केरल के जलभृतों में मिली कैटफ़िश की नई प्रजाति

Catfish Kerala
ISW

शोधकर्ताओं को, होराग्लानिस पॉपुली नामक नई प्रजाति की पहचान करने में भी सफलता मिली है। होराग्लानिस पॉपुली एक कैटफ़िश है, जिसकी माप 32 मिलीमीटर से अधिक नहीं है। शोधकर्ता बताते हैं कि इसकी आँखें नहीं होती हैं, और इसका शरीर रक्तिम आभा से युक्त है।

भारतीय और जर्मन शोधकर्ताओं की टीम के एक ताजा आनुवंशिक अध्ययन में दक्षिण भारतीय राज्य केरल में कैटफ़िश वंश की होराग्लानिस मछली की नई प्रजाति का पता चला है। इस होराग्लानिस प्रजाति की मछलियों की लंबाई लगभग तीन सेंटीमीटर है, जो केरल के लैटेराइट मिट्टी वाले क्षेत्र के जलभृतों में प्रकाश की पहुँच से दूर अंधेरे स्थानों में रहती हैं।

आमतौर पर मछलियों की यह प्रजाति जलभृतों में छिपी रहती है। कुओं की खुदाई अथवा जलकूपों की साफ-सफाई जैसे मौकों पर स्थानीय लोगों का सामना इन मछलियों से अधिक होता है। इसलिए, शोधकर्ताओं ने मछलियों के नमूने एकत्रित करने के लिए स्थानीय लोगों को अध्ययन में शामिल किया है। इस तरह, शोधकर्ताओं को होराग्लानिस मछलियों के कुल 47 वास स्थानों का पता चला है, और उन्होंने होराग्लानिस के 65 नये अनुवांशिक अनुक्रमों का खुलासा किया है।

इसके अलावा, शोधकर्ताओं को, होराग्लानिस पॉपुली नामक नई प्रजाति की पहचान करने में भी सफलता मिली है। होराग्लानिस पॉपुली एक कैटफ़िश है, जिसकी माप 32 मिलीमीटर से अधिक नहीं है। शोधकर्ता बताते हैं कि इसकी आँखें नहीं होती हैं, और इसका शरीर रक्तिम आभा से युक्त है। शोधकर्ताओं का कहना है कि होराग्लानिस पॉपुली; पहले से ज्ञात तीन होराग्लानिस प्रजातियों से आनुवंशिक रूप से अलग है।

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केरल यूनिवर्सिटी ऑफ फिशरीज ऐंड ओशन स्टडीज (केयूएफओएस), कोच्चि; मालाबार अवेयरनेस ऐंड रेस्क्यू सेंटर (एमएआरसी), कन्नूर; स्कूल ऑफ नेचुरल साइंसेज, शिव नादर इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस, नोएडा; और सेनकेनबर्ग नेचुरल हिस्ट्री कलेक्शन्स, जर्मनी के शोधकर्ताओं द्वारा यह अध्ययन संयुक्त रूप से किया गया है। 

सेनकेनबर्ग नेचुरल हिस्ट्री कलेक्शन्स के शोधकर्ता डॉ राल्फ़ ब्रिट्ज़ बताते हैं, "वर्तमान में, 289 मछलियों की प्रजातियाँ दुनियाभर में भूमिगत जलीय आवासों से पायी जाती हैं - उनमें से 10 प्रतिशत से भी कम जलभृतों में रहती हैं। इस लगभग अज्ञात पारिस्थितिक समुदाय के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए, हमने केरल में जल-धारण करने वाली लैटेराइट की चट्टानी परतों और उनके भीतर मछलियों की आकर्षक विविधता का छह साल तक अध्ययन किया।"

डॉ ब्रिट्ज़ कहते हैं, “विशेष रूप से, शोधकर्ताओं ने, कैटफ़िश वंश की होराग्लानिस पर अपना ध्यान केंद्रित किया है। ये मछलियाँ विशेष रूप से जलभृतों में रहती हैं, जो आकार में बेहद छोटी तथा अंधी होती हैं, और इनमें वर्णक की कमी होती है। इन प्रजातियों का दस्तावेजीकरण बहुत कम देखने को मिलता है। ये मछलियाँ प्रायः तभी सतह पर आती हैं, जब कोई घरेलू कुआँ खोदा या साफ किया जा रहा होता है।"

पालघाट दर्रे के दक्षिण में, होराग्लानिस मछलियों की आबादी विशेष रूप से पायी जाती है। पालक्काड़ दर्रा या पालघाट दर्रा, भारत के पश्चिमी घाट में स्थित है, जो तमिलनाडु के कोयम्बतूर को केरल के पालक्काड़ से जोड़ता है। शोधकर्ता बताते हैं कि यह दर्रा स्पष्ट रूप से जैव-भौगोलिक अवरोधक के रूप में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। 

इस अध्ययन में, शोधकर्ताओं को होराग्लानिस के वितरण, आनुवंशिकी और उनके विकासवादी इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त करने में सफलता मिली है। इन मछलियों के जलीय एकांतवास, अंधेरेपन में रहने की उनकी प्रवृत्ति, उनके वितरण की सीमित क्षमता, और पोषक तत्वों, कार्बन तथा घुलित ऑक्सीजन की कमी वाले स्थानों के रूप में शोधकर्ताओं ने होराग्लानिस के वास-स्थल को परिभाषित किया है।

भूमि की सतह के नीचे, जल धारण करने वाली पारगम्य चट्टानों, चट्टानी दरारों, अथवा असंपीडित सामग्री की परत को जलभृत के रूप में जाना जाता है। कुओं अथवा नलकूपों के जरिये जलभृतों से भूमिगत जल प्राप्त किया जाता है। 

डॉ राल्फ़ ब्रिट्ज़ के अलावा, इस अध्ययन में, केयूएफओएस, कोच्चि के राजीव राघवन एवं रेम्या एल. सुंदर; एमएआरसी, कन्नूर के सी.पी. अर्जुन; और शिव नादर इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस, नोएडा के शोधकर्ता नीलेश दहानुकर शामिल हैं। यह अध्ययन शोध पत्रिका वर्टेब्रेट जूलॉजी में प्रकाशित किया गया है। 

(इंडिया साइंस वायर)

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