ग्रामीण क्षेत्रों में डायबिटीज से लड़ने के लिए आया नया डिजिटल टूल

New digital tool for fighting diabetes in rural areas

डिजिटल टूल डायबिटीज जैसी बीमारियों की पहचान और उनके उपचार में मददगार हो सकते हैं। ग्रामीण इलाकों में डायबिटीज के मरीजों की पहचान और उनके प्रभावी उपचार के लिए ‘इम्पैक्ट डायबिटीज’ नामक एक ऐसा ही ऐप लॉन्च किया गया है।

नई दिल्ली, (इंडिया साइंस वायर): ग्रामीण क्षेत्रों में जहां स्वास्थ्य सेवाओं और डॉक्टरों की कमी है, वहां डिजिटल टूल डायबिटीज जैसी बीमारियों की पहचान और उनके उपचार में मददगार हो सकते हैं। ग्रामीण इलाकों में डायबिटीज के मरीजों की पहचान और उनके प्रभावी उपचार के लिए ‘इम्पैक्ट डायबिटीज’ नामक एक ऐसा ही ऐप लॉन्च किया गया है। 

यह ऐप ग्रामीण स्वास्थ्यकर्मी या आशा कार्यकर्ताओं के लिए है, जो स्वास्थ्यकर्मियों के अनुभव और समुदाय की जरूरतों के बारे में उन कार्यकर्ताओं की जानकारियों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। ऐप की मदद से ग्रामीण स्वास्थ्यकर्मी या आशा कार्यकर्ताओं को डायबिटीज जांच, आहार एवं जीवन शैली संबंधी परामर्श, रेफरल और मरीजों की निगरानी में मदद मिल सकती है। 

‘इम्पैक्ट डायबिटीज’ ऐप को नई दिल्ली स्थित जॉर्ज इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल हेल्थ के शोधकर्ताओं ने बनाया है। इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर विवेकानंद झा के मुताबिक “भारत में करीब पांच करोड़ लोग टाइप-2 मधुमेह से ग्रस्त हैं और यह आंकड़ा हर साल बढ़ रहा है। यह ऐप दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को समय पर दिशा-निर्देशों के मुताबिक किफायती हेल्थकेयर सेवाएं मुहैया कराने में मददगार हो सकता है। इस ऐप के उपयोग से जानलेवा जटिलताओं और डायबिटीज के कारण होने वाली मौतों के जोखिम को कम करने में भी मदद मिल सकती है।”

जांच के दौरान बीमारी से संबंधित केस-हिस्ट्री ली जाती है और शुगर तथा रक्त की जांच की जाती है। इसके साथ-साथ वजन और लंबाई को भी दर्ज किया जाता है। इन तथ्यों को ऐप में दर्ज किया जाता है और मरीज के डायबिटीज से ग्रस्त होने का पता लगाया जाता है। जांच में जो लोग अधिक जोखिम से ग्रस्त पाए जाते हैं, उन्हें डॉक्टर के पास भेजा जाता है और उपचार का नियमित फॉलो-अप भी किया जाता है।  

प्रोफेसर झा के अनुसार “यह पहल हमारे इंस्टीट्यूट के स्मार्ट हेल्थ कार्यक्रम का हिस्सा है, जिसके तहत सामुदायिक महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं या आशा को प्रशिक्षित किया जाएगा। ये कार्यकर्ता लोगों को डायबिटीज के बारे में जागरूक करेंगे और आंकड़ों को ऐप में दर्ज करेंगे। ऐप की मदद से इस बात की भी निगरानी की जाएगी कि डायबिटीज ग्रस्त लोगों द्वारा उनके परामर्श पर किस हद तक अमल किया जा रहा है।”

स्मार्ट हेल्थ कार्यक्रम की शुरुआत ऑस्ट्रेलिया में एनएएसडब्ल्यू हेल्थ के आर्थिक सहयोग से वर्ष 2013 में हुई थी। ऑस्ट्रेलिया में इस कार्यक्रम को लंबी बीमारी से ग्रस्त स्थानीय आदिवासियों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए शुरू किया गया था। स्मार्ट हेल्थ कार्यक्रम इंडोनेशिया और थाईलैंड समेत भारत के कई हिस्सों में कार्यरत है। हाइपरटेंशन, मानसिक स्वास्थ्य, डायबिटीज, किडनी एवं हृदय संबंधी बीमारियों की पहचान और मरीजों की देखभाल में जुटी हुई है। 

इस ऐप की लॉन्चिंग के मौके पर ऑस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त हरविंदर सिद्धु, ऑस्ट्रेलिया में एनएसडब्ल्यू के प्रमुख ग्लेडिस बेरेजिक्लिअन और रोहतक स्थित पंडित बी.डी. शर्मा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के उप-कुलपति प्रोफेसर ओ.पी. कालरा भी मौजूद थे। 

एनएसडब्ल्यू के प्रमुख ग्लेडिस बेरेजिक्लिअन ने इस ऐप को लॉन्च करते हुए कहा कि “ग्रामीण भारत में करीब 2.5 करोड़ लोग डायबिटीज से ग्रस्त हैं, जिनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। ऐसे में लोगों तक किफायती, प्रमाणिक और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित हो जाए तो ग्रामीण स्वास्थ्य में उल्लेखनीय बदलाव देखने को मिल सकता है।”

प्रोफेसर ओ.पी. कालरा के अनुसार “गैर-संचारी रोगों के बढ़ते बोझ और ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं में स्वास्थ्यकर्मियों की कमी को देखते हुए यह सही दिशा में उठाया गया कदम है, जो डायबिटीज से लड़ने में मददगार हो सकता है।” 

(इंडिया साइंस वायर)

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