिंग), और कोविड-19 के समग्र विश्लेषण पर आधारित है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के वक्तव्य में बताया गया है कि टेपेस्ट्री पद्धति को एक्स-प्राइज द्वारा एक ओपेन इनोवेशन ट्रैक में चयनित किया गया है। रक्षक के विकास से जुड़े प्रयासों ने नई चेस्ट एक्स-रे आधारित कोविड निदान प्रणाली (आईसीएमआर की सत्यापन प्रक्रिया के अधीन), भारतीय एवं अंतरराष्ट्रीय कोविड मामलों पर केंद्रित ओपेन डेटाबेस – कोवाबेस (COVBASE), और कैम्पस रक्षक – कैम्पस सुरक्षा के लिए एक विशिष्ट फ्रेमवर्क विकसित करने का मार्ग प्रशस्त किया है। 

एंबीटैग (AmbiTag) अपनी तरह का पहला इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) उपकरण है, जो टीकों, दवाओं, रक्त नमूने, भोजन व डेयरी उत्पाद, माँस उत्पाद और पशु वीर्य इत्यादि के परिवहन के दौरान आवश्यक परिवेशी तापमान की निगरानी करता है। इसे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), रोपड़ के प्रौद्योगिकी नवाचार केंद्र – AwaDH और इसके स्टार्टअप स्क्रैचनेस्ट (ScratchNest) के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित किया गया है। अभी तक भारत द्वारा ऐसे उपकरणों का आयात किया जा रहा था। संस्थान अब एंबीटैग के बड़े पैमाने पर उत्पादन की तैयारी में जुटा है। इस उपकरण को 400 रुपये की उत्पादन लागत पर उपलब्ध कराने की योजना है, ताकि देश के प्रत्येक क्षेत्र में टीकाकरण केंद्रों के माध्यम से नागरिकों तक कोविड-19 वैक्सीन की पहुँच सुनिश्चित की जा सके।

इसे भी पढ़ें: हृदयाघात से बचाने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है नया आनुवंशिक अध्ययन

इंडियन स्पेस टेक्नोलॉजीज ऐंड एप्लीकेशन कंसोर्शियम डिजाइन ब्यूरो के अंतर्गत गहन प्रौद्योगिकी तथा अभियांत्रिकी क्षेत्र में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मद्रास के प्रवर्तक टेक्नोलॉजीज फाउंडेशन और पाँच अन्य उद्यमी स्टार्ट-अप कंपनियों द्वारा शुरू किया गया एक संघ स्थापित किया गया है। यह उपग्रहों के त्वरित प्रक्षेपण (लॉन्च क्षमता), सेंसर, नई पीढ़ी की संचार प्रौद्योगिकी जैसे - 6जी, उपग्रह डेटा और अनुप्रयोगों सहित माँग-आधारित पहुँच से अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के लिए एक समग्र आत्मनिर्भर पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करेगा।

स्वास्थ्य, शिक्षा, ऊर्जा, पर्यावरण, कृषि, रणनीतिक, सुरक्षा तथा उद्योग-4.0 में तकनीकी समाधान को बढ़ावा देने वाली ये नई और उभरती प्रौद्योगिकियां राष्ट्रीय अंतर्विषयक साइबर-भौतिक प्रणाली मिशन  का हिस्सा हैं, जिन्हें शीर्ष शैक्षणिक क्षेत्रों में स्थापित 25 प्रौद्योगिकी नवाचार केन्द्रों के माध्यम से संचालित किया जा रहा है। इसे दिसंबर, 2018 में कुल 3,660 करोड़ रुपये की लागत से केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रीय अनुसंधान एवं विकास संस्थानों के लिए अनुमोदित किया गया था। ये सभी केंद्र जन-केंद्रित समस्याओं के समाधान विकसित करने पर काम कर रहे हैं। 

(इंडिया साइंस वायर)

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़