इलेक्ट्रिक वाहनों में प्रयुक्त होने वाले मैग्नेट के निर्माण की नई तकनीक

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भारत सरकार द्वारा संचालित इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मेटालर्जी एंड न्यू मैटीरियल्स नए मैग्नेट विकसित करने के अभियान में जुटा है। ऐसे मैग्नेट न केवल भारत को आत्मनिर्भर बनाएंगे, अपितु वैश्विक आपूर्ति करने में भी सहायक होंगे।

इसमें कोई संदेह नहीं कि भविष्य का यातायात इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) पर निर्भर होगा। जीवाश्म ईंधनों के अंधाधुंध उपयोग ने ग्लोबल वार्मिंग से लेकर प्रदूषण की समस्या को कई गुना बढ़ा दिया है। जीवाश्म ईंधनों की सीमित उपलब्धता और एक समय के बाद उनकी अपेक्षित प्राप्ति संभव नहीं हो पाने की स्थिति में इलेक्ट्रिक वाहनों का एक पसंदीदा विकल्प के रूप में उभरना स्वाभाविक है। हालांकि, ऐसे वाहनों की राह में बाधाएं भी कम नहीं हैं। सबसे बड़ी बाधा ऐसे वाहनों के लिए सक्षम मैग्नेट यानी चुंबक की उपलब्धता का है। ऐसा मैग्नेट मुख्य रूप से चीन में पाया जाता है, जहान से उसकी आपूर्ति को लेकर निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता।

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दरअसल इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए उम्दा किस्म की मोटर चाहिए और ऐसी मोटर का निर्माण उत्तम गुणवत्ता वाले मैग्नेट से ही संभव है। फिलहाल ऐसा मैग्नेट पृथ्वी की उन 17 दुर्लभ धातुओं से बनता है, जिनका उत्खनन एक कठिन कार्य है। इस धातु के उत्पादन में इस समय चीन का ही वर्चस्व है और वही विश्व भर में उसका सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए चीनी मैग्नेट पर निर्भरता दूसरे देशों पर भारी पड़ती है। 

भारत सरकार द्वारा संचालित इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मेटालर्जी एंड न्यू मैटीरियल्स (एआरसीआई) नए मैग्नेट विकसित करने के अभियान में जुटा है। ऐसे मैग्नेट न केवल भारत को आत्मनिर्भर बनाएंगे, अपितु वैश्विक आपूर्ति करने में भी सहायक होंगे। इससे मैग्नेट की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर से चीन का दबदबा भी घटेगा। इस अभियान की कमान मैग्नेट्स के विशेषज्ञ वैज्ञानिक आर गोपालन संभाल रहे हैं। 

गोपालन ने नियोडिमियम-आयरन-बोरोन (एनआईबी) मैग्नेट्स निर्माण के लिए एक नई प्रक्रिया खोज निकाली है। इसे 'चैंपियन ऑफ मैग्नेट' की उपाधि दी जा रही है। मैग्नेट निर्माण के लिए एनआईबी एक शानदार एलॉय है, लेकिन गर्म होने पर यह अपने चुंबकीय गुण खोने लगता है। उल्लेखनीय है कि मोटर विशेषकर इलेक्ट्रिक वाहनों की मोटर व्यापक स्तर पर ऊष्मा उत्पन्न करती है। ऐसे में इस समस्या से मुक्ति पाने के लिए एनआईबी मैग्नेट को एक अन्य दुर्लभ धातु डाइस्प्रोजियम में डुबोया जाता है। फिलहाल डाइस्प्रोजियम आपूर्ति पर चीन का ही एक तरह से नियंत्रण है। वर्तमान में विनिर्मित एनआईबी मैग्नेट्स में 15 से 20 प्रतिशत डाइस्प्रोजियम होता है, लेकिन गोपालन ने एक ऐसा तरीका खोज निकाला है जो मात्र एक प्रतिशत से कम डाइस्प्रोजियम से भी कम में उच्च गुणवत्ता वाले मैग्नेट का निर्माण करने में सक्षम है। अपनी इस खोज पर उत्साहित गोपालन कहते हैं कि दुनिया इस तकनीक की ओर बड़ी उम्मीद से देख रही है।

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इस तकनीक के उपयोग से इलेक्ट्रिक वाहनों के क्षेत्र में नई क्रांति आ सकती है। न केवल लोगों की आवाजाही सुगम हो सकेगी, बल्कि जीवाश्म ईंधनों पर आने वाला बेतहाशा खर्च भी बचेगा औऱ पयार्वरण को हो रही क्षति पर भी अंकुश लग सकेगा। 

(इंडिया साइंस वायर)

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